सुबह पाँच बजे के कुछ देर बाद उठे वे। अंगुली में दर्द अब नहीं है। आज सिरके व पानी का इलाज किया, तीन बार, काफी असरकारक है। सूजन अभी भी है, दवा साथ में रखनी होगी जब परसों वे ‘काबिनी वन्य-जीव अभयारण्य’ के लिए रवाना होंगे। आज एनी का दूसरा भाग देखा, वह कविता सुनाकर अपनी टिकट के पैसे एकत्र करती है, मारिला उसकी कीमत जानती है तभी उसे वापस बुला लेती है। गाँव के दृश्य भी बहुत सुंदर हैं पर लोगों के दिल कितने कठोर हैं, कैसे अपशब्द वे उसके लिए बोलते हैं। दलितों ने न जाने सदियों तक ऐसे ही कटु वाक्य अपने लिए सुने होंगे भारत में भी, आज भी उन्हें नीच जाति का कहकर अपमानित किया जाता है, उसे आश्चर्य होता है, ब्राह्मण स्वयं को वेदों का ज्ञाता मानते हुए भी इतना भेदभाव कैसे सहन करते रहे, जबकि वेदों में लिखा है, सभी में एक ही चेतन सत्ता है। आज सुडोकू शीघ्र हल कर पाई, अभ्यास से कौन सा काम नहीं हो पाता ? परमात्मा की स्मृति जीवन को कैसी सुवास से भर देती है, आश्चर्य होता है कि जिन्हें इसकी खबर नहीं वे कैसे रहते होंगे !
आज नैनी ने गमले से कोई स्थानीय साग तोड़ कर दिया, जिसके बीज उसने पालक के बीजों के साथ ही डाले थे. पालक के पत्ते भी अगले हफ्ते तक तोड़ने लायक हो जायेंगे. जून कमरे में तथा सीढ़ियों पर रखे गमलों को बाहर गैरेज में रख रहे हैं, अगले चार दिन वे घर से बाहर रहेंगे तो बंद घर में उन्हें धूप-हवा-पानी नहीं मिल पायेगा. पिटूनिया के नन्हे पौधे भी निकल आये हैं, नैनी को दिन में एक बार आकर पानी डालने को को कहा है. एनी का तीसरा भाग देखा, स्कूल में उसे कितनी दिक्कत होती है, अब वह पेड़ों-फूलों के साथ समय बिताती है, किताबें पढ़ती है, पर एक दिन उसका झूठ पकड़ा जायेगा. आज दो किताबें आयीं, ओल्ड पाथ विथ क्लाउड्स और द विज़डम ऑफ़ लाओत्से, दोनों ही यात्रा पर साथ ले जाएगी. बुद्ध के जीवन पर आधारित पहली पुस्तक अवश्य ही बहुत अच्छी होगी. लाओत्से का ज्ञान तो अनुपम है ही. आज मंझले भाई-भाभी से बात की, कल वे लोग पिताजी के पास जा रहे हैं, उनका दामाद भी साथ जा रहा है, उनसे मिल लेगा. आज सुबह पुराने हिंदी गीत सुने और शाम को शिव भजन, संगीत अंतर्मन को कितना सुकून देता है, यह जानते हुए भी वह केवल संगीत सुनने के लिए समय बहुत कम ही निकालती है.
आज सुबह लगभग नौ बजे वे घर से चले थे, दोपहर एक बजे ‘रेड अर्थ रिजॉर्ट’ पहुँच गए. रास्ता बहुत अच्छा था, हरियाली, जंगल, खेत, झीलें और कर्नाटक के गावों से गुजरते हुए, गीत सुनते हुए आराम से कट गया. आते ही स्वादिष्ट भोजन मिल गया. उनकी कॉटेज की छत झोंपड़ी जैसी है भीतर से चटाई, बाहर से पुआल की.बाहर छोटा सा लॉन है तथा एक जाकुजि भी। कमरे में सभी आधुनिक सुविधाएँ हैं. लकड़ी का पुराने ढंग का फर्नीचर है, पीछे बालकनी है, जिसमें दो चमड़े की कुर्सियां रखी हुई हैं. सामने जंगल नुमा फलों का बगीचा है और कुछ ही दूरी पर कपिला नदी है, जिसे काबिनी नदी भी कहते हैं। एक बड़ा सा अंजीर का पेड़ भी है जिसपर सैकड़ों अंजीर के फल लगे हैं। उन्होंने एक घंटा विश्राम किया फिर नदी तक गए। तट पर हरी घास थी, जो दूर तक फैला है। नन्हा व जून दो साइकिलें लेकर आए, बारी-बारी से सभी ने साइकिल चलायी। नदी की लहरों को देखते रहे जो सागर का सा आभास दे रही थीं। कुछ ही दूर पर बाँध बनाया गया है, इसलिए पानी काफी है और लहरें भी। नदी किनारे एक रेस्तरां है जिसके सामने पेड़ों से लटके कई झूले लगे हैं जिन्हें हेमॉक कहते हैं शायद। शाम की चाय उन्होंने वहीं बैठकर पी। कई तरह के पक्षी भी नदी के जल में मछलियाँ पकड़ने आए थे। हवा ठंडी थी, सो अंधेरा होते ही वे कमरे में आ गए। रात्रि आठ बजे सांस्कृतिक कार्यक्रम है, बोन फायर भी है।
आज सुबह वे इस सुंदर स्थान में बसने वाले पक्षियों को देखने तथा प्राकृतिक भ्रमण के लिए पूरे समूह के साथ गए। पथ प्रदर्शक को स्थानीय पक्षियों के बारे में जो भी जानकारी थी, सभी के साथ बाँट रहा था। नन्हे ने अपने कैमरे से कई सुंदर पक्षियों की तस्वीरें उतारीं। रंग-बिरंगे पंछियों और नदी के स्वच्छ जल में सूर्योदय के सुंदर दृश्य का प्रतिबिंब देखकर सभी प्रसन्न थे। वापस आकर नाश्ता किया फिर वहाँ से एक घंटे की दूरी पर स्थित प्राचीन शिव मंदिर देखने गए। पुजारी राघवन एक किसान है और मंदिर में पूजा का काम भी करता है। उसने सबका नाम पूछा, राशि भी, और पूरे भाव से पूजा करवायी। मंदिर का इतिहास बताया। ढाई हजार साल पुराना शिवलिंग है यहाँ, नंदी भी सुंदर काले पत्थर का है। वापस आकर नन्हा व सोनू वापस चले गए, आठ बजे तक घर पहुँच जाएंगे। दो दिन बाद उन्हें लेने आएंगे। शाम को वे पुन नदी के तट पर गए, हवा ठंडी थी और आकाश पर बादल थे। एक घंटा टहल कर वे वापस लौट आए। आज के सांस्कृतिक कार्यक्रम में आदिवासी लोकनृत्य था। श्वेत वस्त्र पहने कई युवा व प्रौढ़ कलाकार बड़ी दक्षता के साथ विभिन्न स्वर निकालते हुए नृत्य कर रहे थे। दो व्यक्ति ढोल बजा रहे थे। नया साल आने में दो दिन शेष हैं, जिसमने उन्हें कर्नाटक के वन्य जीवन को निकट से देखने का अवसर मिलेगा।
सिरके और पानी का ईलाज मैं भी जानना चाहूँगा, क्योंकि मेरी उंगलियों में भी प्राय: पीड़ा रहती है। मुझसे तो यह धारावाहिक यदि पहली कड़ी से बाँध लें तो टुकड़ों में नहीं देखे जाते। चाहे जितना भी समय लगे मैं प्राय: एक या दो बैठक में देख लेता हूँ।
ReplyDeleteसमाज के जातीय विभाजन की ओर जो इशारा किया गया है उसपर तो मुझे ओशो की एक ही बात स्मरण हो आती है कि यह विभाजन वस्तुत: समाज का क्षैतिज विभाजन था, जहाँ हर किसी को उनके कार्य के आधार पर देखा गया था और क्षैतिज इस्लिये कि कोई भी कार्य ऊँचा या नीचा नहीं, अपितु एक समान महत्वपूर्ण थे। कालांतर में कब यह विभाजन ऊर्ध्व विभाजन हो गया और ऊँच नीच, फिर छुआछूत तक फैल गया।
काबिनी नदी और उसके परिवेश में स्थित वन्य प्राणी अभयारण्य सचमुच बहुत ही रोचक होगा। प्रतीक्षा रहेगी वहाँ की एक झलक पाने की!
सादर...!
बहुत बहुत आभार !
ReplyDeleteत्वरित और सुंदर प्रतिक्रिया हेतु आभार, सिरके और पानी का इलाज बहुत सरल है, आधा कप सहने योग गरम पानी लें, उसमें एप्पल विनेगर का एक चम्मच मिलाएं और हाथ की अंगुली को उसमें पाँच से दस मिनट तक डुबोकर रखें, नाखून के पास अंगुली में जो सूजन आ जाती है वह ठीक हो जाएगी। समाज में बात छुआछूत तक फैल गई और क्योंकि लोग अशिक्षित थे इसलिए यह अत्याचार चलता रहा, यहन तक तो बात ठीक है पर आज के जमाने में में भी उनके साथ बहुत अपमान जनक व्यवहार होता है। समानता आने में अभी और समय लगेगा।
ReplyDeleteस्वागत व आभार !
ReplyDeleteवाह बहुत सुंदर प्रस्तुति।
ReplyDeleteउपयोगी जानकारी युक्त।
स्वागत व आभार !
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