आज 'विश्व महिला दिवस' है, अभी कुछ ही देर में वे
इसे मनाने भी वाले हैं. आस-पास की नैनी क्वाटर्स की महिलाओं को बुलाया है उसने एक
कप चाय के लिए और कुछ बातें करने के लिए, पर उनके पास उसके लिए भी समय कहाँ है ?
परिवार व बच्चे उनकी पहली प्राथमिकता हैं, अपने लिए वक्त बचाना उन्होंने कभी जाना
ही नहीं. तीन बजे बुलाया था पर सवा तीन होने वाले हैं, अभी तो कोई नहीं आई हैं.
जून के भेजे समोसे ठंडे हो रहे हैं, उन्होंने रसगुल्ले भी भेजे हैं. सुबह उन्होंने
व्हाट्स एप पर सौ संदेश भेजे 'महिला दिवस' पर, उनका हृदय विस्तृत हो रहा है, समाज
और राष्ट्र की सभी इकाइयां उसमें शामिल हो रही हैं. जीवन को सहजता से जीना है,
उसको सम्पूर्णता के साथ अपनाना है. जीवन को स्नेह भरी दृष्टि से देखें तो विष भी
अमृत हो जाता है ! वह लिख ही रही थी कि वे सब आ गयीं, उन्होंने कुछ देर भजन गाये
फिर कुछ बातचीत की, नैनी ने सबके लिए चाय बना दी फिर हँसते-हँसते वे सब खाने लगीं.
बाद में उसने पूछा, आज कौन सा दिन है, उन्हें महिला दिवस के बारे में कोई जानकारी
नहीं थी. लेकिन एक ने जब बताया उसका पति नशा करके आता है और वह डर जाती है, तो
बाकी सब उसे समझाने लगीं. डरने की जगह उसे हिम्मत से काम लेना चाहिए. उसने कहा यदि
वे नियमित रूप से कुछ देर योग-प्राणायाम करें तो भीतर की शक्ति जगा सकती हैं. पर
वह जानती है ऐसा कर पाना उनके लिए सम्भव नहीं है. हफ्ते में दो बार उन्हें वह
बुलाती है पर नियम से तो एक या दो ही आती हैं.
रात्रि के साढ़े आठ बजे हैं. टीवी पर हास्य धारावाहिक आ रहा
है. अभी कुछ देर पहले वे अस्पताल से आये. उस सखी की बिटिया को इंजेक्शन लगना था,
उसे थोड़ा सा आश्चर्य भी हुआ दस-बारह वर्ष की बालिका को इंजेक्शन लगवाने से इतना डर
लगता है कि तीन लोग उसे संभालने के लिए चाहिये. बच्चों के प्रति ज्यादा मोह से
माता-पिता ही उन्हें कमजोर बना देते हैं. ऐसी सोच जगी ही थी कि स्मरण आ गया उसे दोष
दृष्टि रखने के अपने पुराने संस्कार का एक और बार अनुभव हुआ, इसका अर्थ हुआ यदि
कोई सचेत न रहे तो मन किसी भी क्षण पुराने रंग-ढंग अपना लेता है.
आज सुबह नींद काफी पहले खुल गयी थी पर योग निद्रा करने लगी
और फिर स्वप्न कब आरंभ हो गया पता ही नहीं चला. उठने से पूर्व स्वप्न में अज्ञेय
की कोई किताब पढ़ रही थी. सफेद पृष्ठ पर काले अक्षर बिलकुल स्पष्ट थे और किसी-किसी
वाक्य को दोहराया भी, ताकि बाद में भी याद रहे, यानि उस समय भी यह अनुभव था कि यह
स्वप्न जैसा कुछ है, पर अब कुछ भी याद नहीं है. परमात्मा कितने-कितने ढंग से अपनी
उपस्थिति का समाचार देता है. कल रात्रि मन कुछ क्षणों के लिए पुरानी व्यवस्था में
लौट गया था, पर आज मन स्वच्छ है. वर्षा के बाद धुले आकश सा निर्मल ! भीतर जो
चट्टान जैसी स्थिरता है उसके रहते हुए भी ऐसा होता है, इस पर आश्चर्य ही करना
होगा. इसका कारण यही है कि उस क्षण वह परमात्मा को भुला देती है, पर वह इतना
कृपालु है और सुहृदयी है कि बिना कोई दोष देखे संदेशे भेजता ही रहता है. वे सर्व
शक्तिमान परमात्मा की सन्तान हैं, उनके भीतर ज्ञान, बल और प्रेम का अभाव हो ही
कैसे सकता है ? सुख के लिए वे जगत पर निर्भर रहे तो उनमें और देहाभिमानियों में
क्या अंतर रहा? उसे उस परम की ध्रुवा स्मृति बनाये रखनी है, सुख व आंनद का स्रोत
वह परमात्मा उनका अपना है, वह अनंत है, प्रेम व शांति का सागर है ! वह सहज ही
प्राप्य है, उसे अपने संस्कारों पर विजय पानी ही होगी, यह केवल कपोल कल्पना बन कर
न रह जाये, हर बार की तरह उसका संकल्प टूट न जाये इसका पूरा ख्याल रखना है.
बहुत बहुत आभार !
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