Thursday, August 16, 2018

मुंडेर पर काग



पिछले दो दिन योग को समर्पित थे. ‘धर्म, अर्थ, काम, मोक्ष’ इन चारों पुरुषार्थों को सिद्ध करने के लिए शरीर का स्वस्थ होना अति आवश्यक है. मस्तिष्क में चेतना, देह में स्फूर्ति, धमनियों में शक्ति, नाड़ियों में रक्त संचार, सुदृढ़ अंग-प्रत्यंग, स्नायुओं में बल यदि नहीं है तो देह मृत ही कही जाएगी. देह के आंतरिक मल व दोषों को दूर करके तथा अंतःकरण(मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार) की शुद्धि करके समाधि द्वारा ही पूर्ण आनन्द की प्राप्ति की जा सकती है. योग इसका एक मात्र साधन है. अष्टांग योग के आठ अंग हैं - यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान, समाधि. यम पांच हैं - सत्य, अहिंसा, अस्तेय, ब्रह्मचर्य, अपरिग्रह. नियम भी पांच हैं- तप, स्वाध्याय, शौच, संतोष, ईश्वर प्राणिधान. शरीर में कई संधि स्थान हैं, जहाँ कई नाड़ियां मिलती हैं. इनमें से सात मुख्य हैं, जिन्हें चक्र कहते हैं. मूलाधार पहला है, जब ऊर्जा यहाँ सुप्त है तब भोजन व नींद, दो ही मुख्य कर्म होंगे. स्वाधिष्ठान में मानव सुख का चाहक हो जाता है. जब ऊर्जा मणिपुर में होती है, तब वह कर्ता हो जाता है. अनहत में स्थित वह सृजन करता है. जीवन की इच्छा अनहत में मिलती है, उसके ऊपर जीवन के पार जाने की इच्छा होती है. विशुद्धि में वह शक्तिशाली हो जाता है, चाहत के अनुसार कुछ भी कर सकता है. आज्ञा चक्र पर वह वस्तुओं को वैसा ही देखता है, जैसी वे होती हैं. शांति का अनुभव यहीं होता है. सहस्त्रार पर जब ऊर्जा जाती है, तब देह से बाहर का अनुभव होता है. आनंद का अनुभव यहीं होता है. बिना किसी कारण के वह प्रसन्न रहता है. सहस्त्रार इस भौतिक देह के पार है. यहाँ वे जग में रहते हुए भी जग के बाहर रहते हैं. सब उनके भीतर है पर कोई भी उनका नहीं है, भौतिक सीमाओं के पार जाकर ही अनंत का अनुभव होता है !

कल दो स्कूलों के बच्चों को योग कराया. अब स्कूल अगस्त में खुलेगा, तब जाना है. शाम को महिला क्लब की कमेटी मीटिंग है, दो सदस्याएं मेजबानी करेंगी. अभी-अभी उनमें से एक से बात की, वह उनके पड़ोस वाले घर में ही रहती हैं, पर मुलाकात नहीं होती. एक दिन उन्हें घर पर बुलाना है. इस समय सुबह के साढ़े दस बजे हैं. आज भोजन में मूंग की दाल डालकर तोरई बनायी है, साथ में जीरा-चावल. समय कम लगा भोजन बनाने में. बाहर बरामदे में मैंगो सुस्त सी होकर लेटी है. कल उसने ज्यादा भोजन कर लिया शायद, आज सुबह से कुछ भी नहीं खा रही है. अभी उसे दही देकर देखा, झट खा गयी, पर उसे शक्तिहीनता का आभास हो रहा है शायद, उछल-कूद नहीं कर रही ज्यादा. पालतू जीव रखने पर कितना मोह हो जाता है उनसे. परमात्मा को भी क्या उनसे ऐसा मोह नहीं है. पूसी उनसे कुछ कह नहीं पाती पर वे तो उसे जानते हैं, वैसे ही परमात्मा उन्हें जानता है और हर घड़ी उनकी सहायता करना चाहता है. वह हर क्षण उनके साथ है !  

परमात्मा की कृपा असीम है, उसकी निकटता का अनुभव हर पल होता है, यदि कोई चाहे तो. अभी कुछ देर पहले ‘सिया के राम’ देखा. सीता कहती है, जब कौआ घर की मुंडेर पर आकर कांव-कांव करता है तो वह किसी के आने की सूचना लाता है. प्रकृति उनके साथ कितनी एकता रखती है, इस बात का अनुभव पूसी के साथ होता है, जो बोल नहीं सकती पर उसके साथ अपने जुड़ाव को व्यक्त करती रहती है. आज योग कक्षा में दो साधिकाओं ने योग के सकारात्मक प्रभाव का अनुभव होने की बात कही. परमात्मा का प्रेम उन्हें भी छू रहा है, भक्ति का प्रभाव कम नहीं होता. कल भांजी व उसकी सखी के लिए कविता लिखेगी. उसकी सखी इस माह के अंत में अपने देश वापस जा रही है, उसका देश, जो अब यूरोपीय संघ का सदस्य नहीं रहा.

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