Showing posts with label शिवसूत्र. Show all posts
Showing posts with label शिवसूत्र. Show all posts

Monday, December 26, 2022

होप और हम

सुबह उठे आकाश में तारे चमक रहे थे। दिन में धूप भी तेज थी। शाम को माली आया , एक सवा घंटे में सारे गमलों की निराई-कुड़ाई कर दी। बालसम में फूल आ रहे हैं। बगीचे में ही थे कि पड़ोसी छड़ी लेकर टहलते हुए दिखे, कहने लगे, पीछे की लाइन में एक व्यक्ति गिर गया, अस्पताल ले जाना पड़ा है, फ़ालिज का अटैक पड़ा है, उमर भी ज़्यादा नहीं है। सभी को स्वास्थ्य का ध्यान रखना कितना आवश्यक है। कोरोना काल में जीवन कितना क्षण-भंगुर हो गया है । सुबह देखा, गेस्ट रूम में कमांड टेप से लगायी पेंटिंग गिरी हुई थी, शायद तस्वीर वजन के हिसाब से टेप की शक्ति कम थी । शीशा टूट गया, नैनी ने बिना किसी भय के सफ़ाई कर दी। दीदी का फ़ोन आया दोपहर को, बच्चों की बातें बतायीं। बड़ी बिटिया अपनी वेबसाइट खोल रही है, छोटी ने बच्चे के पालन-पोषण के लिए जॉब छोड़ दी है। बड़ा भांजा अपनी कंपनी बंद कर के जॉब लेगा। छोटे की कम्पनी ठीक चल रही है। छोटी बहन और बहनोई आर्ट ऑफ़ लिविंग के स्वयंसेवक बन गए हैं। मृणालज्योति की एक अध्यापिका से फ़ोन पर बात की, स्कूल बंद है, ऑन लाइन क्लासेज़ हो रही हैं। आज एक नया स्थानीय गेम खेला, लकड़ी का बना आधार है और कौड़ियों से खेलते हैं, बहुत रोचक लगा। लाओत्से की पुस्तक भी बहुत ज्ञानवर्धक और रोचक है, उपनिषदों से कम नहीं था उनका ज्ञान। 


रात्रि के नौ बजने को हैं। आज का इतवार काफ़ी अलग था अन्य दिनों की अपेक्षा। नसीरूद्दीन शाह की फ़िल्म ‘होप और हम’ देखी। बहुत अच्छी फ़िल्म है, एक परिवार के सपनों की कहानी, जिसमें एक पुरानी जर्मन फ़ोटो कॉपी मशीन का भी रोल है। शाम को चौलाई, जिसे यहाँ अमरनाथ का साग कहते हैं, दक्षिण भारतीय तरीक़े से बनाया। बहुत अच्छा बना है। कल इसे फ़ोटो सहित छोटी भाभी के फ़ेसबुक पेज पर प्रकाशित करेगी। नन्हे ने एक नया की बोर्ड, माउस तथा पैड लाकर दिया है, अब लिखने का काम करना सरल हो गया है। गुरुजी के श्राद्ध के बारे में लिखे लेख का अनुवाद किया। जून नियमित ध्यान करने लगे हैं तो भीतर की हलचल समझ में आने लगी है। उनके पैरों के तलवों में जलन हो रही थी, शाम को वे हरी घास पर नंगे पैर चलते रहे। सूर्यास्त के बाद आकाश का रंग ग़हरा लाल हो गया था।   


आज शिव सूत्र में घोरा, महाघोरा और अघोरा शक्ति के बारे में पढ़ा। घोरा मातृका शक्ति के कारण व्यक्ति ज़्यादा वाचाल हो जाता है, वह दूसरों को सलाह देता है, क्रोध करता है। महा घोरा के कारण जगत का चिंतन और उन्हीं के बारे में जानने की इच्छा जगती है अघोरा के कारण स्वयं के भीतर प्रवेश होता है, स्वाध्याय तथा साधना की तरफ़ मन जाता है। यदि कोई मातृका शक्ति के स्रोत की तरफ़ जाता है तो अघोरा अपना काम कर रही है। उसकी वाणी में अभी भी कितने दोष हैं। दोष दृष्टि तथा स्वयं को सही मानना, कटाक्ष करना आदि दोषों को अब तो त्याग देना चाहिए। परमात्मा की इतनी महान कृपा के बाद भी यदि कोई अपने संस्कारों को दग्ध नहीं करता तो उसको क्या कहा जाएगा। प्रधानमंत्री ने कल ‘मन की बात’ में खिलौनों की बात की तो कुछ युवकों ने शिकायत की। नीट व ज़ेईई परीक्षाओं की तिथि अभी तक तय नहीं हुई है।कोरोना के मरीज़ों की संख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। 


कल जून की सेवनिवृत्ति को पूरा एक साल हो जाएगा। तीन दशकों से भी अधिक समय उन्होंने असम में गुज़ारा पर ईश्वर की कृपा से उन्हें यहाँ भी हरियाली और वर्षा भरा माहौल मिल गया है। सुबह उठे तो तेज वर्षा हो रही थी, जब कुछ हल्की हुई तो वे छाता लेकर टहलने गए। 

गगन में वायु, 

वायु में अगन, 

अगन में नीर, 

नीर में धरा ! 

ओत-प्रोत हैं सब आपस में 

जैसे मन रहता है उसमें ! 

जो बसा सृष्टि में वैसे ही 

ज्यों गंध धरा में 

ज्योति अगन में 

स्वाद नीर में 

छुवन वायु में 

वह उसमें है जैसे कोई 

लहर सिंधु में !


Tuesday, November 17, 2020

शिव सूत्र

 

नैनी का बेटा आज जामुन के वृक्ष पर लकड़ी फेंक कर जामुन गिराने का प्रयास कर रहा था, इसका अर्थ है कुछ ही दिनों में जामुन पकने और स्वयं गिरने आरंभ हो जाएंगे। जून कुछ  समय पहले पैदल ही क्लब चले गए हैं। एक्सेंच्योर कंपनी का एक प्रेजेंटेशन है जो कंपनी को डिजिटल करने की दिशा में सहायता करने वाली है। वर्षा होने लगी है, वापसी में उन्हें किसी से लिफ्ट लेनी होगी। अब लगभग दो माह और रह गए हैं उनके कार्यकाल में। आज से छत्तीस वर्ष पूर्व वे उत्तर प्रदेश से असम आए थे, और जीवन का अगला पड़ाव कर्नाटक में बनेगा। आज प्रधानमंत्री ने राज्यसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर जवाब दिया, विरोधी पार्टियां उनकी बातों को समझने में ज्यादा रुचि नहीं दिखाती हैं, ऐसा लगता है मात्र विरोध करना ही उनका ध्येय है।अमित शाह  कश्मीर गए हैं, वहाँ अमरनाथ यात्रा शुरू होने वाली है। हज यात्रा में भी इस वर्ष काफी यात्री जाएंगे, महिलाएं भी काफी संख्या में अकेले जा रही हैं।  योग कक्षा  में एक साधिका ने कहा, उसका दस वर्षीय पुत्र बहुत चंचल है और उसकी बात नहीं सुनता। उसने कहा, बच्चे हों या बड़े, कोई भी जन आदेश लेना नहीं चाहते, देह छोटी हो पर आत्मा तो सबके भीतर समान है, उसे भी अपनी स्वतंत्रता और आत्मसम्मान उतना ही प्रिय है जितना किसी वयस्क को। उससे अनुरोध तो किया जा सकता है पर माने या न माने इसका फैसला उस पर ही छोड़ना होगा। माता-पिता को उसे यह तो बताना  होगा कि क्या करने से उसका लाभ है और किस काम से उसे ही हानि होगी, बाकी उसकी बुद्धि पर छोड़ देना चाहिए। वह यह सब बताती रही पर याद ही नहीं रहा, कि  जून को जाना है। उन्होंने शिकायत की तो उसने कहा, एक माँ को समझा रही थी। वह उस समय तो चुप हो गए पर अवश्य नाराजगी भीतर ही रह गई होगी। ऊर्जा एक बार कोई रूप धारण कर लेती है तो जब तक उसे निष्कासन का मार्ग न मिले नष्ट नहीं होती। साक्षी भाव से उसे देखना पहला तरीका है और झट स्वयं में लौट जाना दूसरा।  

 

आज सुबह तेज बारिश हो रही थी, वे बरामदे में ही टहलते रहे, फिर वहीं चटाई बिछाकर सूर्य नमस्कार व आसन किए। सुबह का योग दिन भर मन को  ऊर्जा से ताजा रखता है। एक अनुपम गंध जाने कहाँ से आ रही है, परमात्मा की शक्ति व कृपा अपार है व उसका रहस्य कोई नहीं जान सकता। परमात्मा ने उसे साम, दाम, दंड, भेद हर तरह से समझाया है कि वह हर तरह की आसक्ति का त्याग कर दे।  छोटी बहन कनाडा में है, सुंदर तस्वीर भेजी है। दीदी ने उसकी रचनाओं पर टिप्पणी की है, वह सदा उन्हें पढ़ती हैं। आज ‘शिव सूत्र’ पढ़े। मातृका के बारे में जानकर बहुत अच्छा लगा। संस्कृत के बावन अक्षर ही बावन शक्ति पीठ हैं। अघोरा , घोरा और महाघोरा  तथा बैखरी, मध्यमा, पश्यन्ति और परा वाणी के संबंध में भी। ज्ञात हुआ साधना के द्वारा उन्हें शब्दों के पार जाकर उस स्रोत तक पहुंचना है जहाँ से शब्द निकलते हैं। उस योग साधिका ने आकर कहा, उसे एक ही दिन में अपने पुत्र में परिवर्तन दिखाई दिया है, उसका खुद का हाथ का दर्द भी आसन करने से ठीक हो गया है। योग का ऐसा परिणाम देखकर बाकी सबको भी अच्छा लगता है। 

 

आज दोपहर को तेज गर्मी के बावजूद बच्चों ने पूरे मन से सुंदर चित्र बनाए। क्रिकेट विश्व कप में भारत का मैच इंग्लैंड के साथ है, जो बहुत अच्छा खेल रहा है। भारत अब तक एक भी मैच नहीं हारा है, कहीं उसकी यह विजय यात्रा थम न जाए। आज चार  महीनों के बाद मोदी जी का सम्बोधन ‘मन की बात’ में सुना, जिसमें वह सभी देशवासियों को प्रेरित करते हैं, आज जल संरक्षण पर बात की, अपनी केदारनाथ यात्रा का जिक्र किया और भी कई मुद्दों पर बात की, पर सबसे अच्छी बात थी, उनकी भावनाएं इतनी पवित्र हैं और वह एक राजनीतिज्ञ से अधिक एक लेखक, कवि या दार्शनिक लगते हैं, वह सुधारक भी हैं और प्रेरक भी। उन्हें पत्र लिखकर यह सब बताने का मन हुआ, आज कई बार उनकी बातें सुनकर हृदय छलक आया। उनके हृदय में इतनी करुणा और इतना विश्वास है कि भारत जैसे विशाल देश के सुदूर गावों में रहने वाले लोग भी उनसे एक जुड़ाव महसूस करते हैं। सुबह सभी परिवार जनों से भी फोन पर साप्ताहिक  बातचीत हुई। छोटी भतीजी एओल का बेसिक कोर्स कर रही है, वह घर से बहुत दूर जॉब करने जाती है, भाई को उसकी सुरक्षा की चिंता के कारण कुछ तनाव तो होता होगा । माँ-पिता दोनों का ही रोल उन्हें निभाना है । सुबह अमलतास की कुछ और तस्वीरें उतारीं।   

 

वर्षों पूर्व..  उस दिन लिखा था, जीवन क्या है ? क्या मात्र सुख या आनंद का स्रोत ! क्या  सुख प्राप्त करने का प्रयत्न  ही जीवन का मात्र लक्ष्य है ? क्या खुश रहना ही अपने आप में एक महत कार्य है ? क्या भविष्य की योजनाएं बनाना और कठिन परिश्रम करके उन्हें सफल करने का प्रयत्न करना महत्वपूर्ण है या कि .. शायद महत्व इस बात का है कि  किसी का जीवन दूसरों की कुछ भलाई कर सकता है या नहीं । फिर यदि वे सुंदर भविष्य के लिए कुछ करते हैं तो वह उचित ही है। किन्तु वह जो अपना बहुमूल्य समय व्यर्थ कर रही है इसके लिए उसे  ग्लानि भी नहीं होती, होती भी है तो न के बराबर। यद्यपि वह अच्छी तरह जानती है कि  उसका कर्तव्य क्या है, पर भीतर ही कोई भावना है जो कहती है, बस प्रसन्न रहो ! उसके आसपास के लोगों में कोई नहीं कहता कि  यह ठीक नहीं, या  ठीक है पर यह सब कुछ नहीं, यदि वह अपने आपको चमकाएगी नहीं, पॉलिश नहीं करेगी, ज्ञान प्राप्त  नहीं करेगी, जो पढ़ा है उसे दोहराएगी नहीं तो कुंद हो जाएगी पत्थर की तरह। तब कोई महत्व नहीं होगा, सब एक तरफ कर देंगे, छाँट देंगे या वह पीछे रह जाएगी। जीवन काम है सँवारने का,  पॉलिश करने का टेढ़े-मेढ़े पत्थर को सुडौल बनाने का ! 

 


Friday, April 27, 2018

शिवसूत्र



दोपहर के तीन बजे हैं. धूप अब कुछ ही देर की मेहमान है, इस समय ठंड ज्यादा नहीं है पर शाम होते न होते तापमान गिर जाता है. वह गुलाब और जरबेरा के मध्य हरी घास पर बैठी है. मालिन बगीचे में झाड़ू लगा रही है और उसकी बेटी क्यारियों में पानी डाल रही है. उसके इर्दगिर्द श्वेत धुंए सा पारदर्शी कोई आवरण छाया हुआ है जो गतिमान है तथा जिसके भीतर से देखने पर सामान्य दिखने वाली घास भी अति प्रकाशवान व सुन्दर हो जाती है. परमात्मा की लहर जैसे उसे छूकर जाती है, कितना दयालु है वह ! आज सुबह प्रार्थना की, वह उसे धैर्यवान बनाये, धैर्य की कमी के कारण उसे न जाने कितनी बार कितनी परेशानी उठानी पड़ी है. धैर्य की कमी का सीधा सा अर्थ है उस पर भरोसा न होना. कर्ता भाव जगते ही तो अधैर्य का जन्म होता है. शास्त्रीय ज्ञान को जीवन में उपयोग न कर सके तो उसका होना न होना बराबर ही है. लोभ की वृत्ति से भी छुटकारा पाना है. सद्गुरू के वचन सुनती है तो लगता है सब याद है पर वह मात्र स्मृति ही बन कर न रह जाये, जीवन में पग-पग पर उसका उपयोग हो सके.

संध्या के साढ़े पांच बजे हैं. आज का दिन कितना अलग रहा. सुबह देर से उठी, कल रात को क्लब से देर तक गाने की आवाजें आ रही थीं, देर से सोयी, वैसे भी जबसे जून गये हैं, रात्रि को सोने में देर हो ही जाती है. दोपहर को ग्यारह बजे क्लब गयी, इतने वर्षों में पहली बार बीहू पर होने वाले खेल देखे. पारंपरिक भोजन किया, जो स्वादिष्ट था और गर्म था. आलू पिटकी, केले के फूल की सब्जी, पालक पनीर, दाल बड़ा और दो तरह के चावल और दाल. वापस आकर बच्चों के लिए चने बनाये और उन्हें भी खेल खिलाये. जून आज रामेश्वरम गये हैं, शाम तक तमिलनाडू में अपने निवास पर आ जायेंगे, और दो दिन बाद यहाँ. आज ‘शिवसूत्र’ पर लाई किताब पढ़ी. ओशो का प्रवचन डाऊनलोड किया इसी विषय पर, कल सुनेगी. उनके जीवन पर आधारित एक फिल्म भी बनी है. सद्गुरू ने भी शिवसूत्र पर प्रवचन दिए हैं, पहले टीवी पर सुन चुकी है. सुबह पुनर्जन्म पर एक टेलीफिल्म देखी. शाम को क्लब जाना था, फिर एक सदस्या के घर, इस बार के क्लब के वार्षिक उत्सव में वे एक ‘वाल मैगजीन’ प्रकाशित करने वाले हैं, वह बहुत रुची से बना रही है. सब मिलाकर तीन घंटे वहीं लग गये. दो दिन बाद उन्हें यात्रा पर निकलना है. नैनी की बेटी कई बार कह चुकी है, उसे नृत्य के लिए बुलाये, बच्चों को नाचना अच्छा लगता है और उनके साथ नाचना उसे भी ! अब सोमवार को ही सम्भव होगा या फिर कोलकाता से आने के बाद.

सुबह भी काफी कोहरा था, एक छोटी सी यात्रा की राजगढ़ की आज. मृणाल ज्योति ने विशेष बच्चों एक लिए अपने स्कूल की एक शाखा वहाँ खोली है, उसी का समारोह था. दोपहर ढाई बजे वह लौटी और उसके कुछ देर बाद जून भी आ गये. ढेर सारा सामान लाये हैं हमेशा की तरह. तमिलनाडू के चेट्टीनाड से तीन साड़ियाँ भी. बगीचे से मेथी, फूल गोभी व हरे प्याज तोड़े, और रात के भोजन में उसका पुलाव बनाया, जून को बहुत पसंद है.

आज सुबह अँधेरे में खिड़की का पर्दा हटाते समय एक फ्रेम टूट गया, एक पिछले हफ्ते टूटा था, इसी तरह पर्दे के ही कारण. उसे प्रकाश कर लेना चाहिए सुबह उठते ही कमरों में, जैसे भीतर प्रकाश न हो तो मन में अँधेरा छा जाता है, वैसे ही बाहर भी प्रकाश अति आवश्यक है. आज मृणाल ज्योति जाना था, कम्पनी के डायरेक्टर्स की पत्नियाँ यहाँ आई हुई हैं, मुख्य अधिकारी की पत्नी उन्हें लेकर जाने वाली थी. वहाँ एक पुरानी परिचिता मिलीं, कुछ वर्ष पूर्व वे लोग यहाँ से चले गये थे, गोरी-चिट्टी हँसमुख और पूर्णतया स्वस्थ नजर आती थीं, पर उन्हें अब कैंसर हो गया है, कृशकाय हो गयी थीं, पर मुस्कान वैसी ही है. बच्चों से मिलकर सभी खुश हुए. वहीं से उसने कुछ उपहार खरीदे. कल उन्हें असमिया सखी के पुत्र, जो नन्हे का मित्र भी है, की शादी में जाना है, नन्हा भी एक दिन के लिए आएगा. अभी पैकिंग शेष है. धूप में बैठकर लिखना अच्छा लग रहा है. पंछियों की आवाजें आ रही हैं तथा घास काटने की मशीन की भी कभी-कभी ! शेष समय मौन है. आज से नैनी की बेटियों ने स्कूल जाना शुरू कर दिया है, सुबह दोनों चहकती हुईं स्कूल ड्रेस पहनकर आयीं थीं, उसने दोनों की तस्वीर उतारी.   

Saturday, January 16, 2016

शिव सूत्र का अर्थ


आज सुबह गुरूजी को ‘शिवसूत्र’ पर बोलते सुना. इच्छा शक्ति कभी पूर्णता को प्राप्त नहीं होती और  इच्छा का अंत हुए बिना आनन्द की प्राप्ति नहीं होती, तो करना यह है कि इच्छा को नमस्कार करते हुए उसके पार चले जाया जाये. उससे युद्ध नहीं कर सकते. उसके बावजूद शिव तत्व को पाना है. सद्गुरु के बोल सुनकर लगता है जैसे वह उनके ही मन की बात बोल रहे हैं. जैन संत ने बताया नैतिकता का अर्थ है मानवीय एकता व संवेदनशीलता, सभी के साथ एकता का अनुभव होने से स्वतः ही उनके सुख-दुःख उन्हें प्रभावित करेंगे. उसका हृदय उन सभी की ओर जाता है जो अस्वस्थ हैं, दुखी हैं. वे यदि चाहें तो अपने को उबार सकते हैं, उन्हें कोई राह बताने वाला चाहिए. नैनी व पास के बच्चों को पढ़ाने में वह सफल नहीं हो पा रही है, वे उद्दंड होते जा रहे हैं. वे पल भर भी टिक कर नहीं बैठते, उनका दिमाग एक से दूसरी वस्तु पर बहुत तेजी से दौड़ता है. क्रोध दिखाना ही पड़ता है. उनकी माएँ भी ध्यान नहीं देती, उसे ही कोई उपाय सोचना होगा. जून ने फोटो फ्रेम में फोटो लगा दिए हैं, आश्रम के तथा अंकुर संस्कार केंद्र के बच्चों के. शाम को उनके यहाँ होने वाले सत्संग में दिखाएगी, बच्चे भी देखकर प्रसन्न होंगे. सभी प्रसन्न हों, यही तो उसका उद्देश्य है.

यह संसार एक दर्पण है, या कहें कि सांसारिक संबंध दर्पण हैं, जिनमें उन्हें अपना सच्चा स्वरूप दिखाई पड़ता है. जब वह लोगों से मिलती है तो अपनी सच्चाई को ज्यादा स्पष्टता से देख पाती है. उनके साथ व्यवहार करते समय मन कैसा स्वार्थी, लोभी और कभी-कभी ईर्ष्यालु भी बन जाता है, देह में नकारात्मक संवेदनाएं भी होती हैं, जबकि कुछ लोगों  के संपर्क में आने से ऐसा कुछ भी नहीं होता, तब भीतर का प्रेम प्रकट होता है. लेकिन पहले वर्ग के लोग उसके सच्चे हितैषी हैं, उनके द्वारा ही पता चलता है कि भीतर अभी कितना कचरा भरा है. कभी कभी वे अपनी सहजता व सरलता खो बैठते हैं और हर बार इसका कारण है उनका संकीर्ण मन, आत्मा में तब उनकी स्थिति नहीं होती. किसी ने गुरूजी से पूछा कि ऐसा क्यों होता है तो उन्होंने कहा खेल जानकर इसे दृश्य की तरह देखो, यह भी क्षण भंगुर है, पर यदि यही क्रम जीवन में बार-बार दोहराया जाता है तो चिंता की बात है, क्योंकि तब यह संस्कार बन जाता है और वे अनजाने ही ऐसा व्यवहार करने लगते हैं. संस्कार को तोड़ने के लिये सजगता सर्वोपरि है, जैसे ही भीतर कोई नकारात्मक भाव उठे, उसे वहीँ देखकर समाप्त कर देना होगा ताकि वह आगे अंकुरित ही न हो. कभी मन में अवांछित विचार भी आ जाये तो उससे छूटने का प्रयास विफल ही जाता है जब तक यह न मान लिया जाये मन एक धोखा ही तो है. वास्तव में भीतर ढूढने जाएँ तो मन कहीं है नहीं, ऐसा अनुभव होते ही शांति छा जाती है. तब लगता है सारी साधनाएं खेल है, वे हर वक्त वही हैं जो होना चाहते हैं, लेकिन उनका वह होना उनसे दूर इसलिए हो गया है क्योंकि उस अटूट शांति की धारा से विलग होकर वे स्वयं इस माया की दुनिया में विचरते हैं, भिन्न-भिन्न अनुभव प्राप्त करते हैं. एक स्वप्न से ज्यादा कहाँ है यह माया की रचाई दुनिया. मकर संक्रांति के बाद मौसम में हल्की गर्माहट आ गयी है. कल शाम को सत्संग ठीक तरह, एक घंटा भजन गाते-गाते कैसे बीत जाता है पता ही नहीं चलता. संगीत आत्मा को स्पर्श करता है.

वर्षा के कारण मौसम ठंडा हो गया है, भीतर कमरे में भी ठंड का अनुभव हो रहा है. अभी-अभी ध्यान से उठी है. मन शांत है. अनहद की धुन निरंतर सुनाई पडती है आजकल, मधुर वंशी, कभी वीणा, कभी पंछियों का मधुर कलरव. मन विचार शून्य हो तभी सुनाई दे ऐसा भी नहीं, चौबीसों घंटे. गुरुमाँ कहती हैं वह ध्वनि भी सत्य नहीं है. जैसे बंद आँखों से दिखने वाला प्रकाश असत्य है और रात को देखे स्वप्न मिथ्या हैं. ये सब मन का ही चमत्कार हैं. मन आत्मा की शक्ति है लेकिन परमात्मा को जाना नहीं जा सकता क्योंकि वही तो जानने वाला है. इन दार्शनिक प्रश्नों में उलझना व्यर्थ ही है, क्योंकि निरा सिद्धांत किसी काम का नहीं, यदि वह प्रयोग में न आए. परमात्मा जीवन में झलके तभी उसकी सार्थकता है. परमात्मा अर्थात प्रेम, शांति, आनन्द और उत्साह..उनका जीवन उसकी साक्षी दे, वर्तन वैसा हो तभी कहा जायेगा कि उन्होंने धर्म को जाना है. भीतर जब निर्मलता होगी तभी धर्म का वास्तविक रूप वे जान पाएंगे.