कल शाम ही वे अपने घर आ गए थे. घर ! कितना प्रिय लगता है यह शब्द, जब इसके साथ अपना जुड़ा हो. दोपहर को ही जून का काम खत्म हो गया था. सारी सुबह नूना प्रेमचन्द की पुस्तक पढ़ती रही. दो सखियों की कहानी बहुत अच्छी लगी. कुछ देर मेजबान महिला की बातें सुनती रही, किस तरह उसके माता-पिता के देहांत के बाद मामा के यहाँ रहना पड़ा. आज ही उस नए घर की सफाई भी हो जायेगी जो उनका नया बसेरा बनने वाला है और एक दो दिनों में वे वहाँ चले जायेंगे.
शुक्रवार को जून दिन भर के लिये बाहर गया था, वह सामने वाले घर में आयी नन्ही बिट्टू से खेलने, दोपहर बाद लौटी तो वह भी उसके साथ चली आयी, दोनों सो गए. तभी उठे जब जून ने कालबेल बजाई. शनिवार को उन्होंने जीप के द्वारा कई चक्कर लगा कर सारा सामान नए घर में शिफ्ट किया, बड़ा सामान ट्रक से पहले ही आ गया था. शाम तक बहुत थक गए थे, पर करीने से सजा कमरा देखा तो सारी थकान उतर गयी.
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