मृत्यु और जीवन – ६
रहती है एक अव्यक्त देह..इस देह के भीतर
वह सूक्ष्म देह ही धारण करती है नई देह
इच्छाओं, कामनाओं और अभीप्साओं से बनी है सूक्ष्म देह
जो धारण किये है पिछले जन्मों की स्मृतियाँ
जो जान लेता है यह सत्य
धारण करता है अपार वैराग्य
और मुक्त हो जाता है वासनाओं और कामनाओं से
क्या अर्थ है बार-बार उसे दोहराने का
जो मिटता रहा है हर बार देह के साथ ही
फिर शुरू हो जाती रही है नई दौड़
हो जाता है जारी एक बार फिर अपने को भुलाने का प्रयास भी
अंतहीन है यह प्रक्रिया
कभी तो जागना होगा
मौत का सच जानना होगा
चक्रव्यूह से निकलना होगा बाहर
अन्यथा बार-बार सहना होगा दर्द
बार-बार बहाने होंगे आँसू
न जाने कितनी बार देखी जा चुकी है यह जीवन की फिल्म
फिर भी नहीं चुकती वासना
फिर-फिर दोहराया जाता है वही खेल
और खोया रहता है एक भ्रम में जीवन
फिसलता जाता है हाथों से
वह जीवन जो वास्तव में मृत्यु है
मात्र आवरण है जीवन का !
मृत्यु और जीवन – ७
मृत्यु से घिरे हुए भला
कोई जी कैसे सकता है
जिसे भय है मरने का वह जी कहाँ पाता है
यात्रा करनी होगी हर चेतना को
अपने आप को जानने के लिए
जगानी होगी प्यास भीतर उस अनाम की
मौत असत्य कर देती है जीवन के अनुभवों को
लेकिन एक ऐसा जीवन भी है जो सत्य है
परम मुक्ति को प्राप्त आत्मा नहीं धरती देह
कोई
क्योंकि नहीं शेष है कोई कामना अब उसकी
मृत्यु एक छाया है जीवन की
उससे कोई भागेगा कैसे
भला लड़ेगा कैसे...
उसका सामना नहीं करता कोई
ड़ाल कर आँखों में आँखें
मुक्त हुआ जा सकता है जानकर ही उसको
ज्ञान से जगाना होगा एक नया सवेरा
जिसमें मृत्यु का कोई नहीं है डेरा !
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