Tuesday, January 17, 2012

बूंदाबांदी


कल बड़े मजे की बात हुई, महरी जब काम करके चली गयी, पांच-दस मिनट कुछ छोटा-मोटा काम करने के बाद नूना ने घड़ी की ओर देखा तो दस बजे थे, सो रोजाना की तरह खाना बनाने रसोई में  गयी. एक घंटे बाद खाना बना कर कमरे में आयी तो फिर दस बजे थे. घड़ी देखी, चल रही थी तो इसका अर्थ हुआ कि पूरा एक घंटा पहले उसने भोजन बना दिया था. उस समय नौ ही बजे थे. जून भी सुनेगा तो हँसेगा. आज वर्षा नहीं हो रही है पर गर्मी नहीं है, जुलाई में भी कल रात ठंड थी, चादर लेकर नहीं सोयी थी सो ठंड के कारण नींद नहीं आ रही थी, फिर मन सपने देखने लगा, कहाँ- कहाँ के सपने. कल लाइब्रेरी में धर्मयुग के दो नए अंक दिखे, सारिका पढ़े कितने दिन हो गए हैं. उसके आने में अभी वक्त है सो टाल्सटाय की पुस्तक पढ़ने का उपयुक्त समय है.

कल प्रेमगीत फिल्म देखी, बड़ी हँसी आयी, हँसी आयी सो फिल्म देख कर ही उठे. संगीत अच्छा था, यही बात फिल्म के पक्ष में जाती है. आज वह फिर भीग कर आया था, जबकि नूना को मना करता है भीगने से.
आज भी वर्षा का ही साम्राज्य रहा, लाइब्रेरी गए तो भीगते हुए और लौटे तब भी बूंदाबांदी हो रही थी. घर पर भी वर्षा होती होगी, रसोई से कमरे तक जाने में माँ भीग जाती होंगी.

  

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