ग्यारह बजे हैं सुबह के. जून नये घर में हैं. काम शुरू
हो गया है. मिस्त्री, प्लम्बर, बढ़ई सभी आ गये हैं. अभी कुछ देर पहले बड़ी भतीजी के
लिए एक कविता लिखी. बंगाली सखी के लिए भी लिखनी है, उसके विवाह की वर्षगांठ आने
वाली है. अभी-अभी बड़ी ननद का फोन आया, नये घर की बधाई दी है. एक सखी ने अपनी भतीजी
के विवाह का कार्ड भेजा है.
परसों उन्हें वापस जाना है. दो दिन में घर काफी साफ हो जायेगा. जून आज भी वहीं
गये हैं. नन्हा व उसके मित्र दफ्तर चले गये हैं. नन्हा कल रात देर से आया, फिर भी
देर से सोया और अब उठकर चला गया है. उसकी दिनचर्या में कोई तारतम्य नहीं है, पर
उसका काम ही ऐसा है. मानव मन व तन की सहनशक्ति अपार है. उसे परमात्मा ही शक्ति से
भरता है. हर कोई अपने कर्मों के अनुसार ही पाता है तथा जीवन निर्वाह करता है. वहाँ
असम में योग कक्षा सुचारुरूप से चल रही है. अब भविष्य में कभी भी उसे कहीं जाना
हुआ तो मन में यह खेद नहीं रहेग कि साधिकाओं को कोई परेशानी होगी. यहाँ जो
शिवकुमारी नाम की मेड आती है उसे अपने निर्धारित काम के अलावा कुछ भी करने की
इच्छा नहीं होती. इसी तरह लोग अपने को सीमित कर लेते हैं. असीम परमात्मा ही सीमित
जीव बनकर देह में कैद हो गया है. मुक्तता का अनुभव इसी मानव देह में हो सकता है,
पर मानव इतनी गहरी नींद सोया है कि उसे इस सत्य की कोई खबर ही नहीं लग पाती.
कल वे घर लौट आये हैं. इस समय दोपहर के तीन बजने वाले हैं. मौसम बादलों भरा
है. कल रात भर वर्षा हुई. बगीचा फूलों से भर गया है. डहेलिया, सिल्विया, एन्थ्रेनियम,
कैलेंडुला, और भी जाने कितने फूल..एक हफ्ते में काफी परिवर्तन आ गया है मौसम में,
अब बसंत पूरे निखार पर है, कंचन के विशाल वृक्षों में भी गुलाबी और श्वेत फूल दिख
रहे हैं. सुबह स्कूल गयी थी, बच्चों को योग की कुछ क्रियाएं करवायीं. छोटी बहन से
स्काइप पर बात हुई. बड़े भाई को घर में पूजा करवानी है, समय कितनी तेजी से बीत जाता
है. भाभी को गये दस महीने हो गये हैं. पिताजी से भी बात हुई, वे अकेले हैं, भाभी
मायके गयी हैं, उनकी माँ का स्वास्थ्य ठीक नहीं है. भाई कल शाम को घर आ रहा है.
उसने इस बार देवदत्त पटनायक की पुस्तक, ‘माइ गीता’ खरीदी एअरपोर्ट से. जून ने कहा,
फ्लिपकार्ट से यह पुस्तक आधे दाम में मिल रही है. पर फ्लाइट में पढ़ने का जो आनंद
है, वह नहीं मिलता, फिर भी आगे से ध्यान रखना है. किताबें उसकी सबसे बड़ी मित्र
हैं, ज्ञान की देवी सरस्वती इनमें ही तो बसती है !
आदरणीय / आदरणीया आपके द्वारा 'सृजित' रचना ''लोकतंत्र'' संवाद मंच पर 'सोमवार' २८ मई २०१८ को साप्ताहिक 'सोमवारीय' अंक में लिंक की गई है। आमंत्रण में आपको 'लोकतंत्र' संवाद मंच की ओर से शुभकामनाएं और टिप्पणी दोनों समाहित हैं। अतः आप सादर आमंत्रित हैं। धन्यवाद "एकलव्य" https://loktantrasanvad.blogspot.in/
ReplyDeleteटीपें : अब "लोकतंत्र" संवाद मंच प्रत्येक 'सोमवार, सप्ताहभर की श्रेष्ठ रचनाओं के साथ आप सभी के समक्ष उपस्थित होगा। रचनाओं के लिंक्स सप्ताहभर मुख्य पृष्ठ पर वाचन हेतु उपलब्ध रहेंगे।
बहुत बहुत आभार ध्रुव जी !
Deleteसच है किताबें सबसे बड़ी मित्र होती हैं ...
ReplyDeleteस्वागत व आभार दिगम्बर जी !
DeleteNice Post :- Ladki Ka Number Whatsapp | Girl Mobile Number | Girls Mobile Number For Friendship
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