शाम के चार बजे हैं. मौसम सुहाना है और आकाश पर
बादल हैं. अभी-अभी वे बाहर लॉन में टहल कर आए हैं. पूसी उनके साथ-साथ दौड़ती है.
नन्ही सी यह बिल्ली पता नहीं कहाँ से आ गयी है यहाँ, जून भी उसे सुबह-शाम कुछ न
कुछ खाने को देते हैं. आज ‘भगवद गीता’ का प्रथम अध्याय सुना उन्होंने; कहा, मन को
व्यवस्थित करने का मार्ग सीखना है, यानि ‘ध्यान’, कुछ देर ध्यान किया फिर फलों का
नाश्ता. इस मौसम के पहले आम भी खाए, मीठे थे. जून क्लब चले गये हैं, जहाँ कोई
सरकारी कार्यक्रम है, उनका भोजन भी बाहर
ही होगा. उसने सब्जी और थोड़ा सा गाजर का अचार भी बनाया. शाम को सम्भवतः कुछ लोग
योग के लिए आयें. कुछ देर पहले एक साहित्यकार व ब्लागर से बात की, उन्होंने जोरहाट
में होने वाले हिंदी के कार्यक्रम के लिए उसे आमंत्रित किया है. सुबह परमात्मा से
कुछ बातचीत हुई जैसे पहले भी कई बार हुई है. वह उन्हें सदा ही सन्मार्ग पर ले जाने
का प्रयास करता है, वह अति प्रिय है, सुहृद है, मित्र है और वही तो सब है, वे उसके
साथ रहकर कितने प्रसन्न हैं !
अभी कुछ देर में ‘सिया के राम’ आने वाला है, अभी जून अपना मनपसन्द कार्यक्रम
देख रहे हैं, ‘तारक मेहता का उल्टा चश्मा’
आज शाम को एक नया ध्यान ‘मुस्कान’ किया, कल बच्चों को भी वही कराएगी, उसने सोचा
है. जगह की कमी के कारण बच्चों को असेम्बली में खड़े-खड़े ही ध्यान करना होता है. जिस
शिक्षिका के साथ वह स्कूल जाती है, वह कल भी शायद ही जाये, उसकी प्रिय सखी के पति पिछले
चार-पांच दिनों से अस्पताल में हैं, उन्हें अभी तक एक बार भी होश नहीं आया है, वह
वेंटीलेटर पर ही हैं. शायद उन्हें अब बचाया नहीं जा सकता. इस परिवार की कितनी बड़ी
क्षति हुई है. उसने ईश्वर से प्रार्थना की कि उन्हें शक्ति दे, समय के साथ वे सभी
आने वाले दुःख को सहने के लिए खुद को तैयार कर रहे हैं. पिछले कुछ दिनों से वे
उनके बिना ही तो जी रहे हैं, जी पा रहे हैं, आगे भी जी लेंगे. यही इस दुनिया का
दस्तूर है !
दोपहर को बच्चों के साथ गुरूजी का जन्मदिन मनाया, चालीस बच्चे आ गये थे,
उन्होंने भजन गाए और केक बांटा. बच्चों ने चित्र बनाये, अगले हफ्ते उन्हें
पुरस्कार भी देने हैं. आज दोपहर को सोई तो पिताजी व परिवार के कई सदस्यों को
स्वप्न में देखा, रोचक स्वप्न था. उस दिन भतीजी को देखा था, पर कितना विचित्र था
वह स्वप्न, ढेर सारे कीट दिखे थे. आज दोपहर के भोजन में तरबूज खाया और नाश्ते में
इडली. सुबह की योग कक्षा में दो महिलाओं को योग कराया, उसके पूर्व प्रातः भ्रमण से
लौटकर स्वयं किया. मौसम ठंडा था उस समय, सब तरफ हरियाली ही हरियाली. बगीचे में ढेरों
फूल खिले हैं आजकल, बालसम के कितने ही पौधे अपने आप निकल आये हैं.
रात्रि के पौने आठ बजे हैं, जून ‘भगवद् गीता’ का दूसरा अध्याय सुन रहे हैं,
बाहर वर्षा तेज हो गयी है. वे रात्रि भोजन के बाद कुछ देर के लिए बाहर गये, पूसी
भी आ गयी और पैरों में लिपटने लगी. उसे घी लगी रोटी पसंद आई. दूध की जगह दही
ज्यादा पसंद है उसे. शाम को सात लोग योग करने आये, चार बच्चे व तीन महिलाएं. आखिर
में उसे खांसी आ गयी. ॐ के उच्चारण से पूर्व भ्रामरी में. शायद गले में कुछ खराश
सी हुई. बाबा रामदेव कहते हैं, रोगी व्यक्ति जैसे विनम्र होता है, वैसे ही विनम्र
उन्हें रहना चाहिए. शायद इसीलिए परमात्मा उन्हें बीच-बीच में रोग देता रहता है. आज
चार कविताएँ भी चुनीं और रिकार्ड कीं, जो जोरहाट के कवि सम्मेलन में उसे सुनानी हैं,
तब तक प्रतिदिन ही एक बार अभ्यास कर लेना ठीक होगा. मृणाल ज्योति के लिए लेख लिखा
पर आज ब्लॉग पर कुछ भी नहीं लिखा.
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