नए वर्ष में पहली बार डायरी खोली है। मन में एक गहरी शांति है और कुछ भी लिखने जैसा नहीं लग रहा है। ‘कविता’ भी कई दिनों से नहीं लिखी। बुद्ध के बारे में दोपहर को पढ़ा, बहुत अच्छा लगा। ‘ओल्ड पाथ व्हाइट क्लाउड्स’ में गौतम बुद्ध के जीवन और शिक्षाओं को कितनी खूबसूरती से प्रस्तुत किया गया है. इसमें बुद्धि के जीवन के अस्सी वर्षों को गांव के एक भैंस चराने वाले लड़के स्वस्ति, जो बाद में उनका शिष्य बन जाता है, के माध्यम से और आंशिक रूप से स्वयं बुद्ध के माध्यम से दर्शाया गया है. जीवन के कितने गहरे सत्यों का अनुभव बुद्ध ने किया था, बच्चे उनके प्रथम शिष्य थे। बच्चों को सत्य आसानी से अनुभव में आता है, क्योंकि उनके पास अहंकार की कोई बाधा नहीं होती, न ही वे हर बात को बुद्धि से तोलते हैं, वे सीधे आत्मा से ही अनुभव करते हैं। बुद्ध कहते हैं, जीवन में सभी कुछ परस्पर निर्भर है और नश्वर है; चीजें निरंतर बदल रही हैं। ध्यान की गहराई में जब तन, मन, भावना और विचार सब कुछ स्पष्ट दिखाई देते हैं तब उनके द्वारा प्रभावित होने का डर नहीं रहता। सत्य कभी बदलता नहीं और जगत एक सा रहता नहीं। इस बात को जब भीतर अनुभव कर लिया जाता है तो जीवन सरल हो जाता है। प्रेममय हो जाता है और सारा विषाद खो जाता है। वर्तमान में टिकना ही जागरण है, वर्तमान के क्षण में ही जीवन से मुलाकात हो सकती है। जैसे ही मन अतीत या भविष्य में जाता है, सत्य से नाता टूट जाता है। अतीत जा चुका वह मिथ्या है, भविष्य अभी आया नहीं, केवल यही क्षण सत्य है, इसमें पूरे होश के साथ जीना ही साधक का कर्तव्य है। ऊर्जा का संरक्षण तब ही संभव है।
सम्यक वाणी साधक के लिए अति आवश्यक है, उतनी ही जितना सम्यक कर्म, सम्यक विचार और सम्यक ध्यान। भोजन भी साधक को समुचित मात्रा में लेना चाहिए, ऐसा भोजन जो सुपाच्य हो और हल्का हो। आज सुबह का ध्यान अत्यंत प्रभावशाली था, चीजें कितनी स्पष्ट दिखाई दे रही थीं। समझ जैसे भीतर से स्वत: ही बह रही थी। मानव के भीतर कितनी समझ है और कितनी शांति, एक स्थिरता भरा अनंत आकाश है भीतर ! इसमें टिके रहना ही तो ध्यान है।
आज भी ब्लॉग पर कुछ नहीं लिखा। कल से प्रारंभ करना है। आर्ट ऑफ लिविंग के एप में गुरुजी की लिखी कई किताबें हैं, वीडियो भी हैं, एक पूरा खजाना है। कल वे आश्रम जाएंगे। गुरुजी एक सप्ताह के लिए आश्रम में रहेंगे। वे स्वयं सेवक का कोर्स भी करने वाले हैं। आज भी दोपहर बाद बुद्ध की पुस्तक पढ़ी, कितनी अच्छी किताब है यह, उल्हास नगर की यात्रा के दौरान मासी के यहाँ यह किताब देखी थी, फिर यहाँ आकर मँगवाई। उसे उनका कृतज्ञ होना चाहिए। बुद्ध कहते हैं सभी कुछ आपस में जुड़ा है और नश्वर है। चीजें जैसी हैं वैसी ही उन्हें देखना आ जाए तो कहीं कोई तनाव, क्रोध, ईर्ष्या, घृणा, नकारात्मकता नहीं टिक सकती। स्वयं में टिककर ही वे आत्मा की शांति और आनंद का अनुभव कर सकते हैं। जो मुक्ति का वरण करता है उसे संसार का आकर्षण नहीं लुभाता। वह तट पर बैठे व्यक्ति की भांति लहरों का आना जाना देखता रहता है और स्वयं में तृप्त रहता है.
आज गुरूजी को देखा, सुना. वर्षों पहले उन्हें टीवी में नियम से सुनती थी. कैसा सौभाग्य है कि उनके आश्रम में उनको सुनने का अवसर मिल रहा है. वह सरल शब्दों में सभी प्रश्नों के कितने सुंदर उत्तर देते हैं. सत्य में प्रतिष्ठित व्यक्ति कैसा होता है और सिद्ध कौन होता है, आत्म अनुभव कैसा होता है, ऐसे और इसी तरह के प्रश्नों के उत्तर कितनी सहजता से वह दे रहे थे. हिंदी व अंग्रेजी दोनों ही भाषाओँ पर उनकी गहरी पकड़ है और परमात्मा से अभिन्न हैं वह ! आज बुद्ध की किताब आगे पढ़ी, मैत्री और करुणा का कितना सुंदर वर्णन किया है और प्रेम का भी, हृदय कितनी गहरी विश्रांति का अनुभव कर रहा है. संसार के हर जीव के प्रति प्रेम का भाव मन में उदित हो रहा है, सभी तो अपने ही हैं, एक ही हैं, शाम को एक पुरानी सखी का फोन आया, कितना आश्चर्य है कि दोपहर को उसका स्मरण हो आया था और अंतर में प्रेम था. जून के प्रति भी भीतर कितना स्नेह प्रकटा था, उनका स्वभाव बहुत अच्छा है, शाम से उनका व्यवहार भी कितना प्रेमिल लग रहा है. गुरूजी की बात अक्षरशः सत्य सिद्ध हो रही है कि सभी एक ही चेतना से बने हैं ! कल विवाह की सालगिरह है , उससे भी पूर्व से वे एक-दूसरे से परिचित हैं, यानि साथ पुराना है.
भगवान बुद्ध ने बच्चों को भी ध्यान सिखाया था. उनकी शिक्षा और समझ कितनी लाभप्रद है और कितनी गहरी. वे जीवन और मृत्यु के रहस्य को समझाते हैं, जीवन की नश्वरता और जगत के मिथ्या होने को भी, जैसे गुरूजी कहते हैं, अब तक का उनका जीवन एक स्वप्न से ज्यादा क्या है ? इतने वर्ष बीत गए कुछ वर्ष और हैं, यह देह एक दिन नष्ट हो जाएगी, उनके पहले कितने लोग चले गए, अब उनकी कोई खबर नहीं, वे भी एक दिन हवा हो जायेंगे तो क्यों न इसी क्षण स्वयं के कुछ न होने को स्वीकार कर लें. जीवन एक खेल से ज्यादा क्या है, कृष्ण की लीला या राम की लीला ... आज वे आश्रम गए थे. एच आर विभाग आज भी बन्द था, परसों भी देर हो जाने से कोई नहीं मिला था. कल जून के एक पुराने मित्र परिवार सहित आये, अपने साथ सुंदर सफेद बेला और लाल गुलाब के फूलों की मालाएं लेकर आये थे, एक-दूसरे को पहनने को कहा, तस्वीरें भी खींचीं. शाम को नन्हा व सोनू आये, गुलदाउदी के फूलों का एक गुलदस्ता, खजूर व मिठाई लाये. लेखन कार्य अभी शुरू नहीं हुआ है, जो पुस्तक पढ़ रही है, उसके खत्म होने पर ही लिखना हो पायेगा.
एक संगीत के शिक्षक मेरे परिचित थे। वे बच्चों को संगीत की शिक्षा दिया करते थे। एक दिन मैंने उनसे प्रश्न किया कि आप केवल बच्चों को ही शिक्षा देते हैं, बड़ों को क्यों नहीं, तो उनका उत्तर था - बड़ों के साथ सबसे बड़ी समस्या यह होती है कि वे शीघ्र ही परिणाम की अपेक्षा रखते हैं, जबकि बच्चे शिक्षण को आनंद के रूप में ग्रहण करते हैं, उनके लिये संगीत का अभ्यास भी एक खेल की तरह है जिसका मूल उद्देश्य निर्मल आनंद के अतिरिक्त कुछ नहीं।
ReplyDeleteएक और बहुत पुरानी कहावत स्मरण हो आई कि हमारे लिये भले ही विश्व की सात प्रमुख आश्चर्य होते होंगे, किंतु एक बालक के लिये तो पल पल जितनी भी वस्तुएँ उसके सम्पर्क में आती हैं, वही आश्चर्य का विषय बन जाती हैं।
पुस्तक अभी उपलब्ध नहीं है, किंतु मैंने संजोकर रख लिया है, जैसे ही उपलब्धता होगी, मैं अवश्य मंगवाकर पढूँगा।
बच्चों के बारे में संगीत शिक्षक ने बिलकुल सही कहा, इसलिए गुरूजी भी कहते हैं, "मेरी चाहत है कि बड़े लोग भी बच्चे जैसे बन जाएँ, सरल और आश्चर्य से भरे हुए" ! यह पुस्तक आपको अवश्य पसन्द आएगी। आभार !
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