Monday, September 22, 2014

ब्रेल लिपि में पुस्तक


अभी-अभी जून का फोन आया उन्हें उसका फोटोग्राफ चाहिए था जो किताब के अंतिम पृष्ठ पर छपेगा. प्रकाशक का इमेल आया था उसने पूछा है कि वे पाण्डुलिपि कब भेज रहे हैं. वे अगले हफ्ते के शुरू में ही भेज पाएंगे, उसका स्वप्न अब आकार लेता हुआ प्रतीत हो रहा है. इसके बाद ही वह सबको पत्र लिखेगी. तहलका प्रकरण इस कदर मन पर छा गया है और इसको बढ़ावा देने वाले हैं टीवी व अख़बार. क्या ये सब मिलकर सड़ी-गली इस व्यवस्था में सुधर ला पायेंगे ? वे पत्रकार जिन्होंने पर्दे के पीछे छिपे ढके कारनामों को सबके सम्मुख ला दिया है, क्या सचमुच बदलाव चाहते हैं ? कल शाम वे उड़िया मित्र के यहाँ गये, उनका छोटा बेटा अस्वस्थ था, घर में सीलन की सी एक गंध आ रही थी जो बीमारी का कारण हो सकती है. आज सुबह एक परिचिता से बात हुई, उनका पुत्र दसवीं की परीक्षा दे रहा है, आगे की पढ़ाई के लिए कहीं भेजना चाहते थे पर अब यहीं रहकर पढ़ेगा. उन्हें भी नन्हे के लिए निर्णय लेना है, वह भी बारहवीं तक की पढ़ाई यहीं रहकर करे तो उन सभी के लिए अच्छा होगा. अभी-अभी एक सखी से बात हुई, बात तहलका से शुरू होकर मिसेज गाँधी पर लिखी किताब के जिक्र पर पहुंच गयी जिसमें उनके प्रेम प्रसंगों की जानकारी है. किसी के व्यक्तिगत जीवन पर कलम चलाना, फिर जो व्यक्ति कितने उच्च पद पर रह चुका हो और जो इस दुनिया में नहीं है, बहुत साहस का काम है, सच को उजागर करना इतना आसन नहीं है, लेकिन यही कार्य यदि कोई सस्ती लोकप्रियता के लिए करे तो बेहद निचले स्तर का लेखन है यह.

पिछले दो दिन व्यस्तता में गुजरे, परसों यानि शनिवार की सुबह उन कार्यों में व्यस्त रही जो इतवार की सुबह करती है और कल यानि इतवार की सुबह मोरान जाने के लिए तैयार होने में. बहुत समय से उसका मन था वहाँ के अंध विद्यालय जाने का, एक बार वे गये थे तो अवकाश चल रहा था, बहुत थोड़े से विद्यार्थी ही वहाँ थे. कल लेडीज क्लब की दो सदस्याओं के साथ उन लोगों के लिए भोजन लेकर वह गयी थी. इतने सारे अंध बच्चों या व्यक्तियों को देखने का यह उसका प्रथम अनुभव था. पहली नजर में वे सामान्य ही लगते हैं, वैसे ही बातें करते, मुस्कुराते चलते हैं पर पास से देखने पर उनके चेहरे के भाव सामान्य नहीं लगते. वे ज्यादा शांत लगते हैं. उन्हें दुनिया की कुरूपता को देखने का मौका जो नहीं मिला. लडके-लडकियाँ दोनों ही थे, हर उम्र के थे. वे आपस में या उनसे एक बार भी नहीं टकराए. अपनी-अपनी नियत सीट पर आकर बैठ गये और भोजन आरम्भ करने से पूर्व समूह प्रार्थना के स्वर गूँजे, जिसमें मधुरता थी. प्रिंसिपल के ऑफिस में कई वाद्य यंत्र पड़े थे, उन्होंने कहा, यदि वे इतवार अथवा छुट्टी के दिन आयें तो स्कूल का वातावरण देख पाएंगे, बच्चे उनके लिए संगीत का आयोजन करेंगे और वह चहल-पहल जो आमतौर से किसी भी स्कूल में होती है उन्हें देखने को मिलेगी. उसने पहली बार ब्रेल लिपि की पुस्तक भी देखी. यह विद्यालय पश्चिम बंगाल के फिल्म कलाकार विक्टर बनर्जी के पिता ने आरम्भ किया था, पच्चीस साल हो चुके हैं. स्कूल के पास काफी जमीन है बिल्डिंग भी बड़ी है, निर्माण कार्य चल रहा है. आस-पास की समाजसेवी संस्थाएं मदद देती रहती हैं. उनका क्लब भी हर महीने बच्चों के लिए भोजन भेजता है. वे बच्चे एक दूसरे से सामान्य बच्चों की तरह छेड़खानी भी कर रहे थे. उन्हें अपनी कमी का जैसे अहसास ही नहीं था क्यों कि दुनिया की रंगीनियों से वे बेखबर हैं.

 कल पिछले साल की डायरी में कविताएँ ढूँढ़ रही थी, कुछ पन्नों पर दृष्टि अटक गयी, लगा उस वक्त वह सत्य के ज्यादा निकट पहुंच गयी थी. उन्ही दिनों एक पेज पर ‘मिशन स्टेटमेंट’ लिखा था, पुस्तक छपवाने का और आज वह फलीभूत हो रहा है. प्रतिपल मन पर नजर रखने का प्रयास तो चलता ही रहता है, लेकिन वक्त के एक-एक क्षण का सदुपयोग और वाणी का संयम, ये नहीं सधते. पिछले दिनों आहार का विशेष संयम भी नहीं किया सो भारी तन से विचार भी गरिष्ठ ही उत्पन्न होंगे न. पत्र लिखने क कार्य शुरू नहीं कर पा रही है, अंतर्प्रेरणा की प्रतीक्षा है. कल दीदी, छोटे भाई व बहन तीनों से ही बात हुई. वे सभी भाई-बहन एक दूसरे के मन को समझते हैं, एक अटूट डोर से बंधे हैं. माँ की आँखें सामने रखे फोटो में यही कहती हुई प्रतीत हो रही हैं. जून उसकी किताब के लिए पूरे मनोयोग से जुटे हैं, उनका प्रेम उसके प्रति असीम है, जो हर छोटे-बड़े काम में झलकता है. नन्हा अपने मन की करना चाहता है, वह उम्र के उस दौर से गुजर रहा है जहाँ अपने निर्णय स्वयं लेने की प्रवृत्ति बेहद बलवती होती है. कल शाम वे पड़ोसी के यहाँ गये. पिता की मृत्यु होने पर उन्होंने मुंडन करवा लिया था. उसे लगा उनके पंजाबी समाज में यह रिवाज अब खत्म सा ही हो गया है. पड़ोसिन सखी ने कई अंग्रेजी फिल्मों के बारे में बताया. उन्हें फ़िल्में देखने का समय ही नहीं मिल पाता. वर्षों पहले नूना बहुत देखती थी पर अब अपनी संस्कृति ही भाती है. आज समाचारों में पाकिस्तान में टेप पर रहस्योद्घाटन की बात सुनी जिसमें नवाज शरीफ द्वारा जज पर जोर डाला गया है कि बेनजीर के खिलाफ मुकदमे का फैसला जल्दी हो और उसके खिलाफ हो. पत्रकारिता और जासूसी में कोई भेद नहीं रह गया है. आजकल फोन पर हों या अपने घर में, राजनेता कहीं सुरक्षित नहीं हैं. उनके पाप का घड़ा भर गया लगता है.


2 comments:

  1. मेरे उड़िया मित्र भी उस समय गुवाहाटी में ही थे. कहीं वही तो नहीं. पता नहीं कितने समान सूत्र हैं हम दोनों के बीच. आपने उससे मिलने की लालसा मन में पैदा कर दी है.
    नीला रंग मेरा भी प्रिय है और उसकी प्स्तक के प्रकाशन को लेकर मुझे भी उत्सुकता होती जा रही है. और फिर अन्ध विद्यालय... मेरे एक मित्र बिहार अन्ध ऐसोसियेशन के अध्यक्ष थे. मैंने एक पोस्ट भी लिखी थी उनके ऊपर.. कैसे हम शतरंज खेलते थे और वो मुझे हरा देते थे, कैसे वे घड़ी में समय 'देखते' थे...

    जून की लगन देखकर लगता है साहित्य की सच्ची सेवा तो वही कर रहे हैं.

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  2. दुनिया बहुत छोटी है....और इच्छा पूरी होने के लिए ही जन्मती है....आभार इन प्रेरणादायक टिप्पणियों के लिए...

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