आज हफ्तों बाद डायरी खोली है. बहुत दिनों से न लिखने के
कारण अभ्यास छूट गया सा लगता है. इस दौरान वे घर जाकर वापस आ भी गये. उसने
वापसी में गोहाटी से असम सिल्क की एक साड़ी ली. एक दिन वह तिनसुकिया गयी, बालदिवस पर
बच्चों को देने के लिए लेडीज क्लब की तरफ से ढेर सारे गिफ्ट्स खरीदे, जिन्हें कल एक
सखी के साथ मिलकर पैक किया. सेक्रेटरी के कहने पर आज सुबह छह सदस्याओं को फोन
किये, तेरह को मीटिंग है. जिन्दगी लहरों पर शांत भाव से बहती नाव की तरह आगे बढ़ी
जा रही है. आज सवा
नौ बजे के लगभग भूकम्प के दो झटके महसूस हुए. पिछले तीन दिनों से मौसम काफी ठंडा
हो गया है, वर्षा भी हो रही है, चारों तरफ हरियाली और ठंडक है, ऐसा मौसम उसे भाता
है. सुबह वक्त पर उठे वे, नन्हा आज पहली बार यात्रा के दौरान खरीदा ब्लेजर पहन कर स्कूल
गया है.
आज ‘बाल दिवस’ है, चाचा
नेहरु का जन्मदिन, आज ही ‘गुरुनानक जयंती’ भी है और नूना के पिता का जन्मदिन भी,
दादी को अंग्रेजी महीनों का ज्ञान नहीं था उन्हें इतना याद था कि टुबड़ी के दिन
पुत्र जन्म हुआ था. पड़ोस के बच्चे का जन्मदिन भी आज है और उड़िया सखी के बेटे का जन्मदिन
भी. और इस वर्ष आज ही ‘गुड फ्राइडे’ भी है. कल उनकी मीटिंग अच्छी तरह सम्पन्न हो
गयी, ‘रेकी’ पर एक भाषण दिया गया, किन्ही श्री और श्रीमती दास के गजल व भजन ने तो
समां ही बाँध दिया. वह सात बजे वापस आ गयी, भोजन बनाया, जून ने सूप बनाकर रखा था,
आज उन्होंने फलाहार लेने का व्रत लिया है शाम तक, रात जन्मदिन की पार्टी में जाना
है. जून एक पेपर लिख रहे हैं उसी सिलसिले में दफ्तर गये हैं, नन्हा ‘बाल दिवस’ पर
दिखाई जाने वाली फिल्म का इंतजार कर रहा है और उसने आज सुबह ‘परमहंस योगानन्द जी’
की पुस्तक पढ़कर पुनः ध्यान किया, मन स्थिर हो पाया मगर कुछ देर के लिए ही. मानव मन
को न ही भौतिक सुखों में शांति मिलती है, न ही वह पूरी तरह अध्यात्मिक क्षेत्र में
समर्पित हो जाता है, वह त्रिशंकु की तरह बीच में ही रहने को विवश है. लेकिन जो
पूर्ण विश्वासी होते हैं उनके साथ ऐसा नहीं होता होगा. उसका शंकालु मन एक ओर टिकता
ही नहीं. पिछले कई दिनों की स्वयं के आगे अनुपस्थिति इसी का परिणाम थी.
आज कई हफ्तों बाद संगीत
कक्षा में जाना है. सोमवार है हफ्ते का प्रारम्भ. मौसम ठंडा है पर धूप भी पुरजोर
है, सो ठंडक भली लग रही है. कल बच्चों के खेल आदि भी हो गये, सुबह जल्दी जाने
वालों में वह प्रथम थी, शेष सभी धीरे-धीरे आराम से आ रहे थे. कार्यक्रम ठीक ही रहा
जैसे इस तरह के कार्यक्रम होते हैं, कुछ शिकायतें, कुछ गिले. छोटे-छोटे बच्चों ने
उत्साह से दौड़ में भाग लिया, उन्हें देखकर विशेषतया एक बच्चे को, जिसका नाम पंछी
था, देखकर अच्छा लगा. उसे घर आने में दोपहर के दो बज गये, थकान भी हो गयी थी. भोजन
बनाने के साथ ही जून ने सारे कार्य अकेले ही किये जो वे इतवार को मिलजुल कर करते
हैं, शाम को वे बाजार होते हुए एक मित्र के यहाँ से गये, जिनके पिता इन दिनों आए हुए
हैं, अंकल से मिलकर कई बातों का ज्ञान हुआ. वह अपने पुराने दिनों को बहुत मुग्धता
से याद करते हैं, क्या सभी ऐसा करते हैं? युवा भविष्य की ओर देखते हैं और वृद्ध
अतीत की ओर. उसने सोचा, अभी व्यायाम करना है, संगीत अभ्यास भी, आधा घंटा टीवी पर
सैलाब देखना है, सो लिखना यहीं बंद करेगी, वैसे भी अभ्यास न रहने के कारण लिखने का
मूड नहीं बन पा रहा है, किसी दिन देवी सरस्वती की कृपा होगी तो स्वयंमेव ही लेखनी
से धरा फूटेगी, वह दिन जल्द ही आये ! आमीन !
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