दोपहर के तीन बजने को हैं. आज सुबह उठी थी पौने चार बजे, पर जून
कल शाम थके थे, सोचा उन्हें थोड़ी देर सोने दे, पाँच मिनट में उठती है, पर नींद
खुली पूरे एक घंटे बाद. दो स्वप्न देखे, एक में तो घर में चोर आ जाते हैं.
ड्रेसिंग टेबल का शीशा तथा दो चादरें गायब हैं, फिर कुछ लोग भी दीखते हैं, एक चोर
भी है उनमें. खुद का ही सपना है सो चोर के मुँह से ऐसे वाक्य निकलते हैं कि उनके द्वारा
उसकी चोरी पकड़ ली जाये. एक स्वप्न में गुरू माँ के आश्रम में गयी है. वहाँ कुछ
महिलायें हैं, फिर एक दुर्घटना देखी. एक कार उलट जाती है साईकिल से टकरा कर. अपना
ही सपना था सो किसी को चोट नहीं आती. जब सपना खुद ही बनाया है तो सकारात्मक ही
होना चाहिए. इसी बात से सिद्ध होता है कि God loves fun. उनकी आत्मा, जहाँ से ये
स्वप्न आते हैं, कितनी हास्य पसंद है. वह उन्हें जगाना भी चाहती है, झकझोर भी देती
है पर डराती भी नहीं. वे कितनी गहरी नींद में हैं कि उस वक्त जान नहीं पाते, यह तो
स्वप्न ही है. अभी दोपहर को भी एक स्वप्न देखा. यह भी उठाने के लिए ही था. ओशो
कहते हैं योगी स्वप्न नहीं देखता, वह विचारों से भी मुक्त है. व्यर्थ का चिन्तन न
हो तो न ही व्यर्थ के स्वप्न आएंगे, न ही व्यर्थ की ऊर्जा समाप्त होगी. रात्रि
सोने तक छह घंटे उसके पास हैं, इस समय का सदुपयोग हो सके ऐसा प्रयत्न करना होगा.
दो घंटे पढ़ने-लिखने में, एक भोजन बनाने-ग्रहण करने में, एक व्यायाम-टहलने में तथा
एक टीवी व ‘भारत एक खोज’ देखने में. सभी कुछ करते हुए मन सदा ही उस ‘एक’ से जुड़ा
रहे, इसका भी ध्यान रखना है.
शाम के छह बजे हैं, लग रहा है भीतर से कोई देख
रहा है प्रतिपल. कितनी शांति है उसके पास और कितना विश्वास.. एक आश्रय स्थल सा
अथवा माँ की गोद सा, लगता है मन घर आ गया है. मन पाए विश्राम जहाँ, वही तो है वह
स्थल, उसे अस्तित्त्व कहें या परमात्मा, वह दोनों ही है, वह सभी कुछ है. सभी कुछ
उसी से जो प्रकट है. आज सुबह समय से उठे वे, टहलने गये, वर्षा रात भर होकर थम चुकी
थी, फिर स्नान आदि करके नाश्ता. जून ने दोपहर को विशेष व्यंजन बनाया. बड़े भाई से
बात हुई, वह काफी खुश हैं, छोटा उनके साथ रह रहा है. उनके जीवन में एक परिवर्तन
आया है. मंझले भाई-भाभी दुबई गये हैं. पिताजी व दोनों ननदों से भी बात हुई. दोपहर
को बच्चों की संडे कक्षा, अभी सांध्य भ्रमण करके वे लौटे हैं.
आज शाम को क्लब में ‘पीकू’ है, वे जायेंगे
देखने. सुबह की साधना में एक अद्भुत अनुभव हुआ. वह ‘एक’ उससे मिलने आया था. कल
सुबह स्कूल गयी, गर्मी थी पर बच्चों ने ख़ुशी-ख़ुशी योगासन किये. उसके बाद उन्हीं शोकग्रस्त
परिचिता के यहाँ गयी, उसके भाई से भी मिली और जेठानी से भी. उसका पुत्र भी था और
बाद में उसने कहा, आते रहिये. उसके वृद्ध पिता से बात हुई. वह तीस साल पहले रिटायर
हुए थे. जीवन के प्रति कितना उत्साह है उनमें अब भी. अटल जी को जानते थे, असम के
पहले गवर्नर को भी. आजादी से पहले की बातें कर रहे थे. सुचेता कृपलानी और अरुणा
आसफ अली की बातें. आर एस एस को मानते हैं. चेहरे पर एक चमक है और अतीत का बखान
बहुत चाव से करते हैं. शिलांग में काम किया फिर वहीं बस गये. शिलांग के सिन्धी
जनों से भी परिचय है और पार्टीशन की बातें भी करते हैं. अपने दामाद को याद करते
समय सामान्य रहे, स्वीकार कर लिया है उसकी मृत्यु को जैसे सहजता से. एक दिन फिर
जाएगी वहाँ. कल चोल वंश के राजा राज राजेश्वर की कहानी देखी ‘भारत एक खोज’ में.
कैसा विचित्र युग रहा होगा तब, जब मन्दिरों का निर्माण राजाओं का एक महत्वपूर्ण
कार्य था.
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