कल उन्हें यात्रा पर निकलना है, इस वर्ष की उसकी
पहली यात्रा. तैयारी अभी शेष है, नन्हे के लिए हलवा भी बनाना है. बड़े भाई से बात
की, उनके विवाह की सालगिरह है आज, भाभी के बिना पहली वर्षगांठ. कितना कठिन होगा
उनके लिए. इसी माह वह भी बंगलूरू जा रहे हैं, इकलौती बिटिया से मिलने. उसने भी भतीजी
से बात की, शायद वह उनसे मिलने आये. नहीं भी, सकती, कालेज में व्यस्त रहती है, और
बड़े शहरों में ट्रैफिक की समस्या इतनी है कि कहीं भी जाने के लिए कम से कम तीन-चार
घंटों का समय चाहिए. वैसे भी उसे औपचारिकताओं में विश्वास नहीं है, उसकी उम्र में
नूना भी ऐसी ही थी. आज सुबह वे उठे तो वर्षा नहीं हो रही थी, पर जैसे ही जूते पहन
कर बाहर निकले तो टप-टप बूंदें बरसने लगीं. शाम की योग कक्षा के लिए उसने एक सखी
को नियुक्त कर दिया है, ताकि उसकी अनुपस्थिति में भी निर्बाध रूप से कक्षा चलती
रहे. आज सरस्वती पूजा है, कुछ लोग कल भी मनाने वाले हैं. कुछ बच्चे आए थे, पूजा करने,
पिछले इतवार को उसने इस दिन का महत्व बताया था. उसी दिन सासु माँ की पुण्यतिथि थी,
उसने बच्चों को भोजन कराया था. अस्तित्त्व उनसे ज्यादा सजग है, वे एक दिन में
कितनी बार असजग हो जाते हैं. पूजा की बात वह भूल ही गयी थी पर कक्षा छह का एक
विद्यार्थी सभी बच्चों को लेकर आया. कल ‘सिया के राम’ के कई अंक देखे, मन-प्राण
भीतर तक एक अनोखी शांति से भर गये.
साढ़े आठ बजे हैं, आधे घंटे बाद उसे ‘मृणाल ज्योति’ जाना है, आज वहाँ सरस्वती
पूजा हो रही है. साढ़े ग्यारह बजे यात्रा के लिए निकलना है. इस बीच बच्चों को घर
में हुई पूजा की प्रसाद स्वरूप खिचड़ी भी खिलानी है, स्वयं भी भोजन करना है. दस बजे
लौट आना होगा, तभी सब कार्य हो पाएंगे. शेष सभी तैयारी हो चुकी है. नैनी का काम
अभी शेष है, वह बहुत काम करती है, बिना परेशान हुए. अगले महीने उसकी डिलीवरी होनी
है, पर वह जरा नहीं थकती. उसकी देवरानी श्वेत फूलों की एक माला बना रही है, जो वह
पूजा में ले जाएगी. जून ने फल लाकर दिए हैं. भीतर का मौन अब स्थिर होने लगा है. कल
शाम को योग कक्षा में एक साधिका जब रोने लगी तो उसे सहज ही आश्वस्त कर पायी, इस पर
स्वयं को भी आश्चर्य हुआ. वह इतना स्वाभाविक था, उसे भी नहीं पता कैसे उसके शब्द
सुनकर वह क्षण में ही सहज भी गयी. उम्मीद है उसकी अनुपस्थिति में भी वे सभी योग
कक्षा में आएँगी. योग का उद्देश्य ही है, लोगों को आपस में जोड़ना. सद्गुरू सारी
दुनिया को एक परिवार के रूप में जोड़ रहे हैं और उसे तो कुछ महिलाओं को ही आपस में
जोड़ना है. आज वर्षा थमी हुई है. वर्षा के कारण सुबह पाँच दिन बाद वे टहलने गये, इक्का-दुक्का
लोग ही दिखे.
समय, दिन, तारीख जैसे थम गये हैं. देख-देख कर याद करके लिखना पड़ रहा है कि आज
कौन सी तारीख है. भीतर कितना शून्य प्रतीत हो रहा है, तन में भी और मन में भी,
हौलो एंड एम्प्टी का अर्थ आज समझ में आ रहा है. गुरूजी का बताया यह ध्यान जो
वर्षों पहले पहली बार किया था, आज फलित हुआ है. उस दिन विपासना ध्यान में एक
साधिका जिस पिघलने के अनुभव का जिक्र कर रही थी, वह भी शायद ऐसा ही कुछ होता होगा.
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