Sunday, October 4, 2020

जीन का इतिहास

 

आज ईद का अवकाश है. वे नाश्ते की मेज पर बैठे थे कि एक सखी का फोन आया, भूटान के बारे में जानकारी लेने के लिए, संयोग की बात है कि पिछले वर्ष आज ही के दिन वे भूटान गए थे. कितनी ही स्मृतियाँ लौट आयीं. जीवन की तरह यात्रा में भी हर तरह की बातें होती हैं, कुछ सुखद और कुछ दुखद भी.  एक ऐसी बात भी याद आयी जिसे अपने संस्कारों के कारण उसने शिकायत की थी. मन की प्रतिक्रिया से एक रचना का जन्म हुआ. इस जगत में सभी अपने-अपने संस्कार से बंधे हैं. जब तक वे मन से ऊपर उठकर जीना नहीं सीख जाते दुःख से छुटकारा नहीं है, अथवा तो उन्हें जीवन के वास्तविक दुखों का सामना नहीं करना पड़ा है सो काल्पनिक दुखों का निर्माण कर लेते हैं. जून भी वृक्षारोपण के कार्यक्रम में गए थे, पेड़ लगाने के बाद एक सुंदर रेशमी गमछा पहनाया गया उन्हें. हजारों बल्कि लाखों की संख्या में वृक्ष लगाए गए होंगे इस अवसर पर पूरे देश और विश्व में.शाम को योग कक्षा में एक साधिका ने वृक्षों को समर्पित एक व्यक्ति के अद्भुत कार्यों की बात बताई. उन्होंने भजन गाये और प्रसाद वितरण किया, सभी कुछ न कुछ लेकर आयी थीं.  समाचारों में सुना इस वर्ष के अंत तक जम्मू-कश्मीर व लेह में चुनाव कराये जायेंगे.   


सुबह के ध्यान में भगवान राम, सीता व लक्ष्मण के सुंदर विग्रहों का दर्शन हुआ, अद्भुत था वह दर्शन, मणि-माणिक से सजे सुंदर रंगीन चित्र के समान पल भर के लिए आये और विलीन हो गए . मन की गहराई में कितने खजाने छुपे हैं, जिनका उन्हें खुद ही भान नहीं है. इस समय टीवी पर तेनाली रामा आ रहा है, मानव के छह रिपु काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद व मत्सर राजा कृष्णदेवराय को पराजित करने के लिए तत्पर हैं. अब देखना है कि इस युद्ध में रामा कैसे राजा को बचाता है. जेनेटिक्स पर सिद्धार्थ मुखर्जी की लिखी किताब आगे पढ़ी, द जीन- एन इंटिमेट हिस्ट्री. बहुत रोचक ढंग से लिखी गयी है, जीन का विज्ञान भी बहुत पुराना है और इसमें नित नए अविष्कार हो रहे हैं. सौ वर्षों पूर्व कितना अन्धविश्वास था समाज में, इसकी जानकारी भी मिल रही है. विज्ञान ने या कहें समय ने मानव को ज्यादा संवेदनशील बनाया है. बहुत दिनों बाद फेसबुक पर नजर दौड़ाई, बड़ी भांजी का स्टेटस देखा तो उदासी की खबर दे रहा था, उससे व्हाट्सएप पर बात की. हमारे कर्मठ प्रधानमंत्री मालदीव और श्रीलंका की यात्रा पर गए हैं. वायुसेना का एक विमान ए एन 32 पिछले तीन दिनों से लापता है, उसमें 13 यात्री थे, उसने मन ही मन उनके सकुशल रहने की प्रार्थना की. 


आज शाम को अचानक तेज हवा चलने लगी, आकाश काला हो गया और देखते ही देखते मूसलाधार वर्षा होने लगी, पर एक घंटे बाद सब थम गया. प्रकृति की लीला को कौन समझ सकता है. आज ‘श्रद्धा सुम’न ब्लॉग पर बहुत दिनों बाद लिखा. काव्यालय पर भवानी प्रसाद मिश्र की एक और कविता आयी है, उन्होंने मृत्यु का स्वागत सहजता से किया. आज सुबह ध्यान में एक दुबला -पतला बच्चा दिखा, मन भी विचित्रता से भरा है. कल रात स्वप्न में नन्हे को देखा, वह चाइना से असम आ गया है. 


और अब अतीत के पन्नों से - उस दिन की सूक्ति में लिखा था, गरीब लोग प्रेम और सहानुभूति के भूखे होते हैं. यह  पढ़कर ही सम्भवतः उसने लिखा था, यदि कोई जानता होगा तो उस दिन फिर एक दिव्य संदेश उसे प्राप्त होगा. जिस प्रकाश से आवृत होने की बात कुछ दिन पूर्व  लिखी थी, प्रकाश का वह पुंज छितरा गया था जब अगले दिन का पेपर अच्छा नहीं हुआ, किन्तु उसकी आवश्यकता तो सदा ही रहती है. आज इस क्षण से वह पुंज उसका मार्गदर्शक हो ऐसी प्रार्थना ईश्वर से करती है, उस ईश्वर से जिसके अस्तित्त्व पर उसे संदेह है. फिर क्यों कर वह उसकी बात सुनेगा, पर ईश्वर उसे अपनी प्रतीति स्वयं कराएगा. वह अज्ञानियों पर भी उतनी ही दया रखता है ऐसा सब कहते हैं. अज्ञानता में सार न हो पर उसमें पाप है ऐसा वह नहीं समझती. पाप और पुण्य की समझ उसे नहीं है, वह हर वक्त किसी का आश्रय चाहती है क्योंकि वह इतनी दुर्बल और क्षीण है कि अकेले चलना उसके बस का नहीं फिर वह एक कोई अपना हो या ईश्वर !  व्यक्ति है उसके सम्मुख जीता-जागता, उसकी बातों का जवाब देने वाला ! पर व्यक्ति कभी -कभी आपस में नहीं बोलते ऐसे पलों में उसे लगता है ईश्वर की मित्रता कभी अस्थायी नहीं होती. वह कभी उससे नाराज़ नहीं होगा, होगा भी तो मान जायेगा फिर ... किन्तु अपनों के साथ जुड़े होते हैं कितने अनोखे क्षण, स्मृतियाँ ! क्या स्मृतियाँ मृत होती हैं ? क्या उनमें कोई वस्तु स्पंदन नहीं कर रही होती. यदि वे मृत प्रायः हैं तो किसी के होने का मूल्य सिर्फ वर्तमान में है क्योंकि भविष्य में क्या छुपा है उन्हें नहीं ज्ञात. लेकिन ऐसा नहीं है वे जो ‘कुछ’ हैं, ‘वह’ कभी वे थे ! 


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