आज सुबह वे उठे तो बाहर गहन कोहरा था. इस वर्ष ठंड जल्दी शुरू हो गयी है और ज्यादा भी है. दो वर्ष पहले वे इस समय पंखा चलाते थे, आज ही पुरानी डायरी में कुछ देख रही तो पढ़ा. जून टीवी पर नागालैंड के बारे में यू ट्यूब का एक वीडियो देख रहे हैं, जिसमें ग्रीन विलेज खोनोमा पर एक डाक्यूमेंट्री दिखाई जा रही है. ‘खोनोमा’ एक गाँव है, जहाँ पहले जंगल काटे जा रहे थे तथा शिकार के द्वारा जंगली जानवरों को खत्म किया जा रहा था पर वहां की जनता सजग हो गयी और अब वह स्थान पुनः हरा-भरा हो गया है. इस माह के अंत में वे वहाँ जाने वाले हैं. नागालैंड की यात्रा में उन्हें अपने साथ कुछ रेडी टू ईट वाला भोजन भी ले जाना होगा. वहां शाकाहारी भोजन मिलने में कुछ परेशानी हो सकती है. आज से क्लब के वार्षिक कार्यक्रम के लिए रिहर्सल भी आरंभ हो गयी है. आज बंगाली सखी का जन्मदिन है, दो वर्ष पहले तक वे उनके घर जाकर बधाई देते थे पर आज व्हाट्सएप पर ही शुभकामनाएँ दे दीं. वक्त बदलता है तो लोग भी बदलते हैं और रिश्ते भी बदलते हैं. छोटी बहन के यहाँ दो दिन बाद सत्संग है, गुरूजी के यूएई आने की ख़ुशी में.
फिर कुछ दिन का अंतराल ! दिन जैसे पंख लगाकर उड़ रहे हैं. इस समय रात्रि के आठ बजे हैं. जून आज देश की राजधानी गए हैं, नन्हा भी जाने वाला था पर अभी तक उसे उस अस्पताल के मैनजमेंट ने डेट नहीं दी जो उनके क्लाइंट हैं. जून ने उसे देने के लिए सामान भी खरीद लिया था, जो अब घर ले आएंगे. गुरूजी ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन लिखे उसके कमेंट पर कमेंट किया है यू ट्यूब पर, यह अवश्य ही उनकी टीम ने किया होगा, उनके पास इतना समय नहीं होता होगा, पर वह चाहें तो सब कर सकते हैं. उनकी कृपा का ही फल है कि आज विश्व में लाखों व्यक्ति अध्यात्म से जुड़ रहे हैं. वह कहते हैं, जीवन में जो भी दुःख आता है वह अज्ञान का फल है, उन्होंने कभी न कभी इस दुःख का बीज डाला था. वे जितना-जितना बाहर सुख खोजते हैं भीतर का सुख ढक जाता है. भीतर का सुख भुलाकर जब बाहर से लेने जाते हैं तो इसे ही मोह कहते हैं. सुख के लिए बाहर किसी को दुःख नहीं देना है, संसार की कोई वस्तु इतनी कीमती नहीं है जिसके लिए संसार को दुःख दिया जाये. भीतर का सुख खो न जाये इसके लिए भी सजग रहकर किसी को दुःख न हो जाये, इसका ध्यान रखना है.
नागालैंड की यात्रा से वे लौट आये हैं, यात्रा सुखद थी और यादगार भी. वर्ष का अंतिम महीना आ गया है. देखते ही देखते यह वर्ष भी विदा हो जायेगा. इस महीने कई कार्यक्रम हैं, पहले सप्ताह में घर में डिनर पार्टी है, जो चार परिवार एक साथ मिलकर नागालैंड गए थे, वे सभी एक साथ मिलकर उन तस्वीरों को देखेंगे और एक नागा परिवार को बुलाएँगे जिसने इस यात्रा में उन्हें सहयोग दिया. दूसरे सप्ताह में महिला क्लब का वार्षिक उत्सव है. जिसकी तैयारी में उसे भी काफी समय देना पड़ेगा. उसके अगले दिन ही जून के पूरे विभाग की पिकनिक पार्टी है. उसके तीन दिन बाद उन्हें दुबई की यात्रा पर निकलना है. जहाँ से नए वर्ष के आरंभ होने के बाद ही लौटना होगा. आज छोटे भाई के विवाह की सालगिरह है.
कल का पूरा दिन विभागीय पिकनिक के नाम था. वे लोग सुबह जल्दी ही निकल गए थे, नदी किनारे टैंट लगाया, एक मेज भी ले गए थे जिसपर सुबह का नाश्ता लगा दिया गया था. फुटबाल, बैडमिंटन, रस्साकशी आदि खेलने का भी प्रबंध था. नदी में उतरे वे लोग फिर धूप में रेत पर लेटे रहे, कुछ लोगों ने गाने गाये, कुछ ने अभिनय किया. कुछ यूँही टहलते रहे. दोपहर का भोजन एक रेस्तरां वाला लेकर आया, वह अपने साथ ही सब कुछ लाया था बड़ी सी वैन में. दो मेजें जोड़कर उसने लन्च सजा दिया. उसे वह पुराने दिन याद आये जब पूरा भोजन खुद बनाया जाता था, लकड़ी का चूल्हा जलाकर, दो-तीन पत्थर जोड़कर वे चूल्हा बनाते थे. घण्टों खाना बनाने में ही लग जाते थे, पर उस भोजन का स्वाद ही अलग होता था. अब कोई भी यह ज़िम्मेदारी उठाना नहीं चाहता सो बना-बनाया भोजन ही मंगवाना पड़ता है.
बढ़िया और उपयोगी डायरी लेखन।
ReplyDeleteस्वागत व शुक्रिया !
Deleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 28.5.2020 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3715 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
दिलबागसिंह विर्क
बहुत बहुत आभार !
Deleteवाह बहुत सुंदर प्रस्तुति।
ReplyDeleteस्वागत व आभार !
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