रेडियो पर यह गीत बज रहा है, मुझको अपने गले लगा लो ऐ मेरे हमराही... नूना का मन भी कुछ ऐसा ही कहना चाह रहा था, सुबह फिर एक बार उसे उदास और अकेले( नहीं, वह अब भी उसके साथ था...) छोड़कर जून फिर कुछ दिनों के लिये चला गया था. थोड़ी ही देर बाद वह व्यस्त हो गयी थी इधर-उधर के कार्यों में. खाना खाकर सो भी गयी. स्वप्न देखा, वह आया है, कहता है देखो मैं वापस आ गया हूँ. वह कहती है, क्या यह सच है या वह स्वप्न देख रही है. वह आँखें खोल-खोल कर देखने की कोशिश करती है. वह अपना हाथ उसकी ओर बढ़ाता है, कहता है क्या मेरा सामान कोई नहीं दे गया. पर नींद खुली तो वह अकेली थी. पांच बजे फोन सुनने गयी, वह व्यस्त था छह बजे फिर फोन पर मिलना हुआ. उसने बाद में सोचा जून को गेस्टहाउस जाकर गर्म-गर्म चाय मिल गयी होगी और टिफिन भी, स्वेटर भी उसने पहना होगा. वह दूध पी रही थी कि कॉल बेल बजी, कोई दो जन परिचित आये थे, उन्हें याद नहीं रहा कि जून नहीं था. दीवाली पर आ नहीं सके इसलिए आये थे. उन्हें चाय पिलाई. कुछ देर रेडियो सीलोन सुना, कुछ देर पढ़ने के बाद स्वेटर बुना और फिर रात्रि भोजन के बाद सोने गयी, याद आया कि इस वक्त भी जून को फील्ड जाना है, मन ही मन उसे ठंड से बचने की हिदायत दी और एक मानसिक पत्र भेजा, “तुम्हारी बेहद याद आती है, अभी तो कुछ ही दिनों की बात है कभी भी भविष्य में हमने अधिक दिनों के लिये दूर नहीं रहना पड़े, सब कुछ अधूरा अधूरा लगता है, घर घर नहीं लगता. याद आती हैं तुम्हारी बातें, इस समय भी तुम जो भी कर रहे हो पर मेरा ख्याल तो तुम्हें बना ही रहता होगा.”
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