आज बीच-बीच में धूप निकल रही है, वर्षा भी कल रात्रि से
नहीं हुई. नन्हे की आज संस्कृत की परीक्षा है, वह स्कूल जाते वक्त थोड़ा घबराया हुआ
सा लग रहा था, पर उसका इम्तहान अच्छा होगा, क्योंकि मेहनत तो की है. उसे पढ़ाते समय
नूना को कठोर वचन नहीं बोलने चाहिए पर कभी-कभी अनजाने में कह जाती है, उसे भी
लापरवाही से काम करना छोड़ना होगा, खैर.. जीवन भर इन्सान कुछ न कुछ सीखता रहता है.
जून ज्यादा काम के कारण आज सुबह की तरह लंच के बाद भी जल्दी चले गये. उसने कुछ देर
ध्यान किया पर ईश्वर से संवाद का अभ्यास न होने के कारण मन भटक कर संस्कृत पर आ
गया. कल स्वेटर भी पूरा हो गया, आज से नन्हे का स्वेटर बनाना शुरू करेगी, एक महीने
में यह भी बन जाना चाहिए. उसकी पीली साड़ी भी तैयार होकर आ गयी है, अभी पहनकर नहीं
देखी, उस पर यह रंग अच्छा भी लगेगा या नहीं ? पिछले दिनों स्वयं पर ज्यादा ध्यान
नहीं दिया, व्यायाम नहीं किया, सम्भवतः इसी कारण या डाइटिंग की वजह से चेहरा कमजोर
लग रहा है, पर डाइटिंग से एक लाभ अवश्य हुआ है, भारीपन की फीलिंग कम हो गयी है.
गुलदाउदी के फूल खिलने शुरू हो गये हैं, गेंदा, गुलाब पहले से ही खिल रहे हैं,
माँ-पापा के आने तक कैलैंडुला तथा फ्लॉक्स भी खिलने लगेंगे, उनका आना अभी तो एक
स्वप्न ही लगता है जो कभी हकीकत बन जाये !
आज सुबह उसने पढ़ा, इन्सान
को मूडी नहीं होना चाहिए, जो अनजाने में वह होती जा रही थी. ध्यान किया पर दस मिनट
से ज्यादा नहीं कर सकी, चारों ओर से विचार आने लगे. कुछ देर पहले सेन्ट्रल स्कूल
से एक अध्यापिका ने फोन किया, वह चाहती हैं नूना गणित पढ़ाने वहाँ जाये और तब से
वही विचार मन में छाया है.
साल के अंतिम महीने का
प्रथम दिवस ! आज धूप निकली है, इस वक्त वह संगीत कक्षा से आ रही है. वर्षों पहले
बचपन में जब वह कक्षा छह में थी, संगीत कक्षा में दाखिला नहीं ले पायी थी, क्योंकि
जिस दिन टेस्ट था वह अनुपस्थित थी. और फिर साल भर कला की कक्षा में बैठना पड़ा था.
अजीब था वह स्कूल भी. पर आज ‘राग यमन’ सीख कर आ रही है, संगीत का कोई एक सुर तो
ऐसा होगा जो उसके गले से निकल सकता है, ‘करत करत अभ्यास ते जड़मति होत सुजान’ ! हल्का
दर्द है सिर में, जून होते तो फौरन एक कप चाय बनाकर ले आते. उन्हें उसका स्कूल में
काम करना इसीलिए पसंद नहीं, वह उसे थका हुआ, नन्हे और स्वयं को उपेक्षित नहीं
देखना चाहते. वह ऐसे ही खुश हैं जैसे वे लोग अभी हैं. उन अध्यापिका को उसने फोन
नहीं किया तो उन्होंने स्कूल से फोन करके पूछा, उन्हें बुरा तो लगा होगा पर वह न
के सिवा और कुछ कह ही नहीं सकती थी. नन्हे के स्कूल जाने के बाद उसने कुछ देर वह
किताब पढ़ी जिसमें बहुत सरल भाषा में जीवन जीने का सही तरीका सिखाया गया है.
आज जून ने आधे दिन का
अवकाश लिया है. कल उन अध्यापिका को मना करने के बाद से कई बार स्वयं से बात कर
चुकी है मन ही मन. कुछ देर जून से भी बात की पर परिणाम वही रहा. अपने लिए जीने वाले
सामान्य लोग ही तो हैं न वे, अपने आसपास की जरूरतें भी महसूस नहीं कर पाते, अपने
परिवार व अपनी सुख-सुविधाओं से आगे कुछ सोच नहीं पाते, सीमित दायरा और सीमित सोच
है, शायद इसीलिए अपनी सामर्थ्य सीमित जान पडती है, भरोसा नहीं होता अपनी शक्तियों
पर, अपनी सही कीमत तक नहीं आंक पते. आज धूप आंखमिचौनी खेल रही है. पत्रिका के लिए
पहली कविता व लेख मिला आज. बगीचे से एक पका हुआ पपीता भी मिला आज, उसे याद आया
पिछली सर्दियों में बगीचे में घास पर फूलों के बीच बैठकर लिखती थी, उनकी महक का
असर भी विचारों पर पड़ता ही होगा. कल वह ठीक से गा सकी पर बिना हारमोनियम के गाना
बहुत मुश्किल है.
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