Sunday, May 3, 2020

ओस की बूँदें



आज दिन भर व्यस्तता बनी रही, इस समय टीवी पर कोई हास्य धारावाहिक चल रहा है पर आवाज बन्द है, जून की फोन पर बात चलती रहती है. कल उन्हें एक हफ्ते के लिए अहमदाबाद व जयपुर जाना है. पैकिंग कल शाम को ही कर ली थी. आज शाम हेयर कट के लिये रखी थी, उनके छोटे या बड़े सभी काम योजना बद्ध होते हैं. उसके भी जाने की बात थी पहले पर इन दिनों उसके पास भी कई काम हैं. शाम को स्कूल में मीटिंग थी. उससे पूर्व क्लब की सेक्रेटरी के साथ गिफ्ट बांटने के लिए सूची बनाने का काम था. दोपहर को मृणाल ज्योति में हिंदी कक्षा लेने गयी.  पांच विद्यार्थी हैं दो छात्रायें और तीन छात्र, वे बोल नहीं सकते पर आपस में सब कुछ कह-सुन लेते हैं. उनके चेहरों की मुस्कान कुछ अलग ही होती है, वह जितना हो सके इशारों व चित्रों के माध्यम से से उन्हें हिंदी लिखना-पढ़ना सिखा रही है. सुबह ड्राइविंग का अभ्यास किया एक योग साधिका को देखने गयी जो कुछ दिन से अस्वस्थ है, वह बहुत कमजोर लग रही थी. इसी तरह दिन कुछ न कुछ करते बीत गया. जून लन्च पर नहीं आये, उनके दफ्तर में एक लैब अटेंडेंट का विदाई समारोह था. बड़े भाई का बुखार आखिर उतर गया, मंझले भाई का फोन आया, वह बहुत खुश था, भाभी ने बहुत सहायता की. छोटी बहन ने कहा वह डेंगू पर एक कविता लिखे. दोपहर को पुराना माली आया. कहने लगा, उसके पास फोन आया, आपका इनाम निकला है, अपना अकॉउंट नम्बर भेज दीजिये. वह पूछ रहा था, भेजे कि नहीं. वे लोग आधार नम्बर भी मांग रहे थे, उसे मना किया. कल ही उसके पास केबीसी की तरफ से एक फोन आया, कि उसका चुनाव हुआ है, यकीन नहीं हुआ उसे, क्योंकि कभी कोशिश ही नहीं की थी. सोनू ने बताया, वह फोन असली नहीं था. 

आज सुबह बेहद सुहानी थी, सितम्बर समाप्त होने को है, मौसम में हल्की ठंडक बढ़ गयी है. उसे पंछियों की आवाजों ने जगाया, लगा जैसे वे भोर होने का एलान कर रहे थे और कह रहे थे, मानव कुदरत की इस नेमत से खुद को वंचित क्यों रखता है, जब पेड़, पंछी, हवाएं और आसमान सभी सूरज का स्वागत कर रहे हैं तब वह घर में मुंह ढक के सोया रहता है. वह झट बगीचे में गयी, लॉन की ह्री शीतल घास का स्पर्श अनोखा था और हल्की धुंध ने जैसे वातावरण को तिलस्मी बना दिया था. देखते-ही देखते सूरज ऊपर आ गया और ओस की बूंदें विलीन होने लगीं. दोपहर पूर्व  लेखन कार्य को आगे बढ़ाया, फिर योग कक्षा में पेट की चर्बी कम करने के व्यायाम कराए, आजकल कमर जैसे कमरा होती जा रही है. शाम को भजन संध्या थी. आज उसे मिलाकर पूरी एक दर्जन साधिकाएं थीं. उसने खजूर का प्रसाद दिया, एक महिला मीठी इडली बनाकर लायी थी, चावल, दूध, नारियल, चीनी व इलाइची पाउडर से बनी, बहुत स्वादिष्ट थी. जून अहमदाबाद पहुँच गए हैं. 

आज का दिन भी व्यस्तता से भरा था. सुबह के सारे कार्य, भृमण, साधना, नाश्ता आदि करते करते नौ बज गए. उसके बाद कार का अभ्यास. दोपहर को स्कूल व लेखन कार्य कर ही रही थी कि एक सखी का फोन आया, बंगाली सखी की माँ का देहांत हो गया, कई दिनों से बीमार थीं, अस्पताल में थीं. उससे मिलने गयी, कई लोग थे वहाँ, सखी बहुत उदास थी, जो स्वाभाविक ही था. कहने लगी, भाई ने अभी फौरन आने को मना किया है वह चौथ तक घर पहुँच जाएगी.  कुछ देर बैठकर वह वापस आ गयी. शाम को क्लब में मासिक कार्यक्रम था, पूजा का माहौल बन गया था. नृत्य, भजन, गीत सभी कुछ देवी को समर्पित थे फिर स्किट भी हुआ. पड़ोसिन के साथ पैदल चलकर घर आ गयी. हील की चप्पल  और साड़ी पहनकर आना थोड़ा कठिन तो है पर दूरी ज्यादा नहीं है, दस-बारह मिनट ही लगते हैं. वापस आकर पड़ोसिन ने अपने मन की बात कही, उन्हें दुःख था कि पिछले महीने क्लब का एक कार्यक्रम आयोजित करने के लिए प्रेसीडेंट ने उन्हें धन्यवाद नहीं दिया, वह बहुत उदास थीं. उसने कहा, सम्भवतः ज्यादा व्यस्त रहने के कारण वह भूल गयी हों, जानबूझ कर वह कभी ऐसा नहीं करेंगी . ‘सम्मान पाने की आशा ही दुःख का कारण है’, उसने यह सूक्ति लिखी व्हाट्सएप सन्देश में. शायद वह समझ जाएँगी, उन्हें ज्यादा दुःख भी हो सकता है, पर यदि वह इस पर विचार करेंगी तो इस बात का सत्य समझ में आएगा. 

2 comments:

  1. सार्थक पोस्ट।
    वाकई आशा ही दुःख का कारण है।

    ReplyDelete
  2. स्वागत व आभार !

    ReplyDelete