Tuesday, February 11, 2014

स्वामी योगानन्द का अनुभव


आज कई  हफ्तों बाद बुधवार को कपड़े धोने की मशीन लगाई, सर्दियों में नैनी को ठंड में जितने कम कपड़े धोने पड़ें उतना ही अच्छा है न, मशीन को तो ठंड लगती नहीं, आज ये बेसिर-पैर की बातें क्यों कर रही है. कुछ देर पहले एक सखी से बात की उसने किन्हीं परिचिता के स्कूल जाने की कही बात कही, सो मन का एक कोना फिर पंख फड़फड़ा रहा है, कितना हल्का है उसका मन, हवा के एक झोंके के साथ इधर-उधर चला जाता है. मान लेना चाहिए कि जून को किसी का भी तकलीफ उठाना पसंद नहीं है, पर उस ख्वाहिश का क्या करे जो लाख गहरा दबाने पर भी अंकुर सी उठ खड़ी होती है, तभी तो उनके पूर्वजों ने कहा है कि इच्छा ही सारे दुखों की जड़ है, न ख्वाहिश होगी न उसके अधूरा रहने की पीड़ा होगी. किसी को जो नहीं मिलता उसी की ख्वाहिश रहती है और जो मिल जाये उस की कद्र नहीं रहती, उसके पास ढेर सारा वक्त है और उसमें भरने के लिए कल्पना के रंग हैं, इस वक्त का सम्मान करना चाहिए और जून के प्रेम का भी. नन्हा आज सुबह साढ़े पांच बजे उठकर टेनिस कोचिंग में गया था और वापस आकर समय पर तैयार भी हो गया, स्कूल से आकर फिर कोचिंग और शाम को स्कूल से मिला गृहकार्य, उसकी दिनचर्या व्यस्त हो गयी है पर वह खुश है बेहद खुश ! 

आज सुबह नाश्ता करते समय याद आया, आज उसकी बंगाली सखी के विवाह की वर्षगाँठ है, उन्हें फोन करके शुभकामना दी, उन्हें भी यकीनन उतनी ही ख़ुशी हुई होगी जितनी उन्हें. आज धूप खिली है और वह पिछले बरामदे में बठी है, बरसों बाद जब वे यहाँ से चले जायेंगे तो यह घर और धूप याद आएंगे. आज जून भी सुबह जल्दी उठ गये थे, उन्होंने चाय पी और समाचार सुने साथ-साथ, वक्त गुजरने के साथ साथ उनके दिल एक-दूसरे के ज्यादा करीब होते जा रहे हैं. कल दोपहर को उन्होंने सउदी अरबिया के सपने देखे साथ-साथ, जहाँ के लिए जून ने apply किया है. कल उनका बायोडाटा देखा, पिछले पन्द्रह वर्षों में कई पेपर लिखे हैं, सब देखकर उसे गर्व हुआ. कल शाम एक मित्र परिवार आया अपने साथ बगीचे के ‘बनाना’ लेकर बहुत मीठे और पके हुए केले ! वह पूसी तो अब उनके परिवार की सदस्य ही बन गयी है, दोपहर भर दरवाजे के बाहर रहती है. कल रात तो बरामदे में उसके साथ एक और बिल्ली भी थी.

आज छोटे भाई की शादी की सालगिरह है, आज से नौ वर्ष पहले वह सिर्फ एक-दो दिन के लिए ही जा पाई थी उसकी शादी में. कुछ समय पूर्व ही ससुराल में दुखद घटना घटी थी. सुबह नन्हे को उठाने में दिक्कत हुई पर समय पर जा पाया. कल उस अंग्रेजी में सौ में से ९१ अंक मिले, पर उन्हें अभी भी कम लग रहे हैं, जो गलतियाँ उसने की हैं, वे नहीं करनी चाहिए थीं. उसके English teacher के कारण लिखाई जरूर सुधर गयी है, संस्कृत में भी उसने सफाई से काम किया है. उन्हें उस पर गर्व है. आज पीटीवी पर एक फनकार अफसाना निगार का इंटरव्यू सुना / देखा. वह नौकरी करते रहे और साथ-साथ लिखते भी रहे. उसे भी गौहाटी से आने वाले पत्र की प्रतीक्षा है जिससे रचनात्मक लेखन में डिप्लोमा कोर्स की शुरुआत हो सके. कल दोपहर डाइनिंग टेबल पर बिल्ली के एक बच्चे को बैठा देखकर बहुत आश्चर्य हुआ, उस पर बरबस ही स्नेह उमड़ आया पर आज वह दिखाई नहीं दे रहा, कहीं रात्रि की ठंड में उसे कुछ हो न गया हो? दोपहर उसे  हिंदी कक्षा के लिए भी जाना है, सो संगीताभ्यास अभी करना है. वैसे भी कविता लिखने के लिए सिवाय शीर्षक के अभी कुछ नहीं है, “आदमी और दरख्त”, अच्छा शीर्षक है न !

“हम ईश्वर को पा सकते हैं, उसे अनुभूति में उतार सकते हैं, वह हमारे सवालों का जवाब दे सकता है, ध्यान और मनन द्वारा हम उसके निकट जा सकते हैं.” कितने दृढ निश्चय के साथ ये सारे शब्द स्वामी योगानन्द ने कहे हैं, उन्होंने ईश्वर को पाया था, उससे साक्षात्कार किया था, वे भी यानि वह भी ऐसा अवसर पा सकती है, लेकिन उसके लिए दुनिया के सारे सुखों को भुलाकर ईश्वर में ही अपना सुख खोजना होगा, अपना सारा समय उसी में लगाना होगा, उसे दिल से प्यार करना होगा, उसे पुकारना होगा और यकीनन वह सुनेगा, वैसे भी उसने सदा विपत्ति में उसकी सहायता की है. आज सुबह नन्हा कोचिंग के लिए गया, कल शाम को वह नहीं जा पाया. वह उस पर क्रोधित हुई, थकान के कारण सम्भवतः वे दोनों झुंझलाए हुए थे, स्कूल से आते ही उसका स्वागत नहीं किया था क्यों कि वह भी उसी वक्त आई थी. अपने बाल सुलभ स्वभाव के कारण वह जल्दी ही भूल गया और पढ़ाई करने लगा.





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