बगीचे में पत्ते बिखरे हैं. कल आंधी-बारिश आई थी, उसके बाद से
सफाई नहीं हुई है. माली की पत्नी को बुलवाया था पर शायद वह व्यस्त है. उसकी दूसरी
पत्नी का बच्चा छोटा है. कुल मिलाकर घर में पांच बच्चे हैं, व्यस्तता तो रहेगी ही,
शायद थक कर सो रही हो. इस समय भी बदली छाने को है, शाम को पुनः वर्षा होगी, मौसम
विभाग का भी यही कहना है, लो, बूँदें पड़नी शुरू भी हो गयी हैं, जबकि कहीं-कहीं
नीला आकाश झांक रहा है. शाम को शोकाकुल परिवार में जाना है, आज उनका दामाद आ रहा
है. मालिन आ गयी है, सोचा, उसके साथ कुछ देर बगीचे में ही रहेगी. कल शाम क्लब में
मीटिंग थी, एक गायिका ने ऊंची आवाज में गीत गाये, संगीत बहुत तेज था. एक ने नृत्य
किया, छह ढोलकिये थे साथ में, उसे जरा नहीं भाया. कार्यक्रम का स्तर बढ़ने की बजाय
घटने लगे तो दर्शकों की संख्या घटना स्वाभाविक है. नन्हे का फोन आया था, वह चेन्नई
के रास्ते में होगा इस समय. वह स्वतंत्र है और इसका आनन्द ले रहा है.
रात्रि के सवा आठ बजे हैं. आज बुजुर्ग आंटी का
श्राद्ध था, वे सुबह से ही व्यस्त थे. कल मई दिवस के कारण जून का दफ्तर बंद था,
सुबह सब कार्य धीमी गति से हुआ, फिर अस्पताल गये. माली के पिता को साईकिल से गिरने
के कारण चोट लग गयी है.
आज यूँ ही ख्याल आया, कितने दिनों से किसी से
फोन पर लम्बी बात नहीं की है. इतना ही लिखा- चलो कुछ बातें करें
फोन पर ही सही मुलाकातें करें
कहें सुख-दुःख अपने सुनें कुछ औरों से
पकड़ रखे हैं व्यर्थ ही जो जोरों से
चलो बहा दें हर आंसू जो छिपा रखा है
किसी बहाने तो सही घातें प्रतिघातें करें
सवा तीन बजे हैं दोपहर के, कैसी प्यारी पवन बह
रही है. सामने खड़ा युक्लिप्टस का वृक्ष मस्ती में झूमे जा रहा है. मई का आगमन हो चुका
है पर गर्मी का नामोनिशान नहीं, सुबह घनघोर वृष्टि हुई. प्रातः भ्रमण पर भी नहीं
जा सके. जून आज शिवसागर गये हैं, एक कनिष्ठ सहकर्मी के विवाह भोज में सम्मिलित
होने. शाम तक लौट आयेंगे. लॉन में बैठकर लिखने का सुयोग बहुत दिनों बाद बना है. एक
पक्षी लगातार कूक रहा है, दूर से दूसरा पक्षी भी उसके साथ युगलबंदी पर उतर आया है.
आज बुद्ध पूर्णिमा है. भगवान बुद्ध की संसार को कितनी बड़ी देन है विपश्यना, यानि
विशेष तरह से देखना, देह और चित्त की सच्चाई को अनुभव के स्तर पर जानकर सारे
विकारों से मुक्त होने की कला. आज सुबह जून को तमस में घिरे देखकर वह उससे भी
ज्यादा तमस में घिर गयी जब उनके कृत्य की निन्दा की. तत्क्षण हृदय पर कैसा भार
लगने लगा था, विपश्यना के द्वारा ही इससे मुक्त हुई. वे सदा ही दूसरों के निर्णायक
बन जाते हैं यह सोचे बिना कि इससे स्वयं की कितनी हानि होती है. बड़ी भांजी से बात
की, उसके ससुर को दुर्घटना में चोट लग गयी है, आपरेशन कुछ दिनों बाद होगा. असजगता
का परिणाम कितना दुखद होता है, किन्तु नेपाल में जो हजारों पीड़ित हैं, वे कहां
असजग थे? इस देह में आना ही असजगता की निशानी है. उनका अस्तित्त्व देह के बिना भी
रहता है शुद्ध रूप में, तृष्णा ही उन्हें बांधती है, सत्व गुण भी बांधता है,,
मात्र तमो या रजो गुण ही नहीं बांधता !
आपकी इस प्रस्तुति की चर्चा 02-11-2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2776 में की जाएगी |
ReplyDeleteधन्यवाद
बहुत बहुत आभार दिलबाग जी !
ReplyDeleteबढ़ियां
ReplyDelete