Thursday, November 9, 2017

जीनिया की पौध


आज सुबह भी प्रतिदिन की तरह थी. शीतल, शांत और बाद में वर्षा भी होने लगी. नर्सरी गयी थी, जीनिया की पौध नहीं मिली, शाम को फिर जाना है चार बजे. दोपहर को फिर भूचाल आया. नेपाल, भारत, अफगानिस्तान, चीन सभी जगह. गोहाटी और दिल्ली-देहरादून में भी पता चला, उन्हें यहाँ पर कोई अहसास नहीं हुआ. वे सोये थे उस वक्त. उसके पेट में हल्का सा दर्द था, बहुत दिनों से कुछ नया लिखा भी नहीं, बहुत सी भावनाएं ही शायद जमा हो गयी हों. नन्हे से सुबह बात हुई, वह एक नये संबंध में बंध रहा है. लडकी के पिता अन्य धर्म के हैं, जून को इस पर एतराज है, पर यह कोई मसला नहीं है. आजकल बच्चों के लिए रिश्ते बनाना और तोड़ना एक सामान्य सी बात है. नन्हे से बात हुई, उसने कहा, अगले महीने वह घर आएगा. जून भी परसों कह रहे थे, उससे मिलकर उसके भविष्य के बारे में बात करनी है, आखिर चेतना तो एक ही है, इधर की चाह उधर पहुँच ही जाती है, विचार सूक्ष्म होते हैं, अति शीघ्र यात्रा कर लेते हैं. सुबह जून से उनके नये प्रोजेक्ट के बारे में बात हुई. जो वे गोहाटी में करने वाले हैं, प्लास्टिक से तेल बनाने का प्रोजेक्ट. उसे भी कोई सार्थक कार्य हाथ में लेना चाहिए. अपने समय व ऊर्जा का सही उपयोग करने के लिए. लगता है, रजोगुण बढ़ रहा है. अभी बाल्मीकि रामायण का कितना काम शेष है और पढ़ने का काम तो है ही. पढ़ने से ही नया लिखने का सूत्र मिलेगा. भीतर जाकर मन को टटोलना होगा. पर भीतर तो मौन है, शांत और आनंद से भरा मौन..उसे ही लुटाना है किसी न किसी रूप में. उस शांति से ही सृजन करना है. अगले महीने दीदी का जन्मदिन है और उनकी नतिनी का भी, उनके लिए भी कुछ लिखना है.

कल सुबह जब नर्सरी से जीनिया की पौध व एक पौधा लेते हुए वापस आई तो जून का फोन आया. कम्पनी के एक अधिकारी का कैम्प में रहते हुए नींद में ही देहांत हो गया है. सुनकर कैसा सा तो लगा, दोपहर को उनके घर गयी, व्यथित महिला बहुत रो रही थी, दो घंटे रुककर लौटी तो ‘मृत्यु और जीवन’ लिखा.

मृत्यु और जीवन - १

मौत एक पल में छीन लेती है कितना कुछ
माथे का सिंदूर हाथों की चूड़ियाँ
मन का चैन और अधरों की हँसी
पत्नी होने का सौभाग्य ही नहीं छीनती मौत
एक स्त्री से उसके कितने छोटे-छोटे सुख भी
पिता का आश्रय ही नहीं उठता सिर से
पुत्र की निश्चिंतता, उसका भरोसा भी
अश्रु बहते हैं निरंतर ऑंखें सूज जाती हैं
रुदन थमता नहीं विधवा का
रह-रह कर याद आती है कोई बात
और कचोट उठती है सीने में
रोते-रोते चौंक जाती है
कह उठती है, मुझे साथ ले चलो
पर कोई जवाब नहीं आता
कभी नहीं आया,
उस पार गया कोई भी लौट कर नहीं आया
क्या है मृत्यु ?
जो छीन लेती है जीवन का रस अपनों का
भर जाती है ऐसी उदासी
जो कभी खत्म होगी इसका विश्वास नहीं होता
मर सकता है कोई भी.. कभी भी.. किसी भी क्षण
तो क्यों न सामना करें इस प्रश्न का
क्यों न रहें तैयार हर पल.. सामना करने मौत का...
मौत जो जीवन की सबसे बड़ी सच्चाई है
जिसकी नींव पर ही जीवन की भीत टिकाई है
जीवन के पीछे ही छुपी है मौत
करती रहती है इंतजार उस पल का
जब शांत हो जायेगा सांसों का खेल
और झपट लेगी वह हलचल जीवन की
मुर्दा हो जायेगा यह शरीर
पर भीतर जो जान थी उसे
छू भी नहीं पायेगी मौत
कौन जानता है उसका होना
वही जो उतरा है भीतर जीते जी
जिसने चखा है मृत्यु का स्वाद जीते जी
जिसने पहचान की है घर के मालिक से !  


No comments:

Post a Comment