Friday, February 24, 2012

तेल बचाओ, देश बढ़ाओ


आज मुहर्रम की छुट्टी है, सुबह से ही वे घर पर थे. घर में कई जगह से धूल व जाले साफ किये, कोने बहुत जल्दी गंदे हो जाते हैं यहाँ , छिपकलियाँ बहुत हैं और मकड़ियाँ मच्छर भी. दोपहर को पैदल घूमने बाहर निकले भी तो वर्षा हो रही थी. शाम को एक और असमिया परिवार से मिलने गए उनका भी नन्हा बेटा बहुत प्यारा था, रेशमी बाल पूरे माथे को ढके हुए थे. उसके जन्मदिन के फोटो देखे. घर आकर उन्होंने दिसम्बर में होने वाली यात्रा का हिसाब लगाया और तय किया कई अगले दो तीन महीने बहुत सम्भल कर खर्च करना होगा. जून अब स्वस्थ है, आज वह उसे हॉस्टल ले गया था दूर से वह कमरा भी दिखया जहाँ वह डेढ़ वर्ष रहा था और जहाँ बैठ कर उसने वे सारे पत्र लिखे थे. उसने तीन फाउंटेनपेन में स्याही भर दी है इतने दिनों से वे बॉल पेन से ही लिखते आ रहे थे.
आज शाम को क्लब में पेट्रोलियम कंसर्वेशन रिसर्च असोसिएशन (पी सी आर ए ) की तरफ से एक भाषण था. एक सरदार जी तेल बचाने के बारे में बोल रहे थे, फिर किन्हीं मिश्रा जी ने खाने की गैस बचाने के बारे में बताया पर यहाँ तो गैस दिन रात जलती रहती है, यहाँ के लिये उनकी बात का कोई महत्व नहीं था, फिर तीन-चार फिल्म दिखाई गयीं. जून की एक छोटी सी बात पर नूना को गुस्सा आ गया पर वह हँस कर टाल गया, दूसरा चेयर बैक भी कल पूरा हो जायेगा उसने लिखते समय सोचा. सोने गए तो छत के पंखे से तीन तरह की आवाजें आ रही थीं, बिजली विभाग में रिपोर्ट लिखा दी है शायद कल वहाँ के कर्मचारी ठीक करने आयें.  

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