आज वर्षा नहीं हो रही है,
वातावरण में उमस सी है. सुबह साढ़े चार बजे वे उठे, उसने पढ़ाया, जून बाहर से अमरूद
तोड़ कर लाये, पता नहीं किसने लगाया होगा यह वृक्ष जिसके मीठे फल वे खा रहे हैं.
वर्षों बाद उनका लगाये नींबू, संतरे व आड़ू के पेड़ भी किसी और को फल देंगे. ध्यान
के लिए आजकल सुबह समय निकालना मुश्किल होता है, सो मन किसी न किसी बात पर पल भर के
लिए ही सही झुंझला जाता है, स्वयं को समझाना कितना मुश्किल है !
कल सुबह एक मित्र परिवार आया था, उन्हें घर जाना था, जाने से पूर्व नाश्ता
यहीं करवाया तथा साथ ले जाने के लिए कुछ बनाकर भी उसने दिया. दोपहर को KSKT देखी,
अंत बहुत दर्दनाक है, लेकिन दोनों के परिवार वालों को यही सजा मिलनी चाहिए थी.
उसके एक दांत में अमरूद का बीज फंस जाने से दर्द हो रहा था, आज एक्सरे कराने जाना
है. पर उसे लगता है, एक दांत निकलवाने के बाद भी यह दर्द पूरी तरह से चला जायेगा
ऐसा नहीं है, इसलिए उसे सही देखभाल और सफाई के द्वारा ही दांतों को ठीक रखना
चाहिए. कल शाम वे क्लब गये, रेफरेंस बुक्स की प्रदर्शनी लगी थी, इतनी मोटी-मोटी
किताबें और दाम सैकड़ों, हजारों में..वे सिर्फ देखकर आ गये. वैसे भी कम्प्यूटर आ
जाने के बाद वैसी किताबों की आवश्यकता नहीं रह जाती. नन्हा कल शाम बेहद चुप-चुप
था, बाद में गोद्ज़िला का CD देखते देखते ही सामान्य हो गया, उसका उदास चेहरा नूना
से देखा नहीं जाता. शायद ऐसा ही जून को उन दिनों लगता होगा जब विवाह के बाद शुरू-शुरू
में घर की याद आने से वह चुप हो जाती थी
और उन्हें उसकी चुप्पी नागवार गुजरती थी. जो प्रेम करते हैं वे प्रियपात्र की उदासी
को सहन नहीं कर सकते. जून को इस माह के अंत तक एक पेपर लिखकर भेजना है. व्यस्तता
उन्हें प्रसन्न रखती है.
उसे आश्चर्य हुआ कि तिथियों के मामले में इतनी लापरवाह कैसे हो गयी, उसने जून
से कहा परसों पन्द्रह अगस्त है सो आज ही उन्हें मित्रों को उस दिन लंच के लिए
निमंत्रित कर देना चाहिए. डायरी खोली तो पता चला अभी चार दिन हैं पन्द्रह अगस्त
आने में. नन्हा अपना प्रिय कार्यक्रम ‘डिजनी आवर’ देख रहा है. उसने कुछ देर पूर्व
लाला हरदयाल की पुस्तक में पढ़ा, धर्म के नाम पर हजारों लोग मारे गये, धर्म ने लाभ
के बजाय हानि ही पहुंचाई है. मानव रहस्य दर्शी है, और भगवान से बड़ा रहस्य कौन है,
इसलिए तो इतने सारे धर्मों का उदय हुआ. वह खुद भी तो प्रकृति की इस अनुपम सुन्दरता
को देखकर इस विशाल ब्रह्मांड को बनाने वाले के प्रति श्रद्धा से भर जाती है. उसका
भगवान इस संसार का नहीं है, वह तो ऊर्जा का अंतिम स्रोत है जिससे यह सब हुआ है.
आज उसकी छात्रा ने कहा, अब वह नहीं आयेगी, पिछले दो वर्षों से हिंदी पढ़ाने का
क्रम अब टूट जायेगा. उसे वाकई अच्छा लगा, हिंदी व्याकरण का ज्ञान इसी कारण उसे भी
हुआ. उसके मन में एक स्वप्न है हफ्ते में दो दिन ही सही छोटी-छोटी लडकियों को
पढ़ाये, यह कार्य उसके मन का होगा और इससे समय के सदुपयोग के साथ आत्म संतोष भी
मिलेगा. अगले हफ्ते से नन्हे का स्कूल भी खुल रहा है. उसे कम्प्यूटर कोर्स करने का
भी मन है. काम करना और अर्थपूर्ण काम करना उसकी जरूरत है सही मायनों में जीवन
कार्य का ही दूसरा नाम है.
समझने की कोशिश कर रहा हूँ.. सूत्र बिखरे हैं शायद मेरे लिये.. कहाँ से समेटूँ.. मदद करें!!
ReplyDeleteसलिल जी, यह ४७९वी पोस्ट है, एक परिवार की कहानी...जो कोई भी सामान्य परिवार हो सकता है, जीवन में जो दोहराव है, एक बंधे बंधाये तरीके से जो बरसों बरस जीये चले जाते हैं, मुख्य पात्र की उससे बाहर निकलने की कोशिश है..उम्र के साथ किताबों के साथ से किस तरह बदलाव आता है..मन कैसे क्रिया प्रतिक्रिया करता है..इसी सब का लेखा जोखा..समझने जैसा तो कुछ भी नहीं है..हाँ कभी कुछ दिल से मेल खा जाये जाये तो ठीक है..
ReplyDeleteबाप रे! अब पुरानी पोस्टें तो पढना मुमकिन नहीं हो पायेगा. लेकिन जहाँ से जुड़ा हूँ वहीं से आनन्द लेने की कोशिश करता हूँ... बातें तो समझ में आ ही रही हैं! और एक बात बताऊँ कि आपके इस बयान पर कि "समझने जैसा तो कुछ भी नहीं है..हाँ कभी कुछ दिल से मेल खा जाये जाये तो ठीक है.." मेरी आपत्ति दर्ज़ करें!
ReplyDeleteअगर समझने जैसा नहीं होता तो मैं बेबाकी से अपनी बात नहीं रखता. बहुत कुछ मन से मेल खाता दिख रहा है आपकी अभिव्यक्तियों में!!
भीड़ में एक अलग सा कुछ...!!
स्वागत व आभार !
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