Monday, January 30, 2012

दक्षिणी ध्रुव पर भारतीय वैज्ञानिक


आज घर से आये छोटी बहन के खत ने तो नूना को रुला ही दिया. कितनी पुरानी यादें ताजा हो गयीं एक क्षण में ही. उसने सोचा वह उसे एक कविता लिख कर भेजेगी. इस समय शाम के सवा  सात बजे हैं, विविधभारती पर जयमाला कार्यक्रम आ रहा है. लता की आवाज में यह गीत कितना मधुर लग रहा है...कहीं दीप जले कहीं दिल...जून एक किताब पढ़ रहे हैं, अनारो, उसने भी पढ़ी थी, सशक्त है इसकी भाषा और प्रवाह युक्त भी बस पढ़ते ही चले जाओ, 'मुर्दों का टीला' भी पढ़ ली. आक्रोश उपजता है भीतर और विश्वास भी नहीं होता कि ऐसा भी होता है. आज सुबह उसे याद नहीं रहा कि नौकरानी छुट्टी लेकर गयी है, आराम से सब कुछ कर रही थी. दोपहर बाद ऐसी नींद आयी कि मोटरसाइकिल का हॉर्न भी सुनाई नहीं दिया. फिर शाम को वे लाइब्रेरी गए, धर्मयुग के तीन नए अंक थे, दक्षिणी ध्रुव पर गए एक भारतीय वज्ञानिक के संस्मरण पढ़े.   

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