Monday, March 5, 2012

सूना सूना घर



आज जबसे जून गया है वह उसे याद कर रही है. जानती है वह भी उसे याद कर रहा होगा चाहे वह कितना ही व्यस्त क्यों न हो. सुबह उसकी जीप अभी मोड़ तक ही गयी थी कि उसकी आँखें...और  दिल जैसे बैठने लगा. अंदर आयी तो याद आयी उसकी बात खुश रहना..सो सम्भल गयी. कुछ खाकर क्रोशिया उठा लिया. दस बजे तो खाना बनाया सब कुछ वैसे ही क्या जैसे उसके होने पर करती. किताब पढ़ी फिर भोजन किया. सोचा वह भी पहुँच गया होगा. दोपहर को कढ़ाई की फिर सोने का प्रयास किया पर नींद नहीं आयी. फिर प्रेमचन्द का उपन्यास कायाकल्प पढ़ती रही. तभी उसका  फोन आया हँस कर बात की पर वापस आयी तो वह और भी याद आया. पांच बजे तक तो किसी तरह रही फिर अकेला घर किसी तरह अच्छा नहीं लगा किसी तरह नहीं सो पड़ोस में उसी उड़िया परिचिता के घर चली गयी उसे खुद नहीं पता था कि उससे दूर रहना इतना कठिन होगा. 

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