Wednesday, February 19, 2014

ऊन के लच्छे


बस दो घंटे और प्रतीक्षा, फिर जून उन्हें लेकर आ जायेंगे. आज अब तक का दिन मिला-जुला व्यतीत हुआ है. धूप का कहीं पता नहीं था दिन भर. जून के फोन से पता चला कि ट्रेन रात्रि के साढ़े ग्यारह बजे आई थी यानि पूरे सात घंटे लेट. सुबह नैनी आने में देरी कर रही थी, शायद उसकी तबियत ठीक नहीं थी, बाद में वह अपने बेटे को लेकर आई, उसी ने बर्तन धोये, बहुत काम जानता है वह. लेकिन उसके न आने से वह कितना परेशान हो गयी थी, अब कल से काम भी बढ़ जाने वाला है, ऐसे में यदि वह काम पर न आए तो...इसका अर्थ हुआ वह उस पर पूरी तरह आश्रित हो गयी है. भविष्य में किसी भी समय उसक चले जाने के लिए मन को तैयार रखना चाहिए  कल रात स्वप्न देखा कि सुबह उठ नहीं पायी है, कुछ भी काम नहीं हुआ है और सब आ गये हैं, सुबह उसकी छात्रा अपने साथ बीहू पर बनने वाले ‘पीठे’ लायी थी, उसकी माँ ने बड़े स्वादिष्ट ‘पीठे’ बनाये हैं, पहली बार उसे असम का चावल और तिल व नारियल से बना यह व्यंजन खाकर संतुष्टि हुई, नाश्ते में वही खाए. आज रियाज भी किया, ‘खमाज’ की सरगम सिखाई है अध्यापिका ने. उस दिन लाइब्रेरी से जो किताबें लायी थी अभी पढ़नी शुरू नहीं की हैं, बिमल राय की पुस्तक यकीनन अच्छी होगी और चेखव के नाटक भी.

कल रात्रि से शुरू हुई वर्षा अभी तक रुकी नहीं है. इस समय टीवी पर ‘गोपी गीत’ आ रहा है, मुरारी बापू जी के वचनों में बहुत मधुरता है, प्रभाव है. रात को नींद ठीक से आई, एक स्वप्न में नन्हे की पेटिंग जो फट गयी थी, एक सखी के साथ ठीक कर रही थी. कल शाम माँ-पापा आ गये, बहुत सारा सामान लाये हैं और उन तीनों के लिए वस्त्र भी. छोटी बहन ने उनके लिए कागजी नींबू भेजे हैं, नन्हे के लिए कुछ सामान और अपनी छोटी बिटिया की एक तस्वीर भेजी है, छोटी भाभी ने ने अपने मकान के मुहूर्त के उपलक्ष में अपनी माँ की तरफ से उपहार भिजवाया है.

आज माघ महीने का प्रथम दिन है, यानि माघी, उत्तर भारत में इसी को ‘खिचड़ी’ कहते है, आकाश में पतंगें ही दिखती हैं, जो बड़े उल्लास से उड़ाई जाती हैं. आज बीहू का अवकाश है, सुबह नाश्ते के बाद जून सबको बाजार ले गये फिर अपना दफ्तर दिखाने भी. अब दोपहर के साढ़े बारह बजे हैं, पिता असमिया का अपना आज का पाठ पढ़ व लिख रहे हैं और माँ कादम्बिनी पढ़ रही हैं. जून outlook पढ़ रहे हैं और नन्हा साइंस का गृह कार्य कर  रहा है. मौसम ठंडा है पर वर्षा न होने के कारण रोशनी काफी है. कल शाम उन्होंने लोहड़ी जलायी थी, दो मित्र परिवार भी आए थे, मूंगफली और रेवड़ी का प्रसाद बांटा.

आज ठंड थोड़ा कम है, कल शाम को कोहरा घना था. शाम को एक मित्र परिवार आया, माँ-पापा ने उन्हें ‘योग-वशिष्ठ’ की चर्चा सुनाई. रात्रि के भोजन में उसने चने की सब्जी और बैंगन भाजा बनाया था. जून इस समय पिता को लेकर तिनसुकिया गये हैं, वापसी की टिकट कराने और थोड़ी बहुत शापिंग करने भी. माँ उसे परिवार के अन्य सदस्यों भाइयों- भाभियों व उनके बच्चों की कई बातें बताती रहती हैं. बनते-बिगड़ते सबंधों, कभी खटपट कभी मेल की बातें, सुनकर अच्छा भी लगता है फिर उनकी व्यर्थता पर खीझ भी, पर दोनों ही क्षणिक होते हैं, जीवन इनसे कहीं अधिक महत्वपूर्ण है, प्रकृति की कोमलता व स्निग्धता, फूलों का वैचित्र्य, मानव मन की अथाह गहराई, ईश्वर की सर्वव्यापकता और फिर भी उसका छिपे रहना, कितनी ही बातें हैं जो मन को बांधे रखती हैं.
आज मौसम और भी ठंडा हो गया है, ठंडी बर्फीली हवा और रुक-रुक कर बरसता पानी भी. शाम होने को है पर अँधेरा हो गया है. सुबह वे जल्दी उठे पर माँ-पापा उससे भी पहले उठ चुके थे, चाय पीने की तयारी में थे. उनके यहाँ रहने से बहुत अच्छा लग रहा है. जीवन के प्रति उत्साह बढ़ गया है, घर अपना और अपना लगने लगा है. शाम होते ही कहीं जाने की ललक अब पैदा नहीं होती. जून पिता के साथ लाइब्रेरी गये हैं, माँ ने आज सुबह जो स्वेटर खोल दिया था, उसके लच्छों को भाप दिलाकर गोले बना रही हैं.


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