कल कुछ नहीं लिखा, दोपहर को जून चेन्नई के लिए
रवाना हो गये, उसके बाद सिर में दर्द के कारण सो गयी, उठी तो तीन बजे थे, भूख तब
भी नहीं लगी थी. रात्रि को योग कक्षा के बाद ही भोजन किया. पित्त बढ़ने के कारण ही
ऐसा हुआ होगा. नींद से उठाने के लिए एक स्वप्न आया, महिला क्लब की मीटिंग उनके
यहाँ है, पर उसने उनके लिए भोजन आदि की कोई व्यवस्था नहीं की है. उसी स्वप्न में
माँ-पिताजी को भी देखा. बाद में पिताजी से फोन पर बात की, वह अपने भोजन के लिए
कहने दुकान पर गये थे, होटल वाला सुबह शाम घर पर ही टिफिन दे जायेगा. भाभी कुछ
दिनों के लिए मायके गयी हैं, उनकी माँ का स्वास्थ्य ठीक नहीं है. वह बड़ी बेटी हैं
और अपनी जिम्मेदारी बखूबी निभा रही हैं
आज सुबह स्कूल गयी, खड़े होकर करने वाला ध्यान कराया, अच्छा रहा. उसका मौन ही
उन्हें कुछ दे सकता है, उसके भीतर का मौन ! ध्यान साक्षी में टिकना ही है. भीतर जो
सन्नाटा है, स्थिरता है, एकरसता है, वही साक्षी है. जो सबकुछ देखता रहता है, पर
अचल रहता है. आज सिर में दर्द नहीं है, यह भी वह देख रहा है, दर्द के कारण भीतर
गहराई में जाने का अवसर मिला. पुराने संस्कार से मुक्ति का अवसर भी मिला. सद्गुरू
से वार्तालाप करने का भी ! शाम को एक घंटा कैसे बीता, पता ही नहीं चला. ज्ञान के
पथ पर चलना सचमुच तलवार की धार पर चलने जैसा है, पर एक बार जिसे साक्षी में टिकना
आ जाये, उसके लिए यह श्वास लेने जितना सहज है.
शाम के पौने छह बजने को हैं, कुछ देर पहले लाइब्रेरी से पुस्तकें लेने गयी, आज
शुक्रवार है, सो लाइब्रेरी बंद थी. जून वापस आकर क्लब में चल रही एक सरकारी मीटिंग
में चले गये हैं. ढेर सारे फल लाये हैं और मेवे भी, कई तरह की चाय भी. आज सुबह
ध्यान में एक दृश्य देखा, प्लेट में चाय डालकर कोई दे रहा है. बचपन में सुबह का
नाश्ता होता था चाय के साथ तिकोना परांठा. तब से कितने गहरे संस्कार मन पर पड़ गये
हैं, पर इनसे मुक्त होना ही है. इस समय कितनी शांति प्रतीत हो रही है. जब कोई
इच्छा नहीं रह जाती, तब ऊर्जा स्वयं पर लौट आती है. स्वयं से मिलन होता है और तब
परमात्मा के सम्मुख जाने लायक वे होते हैं. आज भी पिताजी से बात की, उन्होंने कहा,
ओशो की एक किताब में पढ़ा, अंग्रेजी के लेखक इमर्सन ने कहा है, शिक्षा का अर्थ
शाब्दिक ज्ञान नहीं है, वह ज्ञान जो व्यक्त्तित्व से झलकता है, वही शिक्षा है. जो
किसी के होने मात्र से झलकती है, व्यवहार से झलकती है, वही शिक्षा है. आत्मा के
बारे में कोई कितना भी ज्ञान सुन-पढ़ ले, जब तक निरंतर आत्मा में स्थिति नहीं हो
जाती, तब तक लक्ष्य से दूरी बनी ही हुई है.
साढ़े नौ बजे हैं रात्रि के, जून अभी तक क्लब से नहीं आये हैं, दस बजे तक
आयेंगे सम्भवतः. मन आज कितना हल्का है, जैसे हो ही न. शाम को लाइब्रेरी से हिंदी
की दो किताबें लायी, निराला की कहानियाँ और बच्चन की कविताएँ. सेक्रेटरी का फोन
आया, कल मीटिंग है और कल ही शाम को क्लब में ‘’नीरजा’ फिल्म है. नन्हे से बात की,
वह घर का काम करवा रहा है, काफी कुछ खराब था, विशेष तौर से नल आदि, जो बदलवाने पड़े
हैं, इसी माह में वह शिफ्ट हो जायेगा. सुबह घर का साप्ताहिक सफाई का दिन था, हीटर
व ब्लोअर अब पैक करके रख दिए हैं, रजाई भी वापस अपने स्थान पर चली गयी है. कल
फरवरी का अंतिम दिन है. आज इस मौसम में पहली बार सुबह से स्वेटर नहीं पहना है. आम
के पेड़ पर बौर आ गया है और कंचन भी खिल गया है, हालाँकि बहुत अधिक फूल अभी नहीं
आये हैं. मालिन ने बताया, माली सुबह से पीकर पड़ा है, दोपहर को उसने भोजन भी नहीं
किया. आदमी कितना बेसमझ है, कितना दुखी भी, अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारता है.
आज कई दिनों के अख़बार खंगाले. उनके अनुसार देश के हालात कुछ ठीक नजर नहीं आते.
देशभक्ति के नाम पर कुछ लोग बवाल कर रहे हैं और कुछ लोग देशद्रोह को अपना रहे हैं.
समाज में एकरसता की जो धारा थी वह सूखती जा रही है. भारत को जोड़ने वाला जो एक
सूत्र था वह कहीं खो गया सा लगता है !
एक सूत्र नहीं बहुत कुछ खो गया है। सुन्दर।
ReplyDeleteस्वागत व आभार सुशील जी, सही कहा है आपने, वक्त की धारा में बहुत कुछ बह गया है....लेकिन यहाँ कुछ भी नष्ट नहीं होता, कभी न कभी फिर लौट कर आएगा..
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