Friday, October 2, 2020

वृक्षारोपण

 

रात्रि के नौ बजने को हैं. जून होते तो कहते, अब दिन को विदा करो, लेट्स कॉल इट आ डे. वह पोर्ट ब्लेयर में हैं, रॉस आईलैंड देख लिया, सेलुलर जेल भी. कल कोलकाता आ जायेंगे और परसों घर. शाम को वह पुस्तकालय गयी और दो किताबें लायी, एक मध्यकालीन इतिहास पर और दूसरी जीन(डीएनए) पर. दोनों का कुछ अंश पढ़ा. वापसी में गुलाबी फूलों वाले पेड़ की तस्वीर खींची. जिसके यहाँ चम्पा का पेड़ है उस सखी के यहाँ भी गयी, उसने बताया, यहाँ जो सफाई करने आता है, उसे भूलने की बीमारी है, उसे अपना नाम भी याद नहीं है. चीजें रखकर भूल जाता है, एक ही काम को दोबारा करने लगता है, पर वे लोग उसकी शिकायत करने को तैयार नहीं हैं, करुणावश ही सम्भवतः। सखी ने बताया उसके ससुर जी को भी यही बीमारी थी और पिता को भी है. जीवन में कब क्या होगा, कौन जानता है ? सुबह मृणाल ज्योति के लिए कुछ सामान ख़रीदा और एक शिक्षिका को देने गयी, कई महीनों से जिसका गला खराब चल रहा था, आज कुछ ठीक था. उसकी बिटिया का जन्मदिन आने वाला है, उसकी तैयारी में व्यस्त थी, बेहद ऊर्जावान,  रचनात्मक कार्यों में लगी रहती है. घर लौटी तो नैनी अपने बेटे को डांट रही थी, पता चला उसके बेटे ने गेट पर लगाने वाला ताला गैरेज पाइप में डाल दिया है जिसे निकालने का कोई उपाय नहीं है.


जब वे अपने मन के अंधकार में भटकते हैं तो स्वयं की अनुभूति रूपी प्रकाश की किरण आते ही सारा अंधकार खो जाता है. आज सुबह टहलने गयी तो गुलमोहर, अमलतास और अज़ार के फूलों से लड़े वृक्ष पुनः देखे. हजारों फूल जाने कहाँ से आते हैं अपने मौसम में अपने आप ही, कोई अज्ञात ऊर्जा जैसे उनके रूप में प्रकट हो रही हो. दोपहर को बच्चे आये थे आज, पर्यावरण दिवस पर उन्होंने सुंदर चित्र भी बनाये. अंडमान की सुंदरता को निहार कर जून कोलकाता आ गए हैं. माली ने बगीचे में कई जगह फूलों की पौध लगाई, लॉन में मशीन से घास भी एक समान की. क्लब की वर्तमान प्रेसिडेंट से बात की उसने बताया भूतपूर्व प्रेसिडेंट अभी तक उसे फोन करके क्लब की बातों के बारे में पूछती रहती हैं. उसे लगा जीवन कल्पनाओं के जाल में व्यर्थ ही उलझ रहता है. जब तक उनका मन दर्पण तुल्य हो, वे कोई प्रतिक्रिया न करें , ऐसा मन यदि नहीं है तो वे व्यर्थ ही जगत में फंस जाते हैं. 


जून वापस आ गए हैं, विभाग में उनकी पदोन्नति हो गयी है. सभी की बधाइयाँ और फोन आ रहे हैं. शाम को वह क्लब की दो सदस्याओं के साथ वृक्ष लगाने के लिए उचित स्थान देखने गयी. एक जगह एक ऐसा पार्क मिला जिसे बनाना तो आरम्भ किया गया था पर बीच में ही छोड़ दिया गया. वहीं रहने वाले एक व्यक्ति ने बताया, ठेकेदार बीच में ही भाग गया था.  विश्व पर्यावरण दिवस पर क्लब की तरफ से वृक्षारोपण कार्यक्रम के अंतर्गत कल सुबह नौ बजे जाकर गड्ढे खुदवाने हैं और शाम को पेड़ लगाने हैं. दोपहर को मृणाल ज्योति के काम से एक बैंक जाना था, गर्मी बहुत थी और लोगों की भीड़ लगी थी. सुबह एक अनोखा अनुभव हुआ, एक कविता लिखी उसी भाव दशा में ! 


पर्यावरण दिवस पर सुबह से शाम तक वह व्यस्त रही. तीन माली लगाकर पार्क का गेट व सामने का थोड़ा सा भाग उन्होंने साफ करवाया. दस-पन्द्रह गड्ढे खुदवाये. जब तक यह काम चलता रहा क्लब की एक सदस्या के साथ विभिन्न विषयों पर सार्थक वार्तालाप हुआ वह समाज के लिए कुछ करना चाहती है. शाम को उसमें  फूलों और शरीफे के वृक्षों की पौध लगाई. पार्क के अंदर बोगेन्विलिया के  कुछ पौधे भी लगाए. उसके पूर्व वे बच्चों के स्कूल में भी वृक्षारोपण कर के आये थे, पीले व नारंगी रंग के गुड़हल के पौधे वहां लगाए. कुछ वर्षों में जब ये पौधे वृक्ष बन जायेंगे तो वातावरण को प्रफ्फुलित करेंगे. शाम को घर लौटी तो योग कक्षा चल रही थी, अब साधिकाएं इतनी सक्षम हो गयी हैं कि अपने आप ही सभी अभ्यास कर लेती हैं. जून ने रात के भोजन की तैयारी भी कर दी थी. 


वर्षों पूर्व डायरी में उस दिन के पन्ने पर ऊपर लिखी सूक्ति कन्फ्यूशियस की थी - ‘चिंतन के बिना अध्ययन मेहनत खोना है’. उसे लगा इसका अर्थ हुआ अब तक का उसका जो भी अध्ययन है वह व्यर्थ है, अर्थात उसका कालेज का अध्ययन यानि गणित, क्योंकि वह केवल परीक्षा देने के लिए पढ़ती है। उसके बाद कोई उपयोग उसके सम्मुख नहीं रह जाता कि उसका चिंतन भी करे. कैसा विरोधाभास है, यही विरोधाभास तो हर पल उसके जीवन में दिखाई पड़ता है और अब तो उसे इससे स्नेह भी हो गया है. यह भी एक तरह का विरोधाभास ही हुआ. एक पत्र पाकर उसे लगा जैसे कोई भार उतर गया हो. उसका खोया चैन उसे वापस मिल गया. जैसे अस्तित्त्व उसे एक नए रूप में मिला हो, पहले से ज्यादा प्रसन्न, ज्यादा उत्साह से भरा और उसके प्रति अनूठी भावनाएं लिए ! वह जो निष्क्रिय हो गयी थी फिर भर गयी हो प्राण से, स्पंदन से, जीवन से ! उसकी चिर ऋणी वह उसे ही चाहती है. उस अनन्त आभामय सुबह के स्वर्णिम काल का अभिनन्दन करते हुए  उसने कृतज्ञता पूर्वक प्रणाम किया.   


4 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (04-10-2020) को     "एहसास के गुँचे"  (चर्चा अंक - 3844)    पर भी होगी। 
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    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'  
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