आज सात तारीख है, उसने सोचा, जून के आने पर उसे ‘विश’ करना है. सात तारीख आने
पर कुछ याद दिला देती है. चाहे किसी भी माह की हो. आज यूँ भी बड़े दिनों बाद धूप
निकली है, पर ठंडी हवा भी बह रही है. कल शाम तापमान १० डिग्री था, ढेर सारे वस्त्र
पहन कर वे टहलने गये, उसका काम आज जल्दी हो गया है, सोचा वह किताब पढ़ेगी जो कल लाइब्रेरी
के चिल्ड्रेन सेक्शन से लायी है, “Little Woman”, नन्हे को सुनाने के लिए अच्छी
रहेगी. कल फिर उसने सोने में सवा दस बजा दिए, वह दीर्घ सूत्री है, किसी काम को
जल्दी से समाप्त नहीं करता, आराम-आराम से करता है, शायद अपने चाचा पर गया है, जिसे
वह ठीक से पहचानता भी नहीं. कल मंझले भाई का पत्र बहुत दिनों बाद आया, लिखता है ‘’ग्रह
दशा कुछ ठीक नहीं चल रही है, इन्सान को अपने अच्छे-बुरे कर्मों का फल यहीं भोगना
पड़ता है’’.
चलो उठ खड़े हों, झाड़ें
सिलवटों को
मन के कैनवास को फैला लें
क्षितिज तक
प्यार के रंगों से फिर कोई
खूबसूरत सोच रंग डालें
बांटे आपस में हर शै जो
अपनी हो
चलो आँखें बंद करें, गहरे
उतर जाएँ
जानें पर्त दर पर्त अंतर्मन
को
आत्मशक्तियाँ जागृत होकर
एक हो जाएँ
अपना छोटे से छोटा सुख भी
साझा हो जाये
चलो कह दें, सुना दें मन
की हर उलझन
समझ लें, गिन लें दिल की
हर धडकन
अपना सब कुछ सौंप कर
निश्चिंत हो जाएँ
विश्वास का अमृत पियें
चलो करीब आयें, जश्न मनाएं
मैं और तुम से ‘हम’ होने
की याद में
कोई गीत गुनगुनाएं
खुली आँखों से सपने देखें
मौसम की मस्ती में डूबे
उतरायें !
परसों सुबह नन्हा घर पर
था, दुसरे शनिवार को उसका स्कूल बंद रहता है. शाम को उसने चाट बनाई महीनों अथवा
वर्षों बाद. वर्षा हो रही थी, सो टहलने भी नहीं जा सके, घर पर ही कैसेट लगाकर थिरकन
कम व्यायाम किया. अच्छा लगता है गाने की या सिर्फ संगीत की लय पर शरीर को ढीला छोड़
देना. कल सुबह कड़कती ठंड में इतवार के सारे कार्य किये, शाम को क्लब में फ्लावर शो
था, वे देखने गये. फिर एक मित्र के यहाँ, उसकी सखी ने बहुत स्वादिष्ट समोसे खिलाये,
घर पर ही बनाये थे, उनके बेटे का रोना भी
बदस्तूर हुआ, वह अपने हाथ से सिले सूट के बारे में बताने का लोभ संवरण नहीं कर पाई,
कभी-कभी ऐसी बचकानी हरकतें कर ही बैठती है. पर कल एक और अच्छी बात हुई भारत का
जिम्बाब्वे को हरा कर फाइनल में पहुंच जाना. हफ्तों बाद कल ‘मालाबार हिल’ भी देखा.
सबा ने शिवम को कैसे अपने दिल की बात कही होगी और अब उसके भाई का क्रोध, सुमन
लेकिन अच्छी लग रही थी. आज सुबह धूप निकली है, वह यहीं गुलाब के पौधों के पास बैठी
है, पड़ोसिन से बात हुई, वह तिनसुकिया से सिल्क की दो साड़ियाँ लायी है, खुश है,
लेकिन साड़ियों से मिलने वाली ख़ुशी कितनी क्षणिक होती है न. सुबह गोयनका जी ने बताया,
हमारे मन की ऊपरी पर्त भले ही स्वच्छ, साफ दिखाई दे भीतर राग-द्वेष , लोभ, क्रोध
का विशाल साम्राज्य है, परत दर परत उसे उघाड़ते जाना है और साफ करते जाना है.
‘The Lawnmower man’ यही नाम
था, कल शाम क्लब में दिखाई गयी फिल्म का, जो रोमांचक थी, अद्भुत थी और कुछ कुछ
डरावनी भी. एक सीधा-सादा आदमी अपने दिमाग की छुपी ताकत को पाकर कैसे शक्तिशाली बन
जाता है. कम्प्यूटर की शक्ति का कमाल, विभिन्न रंगों से अनोखे आकार बनते हैं पर्दे
पर, एक के बाद एक सुंदर चित्र बनते हैं. इंसानी कल्पना की उड़ान की कोई सीमा नहीं,
हर बार ऐसा कुछ देखने पर बेहोशी की अवस्था में हुआ उसका अनुभव याद आ जाता है. नीले
रंग, अजीब सी आवाजें और कोई लक्ष्य पूरा करने की चाह...मानव मस्तिष्क में
क्या-क्या रहस्य हैं, अभी भी मानव जान नहीं पाए हैं. नन्हे को कल स्कूल में कबड्डी
खेलते वक्त चोट लग गयी, कहता है अब कभी जूते उतार कर कबड्डी नहीं खेलेगा. अभी-अभी
उसने खिड़की से झांक कर देखा, बादलों को परे कर सूरज निकल आया है जिसमें फ्लाक्स और
गुलाब के फूलों पर गिरी बूंदें चमक रही हैं.
ye kahani hai ya man mein apne vicharon ka pravaah .. jo bhi hai bahut achhi lagi .. alag dhaage fir bhi aapsa mein jude hue.
ReplyDeleteभावना जी, आपका स्वागत है...
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