Tuesday, November 19, 2013

लौह पुरुष- सरदार वल्लभ भाई पटेल


आज बहुत दिनों बाद सुबह लॉन में धूप में बैठकर लिख रही है, हल्की हवा भी बह रही है जो प्रातः उठने पर बर्फीली थी पर अब सूर्य के उगने से उसका दंश कम हो गया है. बहुत दिनों से बड़ी बहन का खत नहीं आया, एक बार उन्हें लिखा था, अब पहले की सी कंपाने वाली ठंड नहीं पडती पर इस बार पूरे देश में बल्कि सम्पूर्ण विश्व में ठंड बहुत है. उधर ऑस्ट्रेलिया में तापमान ५० डिग्री तक पहुंच गया है. पहले दूध वाला आया फिर स्वीपर, सो वह घर के अंदर चली गयी. कुछ देर पूर्व एक धारावाहिक का अंश देखा, उसकी नायिका एक लेखिका है, भावुक और सच्चे प्रेम की आकांक्षी, अंत अच्छा था. जैसे उसकी और जून की नाराजगी का अंत कल अच्छा हुआ, कल उन्होंने परेड देखी, नन्हे ने बाहर झंडा भी फहराया और आटे का एक तिरंगा भी बनाया है. दोपहर को ‘सरदार’ फिल्म देखी, लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल का जीवन कितना महान था. उन्होंने देश की आजादी के बाद सारे राज-रजवाड़ों को एक करने में, एक राष्ट की स्थापना में अमूल्य सहयोग दिया. परेश रावल ने पटेल की भूमिका अच्छी बनाई. ‘दो आँखें बारह हाथ’ भी कुछ देर देखी, अच्छी कहना उपयुक्त नहीं होगा, ऐसी फ़िल्में अब कभी नहीं बनेगीं. शाम को पड़ोसिन के यहाँ से मिली ब्रोकोली बनाई सबको बहुत पसंद आई.

पिछले दो दिन फिर यूँ ही निकल गये, नन्हे के स्कूल न जाने से कल सुबह उसी के साथ व्यस्त रही. परसों भी उसकी बस एक घंटा लेट आई थी, सेन्ट्रल स्कूल के बस ड्राइवरों की हड़ताल आज भी जारी रही और शायद कुछ दिन और चलेगी. नन्हा आज पड़ोसी की गाड़ी में गया और वापस अपने मित्र के साथ आया. सुबह एक सखी का सुंदर बगीचा देख कर आयी थी सो आज शाम अभी कुछ देर पहले उसने भी बगीचे में काम किया. उसने बहुत स्वादिष्ट गाजर का हलवा खिलाया, जून को बताया तो उनके मुंह में पानी भर आया. परसों दोपहर वह ‘ऊर्जा संरक्षण’ पर कविता या कहें तुकबन्दी करने की कोशिश करती रही, तीन ‘नारे’ भी लिखे हैं, जो आज जून ने भिजवा दिए हैं, देखें इस मशक्कत का क्या परिणाम निकलता है.

कभी ओस से भीगी घास पर पाँव पड़े
जो ठंडक दिल में समा गयी
वही मेरे और तुम्हारे मन के बीच पुल बन गयी है
कभी फूलों के झुरमुट में सिकुड़ा तन
उनकी रंगत और खुशबु समेटे नयन
तुम्हारे स्वप्न उकेरने लगे...  
ग्यारह बजने वाले हैं और अभी खाने में फिनिशिंग ट्चेज शेष हैं, पर सुबह से इधर-उधर के कामों को निपटते हुए अब थोड़ी थकन सी महसूस होने लगी है. नन्हा और पड़ोस का उसका मित्र आज साइकिल से स्कूल गये हैं, बसों की हड़ताल लम्बी खिंचती चली जा रही है. थक तो काफी गये होंगे, चार-पांच किमी दूर है उनका स्कूल, सवा नौ बजे निकले थे आधे घंटे में पहुंच गये होंगे. सुबह एक अजीब सा स्वप्न देखा, अब कुछ भी याद नहीं है पर वह फीलिंग याद है जिसने उसे उठा दिया, फिर ‘जागरण’ सुना, बाद में ध्यान करते समय मन केन्द्रित नहीं कर पाई, वे आवाजें भी तब और स्पष्ट सुनाई देने लगती हैं वैसे जिनकी तरफ ध्यान भी नहीं जाता.

कल दोपहर वह बैकडोर पड़ोसिन के साथ बैडमिंटन खेलने क्लब गयी, अच्छा लगा पर जून के साथ जाना और खेलना उसे ज्यादा पसंद है, उसने सोचा, देखे, यह दोपहर का रूटीन कितने दिन चलता है, वैसे उसकी पड़ोसिन अच्छा खेलती है और वह उससे कुछ सीख सकती है. फिर cycling का अपना आनन्द है, कुछ दिन यही सही. आज सुबह गोयनका जी ने बताया, धर्म जब तक धारण न किया जाये उस पर चर्चा करना व्यर्थ है. कल उसकी एक सखी आई थी जो अपनी चचेरी, ममेरी बहनों की खूब बातें बताती है, इधर उसकी कजिन्स तो कभी भूलकर भी याद नहीं करतीं या कहें वह ही नहीं करती. कल दोनों बहनों को पत्र लिखे जून ने भी, वे यकीनन खुश होंगीं.

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