उस दिन नूना के पैर की अंगुली में चोट क्या लग गयी, जून ने उसे कहा, पलंग पर बैठ जाओ. वह खुद किचन में गया है, भोजन लाने. आज वह मोरान भी नहीं गया. उसे अकेला छोड़कर जाना उसे जरा भी अच्छा नहीं लगता. दवा लगा कर पट्टी भी बांध दी है. उसका यह स्नेह देखकर कभी कभी उसे लगता है क्या वह इसके योग्य भी है. पर अगले ही पल वह सोचती है अगर वह न होती तो उसका प्रेम किस तरह प्रकट हो पाता. आज वे एक अच्छी सी श्वेत-श्याम फिल्म देखने गए, ‘दोस्ती’. गीत बहुत मधुर थे. मुहम्मद रफी और लता मंगेशकर की आवाज का तो कहना ही क्या. दोपहर को उनकी तेलुगु मित्र आयीं थीं, शाम को दक्षिण भारतीय भोजन का निमंत्रण देने. वे गए थे और दोसे के साथ लाल मिर्च के पाउडर की चटनी पहली बार देखी.
आज वह पिता से उपहार में मिले पार्कर पेन से लिख रही है, जब उन्होंने दिया तो उसने कहा इतना महंगा पेन, वे बोले, तुम भी तो महंगी हो, और वह उनका मुख देखती रह गयी कुछ न कह सकी. उसने सभी को पत्र भी लिखे. रेडियो पर गाना आ रहा है,
जब शाम का आंचल लहराए
और सारा आलम सो जाये
तुम मुझसे मिलने शमा जलाये
ताजमहल में आ जाना
उन्होंने स्वेटर निकाल लिए हैं और स्नान भी गर्म पानी से शुरु कर दिया है. कल वे डॉक्टर के पास भी गए थे. कुछ दिनों में पता चलेगा कि उनके जीवन में क्या कोई गुल खिलने वाला है. पिछले दिनों वे इस बात को लेकर भी कुछ परेशान थे पर अब नहीं हैं. वे दोनों तो इस दिन को लेकर कितने सपने भी देखते थे.
:)
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