कल जून आएंगे, आज उन्हें गए पूरा एक हफ्ता हो गया है,
पहली बार घर से आने के बाद इतने दिनों तक वे अकेले रह रहे हैं. एक-एक कर के दिन
बीत रहे हैं और कल इंतजार का अंतिम दिन है. नन्हे को होमवर्क कहने को कहा है पर वह
टेलीफोन और टाइपराइटर में व्यस्त है, जब से जून गए हैं उसने गेस्ट रूम को ऑफिस बना
लिया है और छोटे पापा बनकर यहाँ आता है, फोन अटेंड करता है और न जाने क्या-क्या
कहता है, कल वह थोड़ा उदास थी और परसों भी कुछ....वह न होता तो... वह हर वक्त बातों
में लगाये रखता है. नन्हा रोज उसे कहानी सुनाने को कहता है, उसने चिंटू खरगोश और
मीकू बिल्ली की कहानी बना कर सुनाई, जिसमें वे दोनों घर को चोरों से बचा लेते हैं.
फिर उसने मंझले भाई व माँ-पिता को खत लिखे.
मूसलाधार वर्षा हो रही है,
नए घर में बड़ा सा आँगन है, उसने सोचा वहाँ वे बारिश में नहा सकते हैं, पुराने घर
में भी छोटा सा आंगन था, जहां वे एक बार जलधारा में बहुत भीगे थे. कल रात तेज
वर्षा हुई गर्जन-तर्जन के साथ, आवाज से उसकी तो नींद ही गायब हो गयी. ज्यादातर
वर्षा यहाँ रात को ही होती है, बिजली की गड़ागड़ाहट से कैसा डर लगा, कितना मोह होता
है इंसान को अपने जीवन से... अप्रैल का
आरम्भ हुए चार दिन हो गए हैं और आज उसने डायरी खोली है. जून फिर कलकत्ता गए हैं,
परसों शाम को आएंगे, नए घर के लिए कुछ सामान भी लायेंगे. नन्हे की परीक्षाएं शरू
होने में केवल पांच दिन हैं.
आज उसका इंग्लिश का पहला
इम्तहान है, इस बार तैयारी काफी अच्छी है, जरूर कोई पोजीशन लाएगा. आज फिर बादल
छाये हैं, कल कितने दिनों बाद धूप निकली थी. वे तिनसुकिया से कुशन भी ले आये हैं
और पर्दे भी, जो रंगने को दिए थे. एक डायरी और कैलेंडर भी लाए हैं, चाहे वह नियमित
लिखती न हो पर नई डायरी देखकर कितना आनंद होता है, लोभ शायद इसी को कहते
हैं...एकत्र करने की प्रवृत्ति है उसमें...चाहे वस्तुओं का उपयोग हो या नहीं पर वे
होनी जरूर चाहियें. उसने ध्यान दिया कि उसकी भाषा खिचड़ी होती जा रही है. असम में रहकर
शुद्ध हिंदी जैसे भूल ही जायेगी. कल उसने कालेज की सखी सुरभि के पत्र का जवाब दिया
और दोनों घरों पर भी पत्र लिखे. उसने सोचा है, धीरे-धीरे पैकिंग का काम आरम्भ कर
देना चाहिए. शनिवार को उन्हें शिफ्ट करना है, दो कार्टन भी आकर बड़े हैं छोटा-मोटा
सामान रखने के लिए. कितना अजीब लगेगा शुरू-शुरू में, पर वे घर व्यवस्थित करने में
इतने व्यस्त रहेंगे कि शेष सब भूल जायेंगे. अच्छा लगेगा बड़े घर में रहना. कभी देखा
सपना पूर्ण होगा.. कि बाहर लॉन हो, जिसमें फूल खिले हों, हरी घास हो. गैराज में
गाड़ी खड़ी हो.
आज मौसम अच्छा है न वर्षा
न धूप. ट्रांजिस्टर पर आशिकी फिल्म का गाना आ रहा है, इस फिल्म के सभी गाने अच्छे
हैं. वह गाना खत्म होने का इंतजार कर रही है, अधूरा गाना सुनना उसे नहीं भाता और
गाते हुए गायक को बीच में रोकना भी अच्छा नहीं लगता, इसके बाद वह पड़ोसिन को शाम की
चाय के लिए निमंत्रित करने जायेगी, अब पता नहीं कब वे उनके नए घर में आयें. कल रात
उसने फुफेरी बहन को स्वप्न में देखा, सोचा इस बार उसे पत्र अवश्य लिखेगी, कितने
महीने, शायद साल भर हो गया हो उसे खत लिखे. घर से भी कोई पत्र नहीं आया है, जून
फोन करना चाह रहे हैं पर मिल नहीं रहा है, शायद हड़ताल है दूर संचार विभाग में. उसके
दिमाग ने आजकल सोचना बंद कर दिया है, सोचने से घबराने लगी है, सिर्फ कुछ न कुछ
करना चाहती है जिससे दिमाग न खली रहे न सोचे..क्या यह पलायन है?
लगभग आधा सामान तो उस घर
में पहुंच ही गया है, कितना खाली-खाली लग रहा है यह घर, कितने साल वे इस घर में
रहे अपना समझ कर और अब कोई और रहेगा अपने अपनों के साथ...घर बदलना इतना आसान तो
नहीं होता, कितनी यादें जुडी होती हैं, कितनी बातें याद आती हैं, कोई मीठी तो कोई
खट्टी बात..आज शाम को वह उन दीदी से अवश्य मिलेगी कितने दिन हो गए हैं पूरा एक
सप्ताह ही तो..और अपनी असमिया सखी के यहाँ भी जाना है एक-दो दिन में. नन्हा सुबह
उठा तो कहने लगा उसने एक अच्छा सा सपना देखा है, स्नेहा (उसकी फुफेरी बहन) का
परिवार, वे तीनों और दादा-दादीजी लोग एक पार्टी में गए हैं...यानि उसने एक ही
स्वप्न में सबको देख लिया.
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