आज आसू ने ‘असम बंद’ का आह्वान किया है सो जून का दफ्तर
बंद है और नन्हे का स्कूल भी. सुबह वे पौने छह बजे उठे, उसने खिड़की से झाँका, मौसम
आज भी अच्छा है, न तेज धूप न गर्मी और न ही लगातार वर्षा से कीचड़, बादल बने हुए
हैं हल्के-हल्के. कल उसने छोटी बहन को एक पत्र लिखा, एक ससुराल में. वह यह लिख ही
रही थी कि बाहर वर्षा की झड़ी लग ही गयी. नन्हा अभी-अभी शिकायत लेकर आया कि पापा ने
लाइब्रेरियन सर से कह दिया, उसे एजुकेशनल बुक्स भी दिया करे तो उन्होंने story
books देना बंद ही कर दिया है. उसे hardy boys पढ़ने का मन है पर वह यह नहीं जानता
कि किसी के मन की इच्छा हमेशा पूरी नहीं सकती और जो सच्चाई है उसे स्वीकार लेना
चाहिए. आज नैनी बहुत गुस्से में थी, उसे अपनी बेटी के पैर में चोट लगने से इतना
दुःख पहुंचा है कि अपनी सोचने-समझने की ताकत ही भूल गयी, आये दिन छुट्टी मांगने पर
जब उसको डांट दिया तो काम छोड़ने पर ही उतारू हो गयी, ये लोग भले पैसे-पैसे को
मुहताज रहें पर किसी की बात नहीं सुन सकते, इसे स्वाभिमान नहीं मूर्खता ही कहेंगे.
कल उसने सिन्धी कढ़ाई का एक और नमूना सीखा, पड़ोसिन की वजह से उसका ज्ञान भी बढ़ रहा
है. कल मेहमानों के लिए उसने बड़े मन से भोजन बनाया था. जून ने बहुत दिनों बाद उसके
बनाये भोजन की तारीफ़ की.
उसने पढ़ा, “We all want a state of permanency.
We want certain desires to last for ever, we want pleasure to have no end. Which
means that we are seeking a lasting, continuous life in the stagnant pool. We refuse
to accept life as it is in fact.”
जिंदगी हसीन तोहफों से भरी
हुई है, अब कल की बात लें, दोपहर को तेज बिजली कडकी, इतनी तेज की वे सभी काँप गये
पर उसने गिरकर भी किसी
का विशेष नुकसान नहीं किया, बस उनके रिसीवर व स्पाइक बस्टर का फ्यूज उड़ गया, पास
में एक पेड़ के दो टुकड़े हो गये, गैस पाइप से रिसती गैस में आग लगी जो बड़ी आसानी से
बुझा दी गयी. वर्षा अभी भी थमी नहीं है. टीवी पर खबरें आ रही हैं, काश्मीर में तरक्की
का काम जोर-शोर से चल रहा है. प्रधान मंत्री ने फिर कहा है, Kashmir भारत का अटूट
अंग है. उसने सोचा, एक न एक दिन थक हार कर पाकिस्तान आतंकवाद का रास्ता छोड़ ही
देगा, तब तक मुश्किलें सहनी होंगी, अपने देश की अखंडता बनाये रखने के लिए कितने
लोगों ने अपनी जानें दी हैं और कितनों को अभी और देनी हैं !
आज तेज धूप निकली है, कई
हफ्तों की लगातार वर्षा के बाद सभी ने धूप का स्वागत बाहें फैला कर किया होगा, बाढ़
में फंसे लोगों ने भी और सीलन भरे घरों के वासियों ने भी. पेड़ों, पत्तियों, लॉन की
घास सभी को तो पानी के साथ साथ धूप भी चाहिए. जून भी बहुत खुश हैं. कल दोपहर लगभग
तीन बजे ( तीन बजने से पांच मिनट पूर्व) उनकी नई मारुती ८०० p red यानि मैरून रंग
की गाड़ी आ गयी. वह बहुत देर तक उसकी सफाई में लगे रहे. ३००किमि के लम्बे सफर से
कीचड़ मिट्टी से भरे रास्तों (सड़क कहना तो नाइन्साफी होगी) से गुजरकर सही सलामत
ड्राइवर इशाक आले उसे लाया था, ढेर सारी मिट्टी उसके पहियों और बॉडी पर लगी थी.
शाम को वे उसमें सवार होकर मित्रों से मिलने गये, नन्हा अपने मित्र की जन्मदिन की
पार्टी में गया था.
आज इतवार की सुबह उठते ही
जून फिर नई कार को सजाने में जुट गये, कारपेट, रबर मैट्स आदि लगाये फिर गैराज में
जाकर मड गार्ड भी, उन्होंने कहा, कल तिनसुकिया जाकर नई गाड़ी का रजिस्ट्रेशन कराना
होगा, वे उसके लिए सूट का प्लेन कपड़ा भी लायेंगे जिस पर उसका सिन्धी कढ़ाई करने व
शीशे लगाने का विचार है. उनका फोन अभी तक
ठीक नहीं हुआ है, सो घर पर खबर नहीं दे पाए हैं. बहुत दिनों बाद खाने में आज दाल-चावल
खाए, बचपन की याद ताजा हो आई,
सुस्वागतम!! आपकी यात्रा सुखद रही होगी ऐसा अनुमान है. बिल्कुल उसी तरह जिस तरह "अहम बन्द" की घोषणा वाले दिन का मौसम था. कुछ परेशानियाँ भी रही होंगी यात्रा में जैसे वर्षा के बाद कीचड़. तीर्थ में पण्डों की परेशानी और उनकी खिचखिच बहुत तंग करती है. अब लाइब्रेरियन पसन्द की बुक देने में आनाकानी करे तो ये खिचखिच नन्हे को भी कहाँ भली लगती है. और आज जब मैं इस पोस्ट की तारीफ कर रहा हूँ तो लग रहा है जून को सचमुच खाना बहुत पसन्द आया! चुनाव का मौसम और कश्मीर...!
ReplyDeleteक्या कहूँ, सबकुछ कभी अपना सा, कभी अपनी घर की औरतों सा लग रहा है!! ख़ुद को तलाशने का अच्छा प्लैटफॉर्म दिया है आपने!!
और हाँ डॉक्टर ने जब मना किया था तब भी भात खाना बन्द नहीं किया था मैंने!! बिना खाए मरने से तो भात खाकर मरना अच्छा है, आत्मा तृप्त तो होगी!! :)
यात्रा बहुत अच्छी रही, चौबीस घंटे गंगा घाट पर बिताये, मणिकर्णिका घाट पर एक साथ बारह दाह संस्कार देखे. भोले बाबा के दर्शन किये इतनी पुलिस है वहाँ कि पंडों का कोई जोर नहीं चला.परेशानी एक हुई, पूरा एक दिन लू की भेंट चढ़ गया.
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