पौने ग्यारह बजे हैं. आज का दिन कुछ भारी है शायद या फिर अभी वह अनाड़ी है. आज सुबह कार लेकर गयी, कालोनी में ही एक चक्कर लगाया, वापस आयी तब तक भी ड्राइवर नहीं आया था , सो अकेले ही बाजार चली गयी, ट्रैक्टर को ओवरटेक करते हुए गाड़ी का बायां भाग लग गया. कार को गैराज में ले जाना पड़ेगा. कल रात को नींद खुलती रही, फिटबिट सब खबर रखता है. बहुत दिनों बाद सब्जी में प्याज डाला, कैसी अजीब सी लग रही थी उसकी गंध. सात्विक भोजन खाकर तन-मन दोनों ही हल्के रहते हैं. एक सीनियर महिला ब्लॉगर ने उसकी तीन पोस्ट्स को ब्लॉग बुलेटिन में जगह दी, इसका अर्थ है उन्होंने अवश्य ही उन्हें ध्यान से पढ़ा भी होगा. इस समय रात्रि के आठ बजे हैं, जून अपने मोबाइल पर व्यस्त हैं. दोपहर को वे गाड़ी बनने के लिए दे आये, दो हफ्तों बाद मिलेगी. अब भविष्य में बहुत सतर्क होकर गाडी को हाथ लगाना होगा, फ़िलहाल कालोनी में चलाना ही ठीक रहेगा. उसके बाद तिनसुकिया गए, छाता बन गया, सब्जियां-फल आदि खरीदे. जून को भी गाड़ी के दुर्घटनाग्रस्त होने का ज्यादा बुरा नहीं लगा, उन्होंने पहली बार इंश्योरेंस क्लेम किया है. कल स्कूल में मीटिंग ठीक रही, अब कुछ महीने बाद स्टेज बनने का कार्य आरम्भ हो जायेगा. समय का सदुपयोग करना हो तो पुस्तक पढ़ने से अच्छा कौन सा काम हो सकता है, कल वी एस नायपॉल की अच्छी सी पुस्तक लायी थी, पढ़ना आरम्भ किया है. नन्हे व सोनू के चश्मे गाड़ी से सामान निकालते समय मिले, उन्हें याद ही नहीं था कि वहां रखे थे.
‘इंसान जिसके बारे में सोचता है, वैसा ही बन जाता है’. वे वही बन जाते हैं, जैसा वे बनना चाहते हैं, जैसा वे सोचते हैं. मन की गहराई में जो आकांक्षा बलवती होती है, वह एक न एक दिन मूर्तरूप अवश्य लेती है. वह बचपन से ही अध्यापिका बनना चाहती थी, पढ़ना और पढ़ाना, ये दो ही उसके प्रिय कार्य रहे हैं. परमात्मा ने उसे इस योग्य बनाया है कि वह अन्य लोगों को ज्ञान के मार्ग पर चलने की प्रेरणा दे सकती है. आज यदि वह अपने भीतर जाये तो वहां कोई आकांक्षा नहीं मिलेगी, एक मौन और सन्नाटा ! पर वह मौन रसपूर्ण है, एक सहज शांति उसमें से पल-पल रिसती रहती है. खिड़की से बाहर हरियाली नजर आ रही है, पौधे, वृक्ष कैसे शांत खड़े हैं. हवा का एक कण भी नहीं है, आकाश भी थिर है, वर्षा के बाद का खुला, स्वच्छ आकाश ! दूर से पंछियों की आवाजें आ रही हैं और घास काटने की मशीन की भी. अचानक हवा बहने लगी है और अब श्वेत गुलाब की टहनी हिलकर स्थिर हो गयी है. वह जिस आकाश में स्थित है वह तो सदा ही स्थिर है. मन का आकाश भी सदा अडोल है. उसमें विचारों का स्पंदन होता है, जो साक्षी है वही मन बन जाता है और वही स्वयं में ठहर जाता है. नैनी किचन में काम कर रही है, उसने कहा, शरीर में दर्द है, उसे क्रोसिन की दो टेबलेट दी हैं. आजकल उसके पास सिलाई का काम आ रहा है, शायद झुक कर, देर तक सिलाई करने से ही ऐसा हुआ हो. दो दिन बाद गणेश पूजा है. उसी दिन वे बच्चों को नए वस्त्र देंगे.
पल-पल रिसती शांति से सिक्त मन का मुखर मौन-डायरी के पन्नों पर गूँजता!!!!
ReplyDeleteसार्थक आलेख
ReplyDeleteस्वागत व आभार !
Deleteकई बार उल्टा भी होता है। किसी का जैसा बनने की इच्छा होती है पर कर्म नहीं किये जाते हैं या नहीं किये जा सकते हैं। घर पर सब स्वस्थ रहें यही कामना है। ख्याल रखें।
ReplyDeleteसही कहा है आपने, आपको भी शुभकामनाएँ !
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