रात्रि के आठ बजे हैं. यात्रा की तैयारी लगभग हो गयी
है. अभी थोड़ी बहुत पैकिंग शेष है, जैसे तैरने का सामान, डायरी, किताबें आदि. शाम
को लाइब्रेरी गयी दो नई किताबें इश्यू करायीं, एक सुधा मूर्ति की दूसरी डाक्टर
जोसेफ मर्फी की 'पॉवर ऑफ़ सबकॉनशियस माइंड' शाम को योग कक्षा में कोर्स में सीखे
चक्र-ध्यान के बारे में बताया, उन्हें डिवाइन शॉप से खरीदीं किताबें पढने को दीं
और सकारात्मक चिन्तन करने को भी कहा. उससे पूर्व एक सहप्रतिभागी आया था, उसे हरिओम
ध्यान के बारे में बताया. कोर्स के बाद जब सुबह स्कूल गयी तो तन बिलकुल हल्का था. योग
सिखाते समय फिर एक पतंगा आकर सम्मुख बैठ गया था, परमात्मा का संदेश वाहक..आज बहुत
दिनों बाद ब्लॉग पर लिखा. काव्यालय की संस्थापिका के ब्लॉग को सब्सक्राइब किया, हर
मंगलवार को उस पर पोस्ट आती है. नैनी ने अपनी बेटी के स्कूल प्रोजेक्ट के लिए कमल
का एक सुंदर फूल बनाया, उसके लिए नयी ट्यूटर भी खोज ली है. उसके माता-पिता नहीं रहे
जब वह छोटी थी, नानी के यहाँ रहकर पली, ज्यादा पढ़ाई नहीं कर पायी पर अपने बच्चों
को वह बहुत पढ़ाना चाहती है.
कल उन्हें यात्रा पर निकलना है. बड़ा सा सूटकेस जो वे ले
जाने वाले हैं, काफी भारी हो गया है. कभी-कभी खुद भी उठाना पड़ सकता है, न भी पड़े
तो जो भी उठाएगा उसकी कमर पर असर पड़ सकता है. आज विश्व ऑटिज्म डे है, शायद मृणाल
ज्योति में कुछ आयोजन हुआ हो इस उपलक्ष में. बाहर बच्चों के झूला झूलने की आवाजें
आ रही हैं, कल से उन्हें पूरा बगीचा मिल जायेगा. दीदी का फोन आया, दोपहर को वे
दोनों सिडनी जा रहे हैं, एक डेढ़ महीना वहाँ रहेंगे. बेटी ने टिकट भेज दी है, पिछली
बार तीन साल का वीजा मिल गया था, जिसमें हर वर्ष तीन महीने वे लोग सिडनी में बिता
सकते हैं. बंगलूरू में उनके नये घर की चाबी मिल गयी है, वर्ष के अंत तक उसमें साज-सज्जा
का कार्य हो जाना चाहिए. दोपहर की योग कक्षा में आज पहली बार छह महिलाएं आयीं, साथ
में दस बच्चे.
आज सुबह चार से थोड़ा पहले उठे, और साढ़े पांच बजे तक तैयार
थे. डिब्रूगढ़ से कोलकाता की उड़ान समय पर थी, जहाँ अगली फ्लाईट के लिए साढ़े पांच
घंटे बिताने थे. डाक्टर जोसेफ मर्फी की पुस्तक पढ़ते हुए समय कैसे बीत गया पता ही
नहीं चला. एक सखी बंगलूरू से वापस जा रही थी, कुछ देर उससे बात की. उसका पुत्र हैदराबाद
में कानून पढ़ रहा है, जिसने आधुनिक कार्लमार्क्स कहे जाने वाले एक समाजविज्ञानी का
इंटरव्यू लिया, बेटी बंगलूरू में जॉब करती है. रात्रि साढ़े आठ बजे घर पहुँचे तो
नन्हा और सोनू घर आ गये थे. कुक खाना बना कर चला गया था. बड़े भाई की बिटिया और
उसकी एक सखी भी आये थे, नन्हे का एक मित्र भी, सबने मिलकर रात्रि भोजन किया. मौसम
गर्म था.
सुबह साढ़े पांच बजे उठे, साधना की फिर कुक के हाथ की बनी
चाय पी. पोहा बनाया था उसने नाश्ते में, सोनू ने फल काट दिए. उसके बाद इंटीरियर
डेकोरेटर से मिलने गये, जिसने ३डी डिज़ाइन दिखाए घर के, काफ़ी प्रभावित करने वाले
थे. उसके बाद एक संबंधी के यहाँ लंच खाया, अगले महीने होने वाले उनकी बेटी के
विवाह में आ नहीं पायेंगे, सो उसे उपहार दिया. एक सखी से बात की, उसकी देवरानी की
बेटी जो बंगलूरू में रह कर पढ़ाई करती है, बुखार से पीड़ित है, वह उनके घर रहने आई
है. जून ने बताया, उनके दफ्तर की वह महिला अधिकारी फिर अस्पताल पहुँच गयी है. जीवन
कितना नाजुक है और क्षण भंगुर भी, बड़े जतन से इसकी देखभाल करनी पडती है. उसे स्मरण
हो आया, घर पर महिलाएं योग करके वापस जा रही होंगी, वह चाबी देकर आई थी. यहाँ उसकी
दिनचर्या बिलकुल बदल गयी है. नीचे पूल में बच्चों की आवाजें आ रही हैं.
आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 29.8.2019 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3442 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
बहुत बहुत आभार
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" में गुरुवार 29 अगस्त 2019 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार
Deleteरोचक कथा आदरनीय अनिता जी |अ आधुनिकता की प्रचंडता में खोये जीवन का एक मार्मिक रूप ये भी है | सादर सस्नेह शुभकामनायें |
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