क्लब की प्रेसीडेंट का फोन आया,
उन्होंने कार्यक्रम की थीम के लिए कुछ नाम पूछे, वह फोन पर बहुत विनम्रता से, मधुर
आवाज में बात कर रही थी. उसने कुछ शब्द बताये, आड़ोलन, आह्वान, आह्लाद, स्फुरण,
स्पंदन, समन्वय, तारतम्य, अनुराग, शुचिता, अनुरक्ति, मकरंद, पराग, किसलय आदि, पर
कोई भी शब्द उनके दिल को स्पर्श नहीं कर सका. आज नन्हे ने सुबह उठने में फिर नखरे
किये, ठंड में बिस्तर से निकलने का उसका मन ही नहीं था. उन्होंने टीवी पर एक साथ
बैठकर क्रिकेट मैच देखा, भारत ने पाकिस्तान को हरा कर बांग्लादेश का independence
cup जीत लिया.
रात्रि के पौने दस बजे
हैं, सुबह से लिखने का समय अब मिला है, वह भी उसने चुराया है, जून तो सो जाने को
ही कह रहे हैं. आज दिन अच्छा था, सुनहरी धूप से भरा हुआ. एक दिन की धूप से ही ठंड
कम हो गयी है. संगीत की कक्षा ठीक रही पर उसे लगता है जितना सहज होकर वह अभ्यास करती है वहाँ वह सहजता खो जाती है. अगले
हफ्ते उनका हारमोनियम भी आ जायेगा. सुबह माँ ने कपड़े प्रेस कर दिए थे. उसने नाश्ते
में पोहा बनाया था, उन्हें पसंद आया, माँ-पापा को भी यहाँ रहना अच्छा लग रहा है,
और उनका जीवन भी पहले से कहीं ज्यादा भरा हुआ हो गया है. उसने ध्यान दिया है कि आजकल
मन एक अलग तरह से शांत रहता है. बैकडोर नेबर के यहाँ गयी, जिसने घर में ही ब्यूटी
पार्लर खोला है, पर वहाँ वह ‘मिस इंडिया’ की माँ का फेशियल करने में व्यस्त थी,
उनके गर्व भरे शब्दों व उनकी बेटी की बातें उनके मुंह से सुनीं, TOI में उसका फोटो
भी देखा. पहली बार असम की कोई सुन्दरी प्रतियोगिता में विजयी हुई है. शाम को उनकी
मीटिंग सामान्य रही, इतने से काम के लिए सभी area coordinators को बुलाना व दो
घंटे बिठाए रखना सार्थक नहीं लगा, खैर ! अभी तक भी थीम के लिए सही शब्द नहीं चुना
जा सका है, महिलाओं से सम्बन्धित ऐसा शब्द उन्हें चाहिए जो उनके बारे में सब कुछ
कहता हो !
जून अभी-अभी गये हैं छाता
लेकर, सुबह से जो बादल झींसी के रूप में बरस रहे थे अब तेज हो गये हैं. आज भी
पार्लर का अनुभव कुछ अलग ही रहा, एक तो समय बहुत लगाया, दूसरे घरों में काम करने
वाली चार-पांच लडकियाँ भी आ गयीं, उस छोटे से कमरे में इतने लोग, क्यों न हों,
आखिर वे उसकी क्लाइंट थीं. माँ सुबह से जून के स्वेटर में डिजाइन डालने का प्रयास
कर रही थीं, काम चाहे कठिन हो अगर उन्हें विश्वास हो कि कर सकेंगी तो वह उसे छोडती
ही नहीं हैं और अगर थोड़ा सा गलत हो जाये तो पूरा खोलने में जरा भी हिचकिचाती नहीं
हैं. दोपहर को टीवी पर दूर दर्शन के धारावाहिक देखती हैं, औरत, अपराजिता और वक्त
की रफ्तार....आदि. पिता दिन भर कुछ न कुछ पढ़ते रहते हैं, लाइब्रेरी से वे किताबें
लाये थे, एक लता मंगेशकर पर लिखी किताब दूसरी सरदार पटेल के जीवन पर. शाम को जून
उन्हें सांध्य भ्रमण पर ले जाते हैं. उसने सोचा, जून हैरान होते होंगे यह देखकर कि
आजकल नूना दोपहर के भोजन से पहले फल और बाद में कोई स्वीट डिश वह कितने आराम से खा
लेती है, इन्सान का बचपन साये की तरह सदा उसके साथ लगा रहता है.
नेता जी का जन्मदिन, आज
धूप सुबह से ही भरपूर निकली है, जमीन का कतरा-कतरा धूप से भर गया है. दोपहर
उन्होंने लॉन में गुजारी, घास पर फूलों के बीच, मगर सूरज की तरफ पीठ करके. नन्हा
आज सर्दी खांसी के कारण स्कूल नहीं गया था. जून का फोन आया है, वह उसे डॉ के पास
ले जाने आ रहे हैं. एक परिचिता अस्पताल में है, उसने सोचा वह भी उसे देखने चली
जाएगी.
पिछले दो-तीन दिन डायरी नहीं
खोली, इतवार को वे तिनसुकिया गये थे, माँ-पापा ने केन का कुछ सामान खरीदा और कुछ
तांत की साड़ियाँ भी. उसका चिर-प्रतीक्षित हारमोनियम खरीदने का स्वप्न भी पूरा हो
गया, पर अभी उँगलियाँ अभ्यस्त नहीं हो पा रही हैं, संकोच वश पूरी आवाज से गा भी
नहीं सकी, सभी लोग घर में थे. कल छब्बीस जनवरी का अवकाश था, टीवी पर ‘सरदार बेगम’
देखी, श्याम बेनेगल की एक फिल्म. आज सुबह उसने बहुत दिनों बाद statistics पढ़ाई. हिंदी
का कोर्स समाप्त हो गया है. उस दिन बहुत दिनों बाद असमिया सखी आई, पहले की तरह कुछ
नुक्ताचीं और कुछ प्रशंसा के भाव से भरी...कल शाम वे एक मित्र के यहाँ गये, वे
यहाँ के जीवन से अन्तुष्ट हैं, कहीं भी और जाना चाहते हैं, पर उसे यह स्थान पसंद
है, यहाँ की हवा, मिटटी, सुगंध सभी कुछ ! उसकी खुशियाँ उसके विचारों और कार्यों पर
आधारित हैं न कि किसी बाहरी वस्तु पर.
No comments:
Post a Comment