Tuesday, May 19, 2020

फूलों की रंगोली


आज नवम्बर का प्रथम दिन है, उन्हें यहाँ से जाने में  मात्र दस महीने रह गए हैं. आज उसने चार नए फूल झाड़ू मंगवा लिए हैं, जबकि एक झाड़ू चार महीने तो चल ही जाता होगा, अब कुछ भी मंगाने से पहले सोचना होगा. शाम के साढ़े सात बजने को हैं. आज भजन में कम ही महिलाएं थीं, पर अच्छा लगा. गुरूजी कहते हैं मस्त होकर भजन गाना चाहिए. किसी को यह समझने में पल भर की देर नहीं लगती कि कौन केवल अधरों से गा रहा है और कौन दिल से ! उससे पूर्व बगीचे में मालिन से काम करवाया. माली आज काम पर नहीं आया, उसके हाथ में चोट लगी है, वह डॉक्टर के पास नहीं जा रहा है, रोग बढ़ता जा रहा है. बढ़ई काम कर रहा है, खिड़कियों की जाली कई जगह टूट-फूट गयी है, उसे ही ठीक कर रहे हैं. एक मिस्त्री ने नालियों को ठीक-ठाक किया, लगातार तंबाकू खाता रहा, उसकी क्षमता कम हो गयी है, चीजों को ठीक से नहीं कर पा रहा था. बढ़ई भी बहुत दुबला-पतला है. मजदूरों को इतना श्रम करना होता है पर उन्हें पूरी खुराक नहीं मिलती. 

दोपहर को महिलाओं को योग नहीं करवा पायी, बरामदे में पेंटिग का काम तभी खत्म हुआ था, अब दीवाली के बाद ही  अगला सत्र होगा. ब्लॉग्स पर लिखने बैठी तो ज्यादा नहीं लिख पायी, अब पहले की तरह घँटों कम्प्यूटर पर बैठना नहीं भाता, परिवर्तन स्वाभाविक है. नैनी ने कहा, उसे रंगोली के लिए रंग चाहिए, वह अपने पति से कहकर मंगवा सकती है, उसे पैसे देकर कहा, क्योंकि आज तक कभी भी उसने रंगोली के रंग नहीं खरीदे. वह फूलों से ही रंगोली बनाती है सदा. आज सुबह क्लब की एक सदस्या का फोन आया, वह बहुत प्यार से बात करती है, किसी की वाणी में इतनी मधुरता पता नहीं कहाँ से आ जाती है. किसी के भाव मधुर होते हैं यानि दिल का अच्छा होता है पर वाणी कठोर होती है. किसी के कर्म अच्छे होते हैं. जिसमें सभी कुछ अच्छे हों यानि भाव, वाणी और कर्म ऐसे तो कोई सद्गुरु जैसे बिरले ही होते हैं.  कल की प्रतियोगिता में उस मृदुभाषी महिला ने बहुत सुंदर रंगोली बनाई थी. सुबह छोटी बहन से बात हुई, वह दिसम्बर में उनके आने पर स्वागत की तैयारी कर रही है. 

शाम के साढ़े छह बजे हैं. कल सुबह नन्हा व सोनू आ रहे हैं. उन्हें आज ही आना था पर आज सुबह जब एयरपोर्ट के लिए निकलने से पूर्व वेब चेकिंग करते समय पता चला कि टिकट तो कल की है. कुछ पल के लिए तो निराशा हुई, क्योंकि कितने दिनों से इंतजार था इस दिन का, पर बाद में वे सब खूब हँसे। कल इस समय वे यहाँ होंगे. बाहर बरामदे में रंगोली बन गयी है और दीवाली की लाइट्स भी लग गयी हैं. आज दोपहर मृणाल ज्योति में मीटिंग थी, स्कुल में बाड़ लगानी है. स्कूल की दो शाखाओं में भी काम कैसे आगे बढ़े, इस पर चर्चा हुई. विकलांग दिवस की तैयारियां भी चल रही हैं. परसों उन्होंने चार स्कूलों में जाकर उस दिन पहनने के लिए बच्चों को बैज वितरित किये. अगले हफ्ते दीवाली के बाद कुछ अन्य स्कूलों में जाना होगा. 

बाहर वर्षा हो रही है, दीवाली दो दिन बाद है और मौसम यकायक बदल गया है. पिछले दिनों धूप खिली रही, ऐसे ही मन का मौसम भी बदलता रहता है. संशय के बादल छा जाते हैं तो ज्ञान का सूर्य ढक जाता है. कर्मों का बंधन आगे बढ़ने ही नहीं देता, वे चार कदम आगे बढ़ते हैं फिर छह कदम पीछे लौट आते हैं. जून कोऑपरेटिव गए हैं, वहां से दफ्तर जायेंगे, फिर तिनसुकिया होते हुए डिब्रूगढ़ पहुंच जायेंगे, नन्हा व सोनू दो बजे हवाई अड्डे उतरेंगे, उन्हें लेकर आना है. सुबह नींद खुली उसके पूर्व स्वप्न चल रहे थे, कितने जन्मों के कितने स्वप्न.. मन की गहराई को कोई नाप नहीं सकता. देहाभिमान या देहाध्यास छूटता नहीं या वे छोड़ना ही नहीं चाहते. ध्यान के पलों में लगता है अब सब मिल गया पर जगत में जाते ही सब बिखर जाता है. यह बिखरना भी एक स्वप्न मात्र ही है, यह भाव आ तो जाता है पर मन, बुद्धि पर उतनी देर में जो संस्कार पड़ जाता है, वह भविष्य में पुनः फल देगा, एक दुष्चक्र इस तरह चलता रहता है. सजगता और सजगता इसके शिव कोई साधना नहीं अथवा तो पूर्ण समर्पण .. जो भी हो सब उसी परमात्मा का प्रसाद समझकर स्वीकार करना होगा. मन को खाली रखना होगा

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