महिला क्लब द्वारा संचालित बच्चों के स्कूल की पत्रिका
छप रही है, स्वर्ण जयंती समारोह पर. अभी-अभी उसने एक अंग्रेजी व एक हिंदी लेख की
प्रूफ रीडिंग की, सोचा, क्यों न वह भी इसमें अपनी एक कविता दे जो काफी पहले बच्चों
पर लिखी थी. ब्लॉग पर कुछ दिन पहले लिखी एक कविता प्रकाशित की. काव्यालय पर उसकी प्रतिक्रिया
पसंद आई, ध्यान का ही जादू है, यानि परमात्मा का. उसके मन में कल की बात घूम रही
है, देश आगे बढ़े इसके लिए उन्हें भी अपने तौर पर कुछ करना होगा. वह स्वच्छता रखने
के लिए क्या कर सकते हैं, इस पर मिलकर चिन्तन करना होगा. स्वच्छता ही सेवा है, इस
अभियान को उन्हें सफल बनाना है. बच्चों को भी इस काम में बहुत आनंद आता है.
अब एक ही श्वास में पूल की चौड़ाई पार हो जाती
है, जब सहज होकर तैरती है तो पता ही नहीं चलता और दूसरा किनारा आ जाता है. कई बार
इधर से उधर चक्कर लगाये. आज गहराई वाले स्थान पर भी गयी. सीढ़ी से पूरा नीचे तक,
जहाँ फर्श है पूल का. पानी ने पल भर में ऊपर ला दिया. पानी उनका मित्र है, वह देव
है, वह डुबाता नहीं है, यदि वे सहज रहें. तभी बच्चे शीघ्र सीख लेते हैं, आज श्वास
का अभ्यास किया, एक हाथ पर देह को पानी में संतुलित रखना है, पर अभी तक मुँह ऊपर
उठाकर श्वास लेना नहीं आया है. जैसे यहाँ तक पहुंची है, एक दिन वहाँ भी पहुँच
जाएगी. तैरना एक सुखद अनुभव है. नाक से पानी गिर रहा है रह-रह कर, कल भी ऐसा हुआ
फिर अपने आप ही ठीक हो गया.
आज सुना, धी, धृति और स्मृति बुद्धि के ये तीन रूप
हैं. 'धी' समझने की शक्ति है, 'धृति' संयम करने की और स्मृति याद रखने की शक्ति है. जो हिंसा नहीं
करता, उसकी धृति शक्ति बढ़ती है. धृति ही मन का नियमन करती है, मन नियंत्रित रहता
है. जहाँ सुख दिखाई देता है, मन उधर जाता है. यदि धृति भंश हुई है तो अहितकर
विषयों से स्वयं को रोकने में समर्थ नहीं हो पाता मन. जिस वस्तु से हटना है, धृति
यदि प्रबल हो तो हटने में देर नहीं लगती. अहितकर चीजों को भी करता रहता है.
हितकारी प्रवृत्ति को धृति नहीं रोकती.
शनि और इतवार पलक झपकते बीत गये. इतवार को
बच्चों ने 'शिक्षक दिवस' मनाया. बरामदे में झालर, गुब्बारे आदि लगाकर सजाया.
शनिवार को वे डिब्रूगढ़ गये. कुछ देर ब्रह्मपुत्र के किनारे बैठे. जून ने एक तस्वीर
उतारी जो एक सुंदर स्मृति बन गयी है. आज ब्लॉग पर कुछ विशेष पोस्ट नहीं कर पायी.
हिंदी फॉण्ट को लेकर कुछ समस्या आ रही थी. उस दिन प्रिंटिंग को लेकर जो समस्या थी,
उसका हल करने के लिए कम्प्यूटर इंजीनियर आया था, कल फिर आएगा. कल उन्हें मृणाल
ज्योति जाना है. शिक्षक दिवस के लिए उपहार लेकर. एक नई कविता भी लिखेगी.
सुबह समय से उठे, हल्का अँधेरा था, आकाश में
छाये बादलों की वजह से शायद. सुबह कई बार बल्कि रोज ही एक वृद्ध
महिला ( लाठी लेकर चलती हुई )मिलती है. हर मौसम में उसकी भ्रमण के प्रति निष्ठा देखकर एक दिन उसे 'नमस्ते' कह दिया था, अब वह दूर
से उन्हें देखकर ही हाथ जोड़कर 'राम राम' कहना नहीं भूलती. सुबह मृणाल ज्योति में 'शिक्षक
दिवस' मनाया. दोपहर को सफाई का काम आगे बढ़ा. तीन बजने वाले हैं एक घंटे के लिए
पुनः क्लब के काम से बाहर जाना है. आज अभी तक तो चाय पीने के संस्कार को हावी होने
नहीं दिया है. 'व्यसन' की परिभाषा एक बार सुनी थी. जिसको पूरा करने से नुकसान होता
हो और न करने से चाह बनी रहती हो, अर्थात जो आरम्भ से लेकर अंत तक दुख देने वाला
है, केवल मध्य में सुखी होने का भ्रम पैदा करता है.
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