उजाला रहते वह लाइब्रेरी गयी थी, लौटी तो अँधेरा होने लगा था. जबकि छह ही बजे थे, सात व आठ के बीच फोन आयेगा इसकी स्मृति मन में उल्लास जगा रही थी. आज फ्रिज की सफाई की, शायद एक दो दिन में जून वापस आने वाला है.
अभी-अभी जून वापस गया है, पहले ऑफिस फिर वहीं से दुबारा फील्ड. कल शाम जब फोन आया तो उसने शायद नूना की आवाज में छुपे दुःख को समझ लिया था. उसे किसी तरह नींद भी आ गयी पर रात को साढ़े ग्यारह बजे जानी-पहचानी डोर बेल बजी तो वह चौंक कर उठ बैठी. कितनी खुशी हुई उसे जून को देखकर, कितना सुकून मिला मन को और कितनी राहत आँखों को. उन्होंने कितनी बातें कीं, कितने आँसू पोछें, उसका कोई हिसाब नहीं, पर यह रात उसे कभी भी नहीं भूलेगी. वह उसे ही खोज रही थी और तब वह आया अपने अंतर का सारा स्नेह लिये. उसकी पुकार व्यर्थ नहीं गयी.
आज फोन आया कि वह वापस आ रहा है और फिर नहीं जाना है. नूना को लगा कि कहीं वह उसकी वजह से तो नहीं आ रहा या कि कल रात को उसके आने से किसी ने कोई बात कह दी है. वह आकर ही बताएगा कि क्या कारण है इस शीघ्र वापसी का. दोपहर को मेजपोश बनाने किसी परिचित के यहाँ गयी वह बुनाई का कार्य कर रहीं थीं.
जून आया तो कार से उतर कर दरवाजे तक आते समय उसकी मुस्कान देखकर ही (वह विवश मुस्कान) वह समझ गयी थी कि उसकी तबीयत ठीक नहीं है. पिछले दिन फोन पर बात करने से और यह जानकर कि वह तीन-चार घंटे तक काम के समय सो रहा था, वह समझ गयी थी कि उसका स्वास्थ्य ठीक नहीं है. अब वह घर आ गया था, उसे एक-दो दिन में ठीक हो जाना था. वहाँ उसे धूप में खड़ा होना पड़ता था और कुछ घर की, कुछ उसकी चिंता के कारण वह ठीक से नहीं रह पाया. पहली बार उसे दो दिन की सिक लीव लेनी पड़ी. आज गया है वह ऑफिस. दो दिन वे चौबीस घंटे साथ रहे, वह जो मोरान जा कर दूर हो गया था भौतिक रूप से, यहाँ उसके बहुत पास आ गया था, दिन भर वर्षा होती रही शाम को वे टहलने गए.
No comments:
Post a Comment