कल दोपहर पेड़ काटने वाला आदमी काम बीच में ही छोडकर चला
गया था, बिना खाए-पिए लगातार छह घंटे वह काम करता रहा. यही तो है भारत का आम आदमी,
मजदूर और किसान, इनके विकास के लिए सरकार करोड़ों रूपये खर्च करती है पर इनकी हालत
वही रहती है. कल शाम को लाइब्रेरी में ‘२१सवीं सदी में प्रवेश’ पर एक किताब देखी,
दुनिया में ऐसे लोग भी हैं जो सारी सुख-सुविधाओं के बीच रहकर भी ग्लोब के दूसरे
सिरे पर रहने वाले एक गरीब किसान की पीड़ा का अनुभव कर सकते हैं, यह दुनिया ऐसे ही
व्यक्तियों के कारण तो चल रही है और यह ख़ुशी की बात है कि ऐसे लोगों की संख्या
ज्यादा होती जा रही है. कल घर से माँ का पत्र आया है, लिखा है छोटी बहन उन्हें बुला
रही है पर वह अभी जा नहीं सकतीं. काश ! वह स्वयं कुछ दिनों के लिए उसके पास रह
पाती पर यहाँ नन्हे और जून का काम उसके
बिना नहीं चलने वाला है.
नौ बजने को हैं, सुबह
सुहानी थी, शीतल हवा और आकाश पर बादलों के बिखरे रंग उसे मोहक बना रहे थे. इस समय
वह पहले पहर के मध्य में पहुंच चुकी है. आज गैराज साफ करवाया और ड्राइव वे भी. कल
जून ने अपनी कार बेच दी यानि उनकी मारुति ८०० किन्हीं ठेकेदार महोदय को. अब उन्हें
नई कार के लिए १५-२० दिन तक इंतजार करना है हो सकता है एक महीना भी. स्कूल से
लौटकर जब नन्हे ने यह समाचार सुना तो वह बहुत नाराज हो गया था, उसे लगा आधे घंटे
में सामान्य हो गया है. लेकिन बाद में जब उसे गृहकार्य करने को कहा तो उसने उनकी
बात पर कोई ध्यान नहीं दिया, शाम को एक मित्र परिवार आया तो जून ने उसे डांट कर पढ़ने
बैठने को कहा, उसे लगा न चाहते हुए भी उसे अनुशासन सिखाने के लिए उन्हें ऐसा करना
ही पड़ा. Today
she read the second lesson of ‘Stop worrying and start living’ by Dale Carnegie. writer advises to accept
the worst and then to think clearly instead of worrying when one faces any
problem. कल रात स्वप्न में एक कहानी का प्लाट मिला. नायिका अपने छोटे भाई के साथ उसके
कालेज जा रही है. रस्ते में पांच-छह असामाजिक तत्व उनके पीछे हो लेते हैं. एक जगह
किसी वजह से उन्हें रुकना पड़ता है. बहुत bold होने का अभिनय करती हुई वह झूठमूठ
में नशा करती है और उन्हें अपनी बातों में फंसा लेती है. किसी नशीले द्रव्य के
अपने पास होने का भ्रम उन्हें दिलाती है अब सभी उसकी रक्षा का उपाय सोचने लगते हैं
साथ चल पड़ते हैं, पर वह अभी भी खतरे से बाहर नहीं है, आगे का स्वप्न कुछ याद नहीं
है. कल दोपहर जो कहानी उसने लिखी उसका अंत अभी तक स्पष्ट नहीं हुआ है. नीतेश ने
अपने गुम होने की खबर स्वयं ही दी थी जब उसे मामा पर शक हुआ कि उसके पिता को धमकी
भरे पत्र वह भेज रहे हैं. मामा सिर्फ अपना मान रखने के लिए रिपोर्ट लिखने व
विज्ञापन देने की बात स्वीकारते हैं. लिखना उसे बीच में रोकना पड़ा, दरवाजे की घंटी
बजी थी.
ऐसा लग रहा है यह घटनाएँ अपने आस-पास घट रही हैं. मिल चुका हूँ इनसे, देखा है यह सब. एक सपने की तरह लग रहा है आपका यह सिलसिला. टुकड़े-टुकड़े में आईने की तरह अक्स-दर-अक्स उभरता डूबता है. एक ट्रेलर की तरह, जब तक आप एक दृश्य को पकड़ने की कोशिश करते हैं, अगला सामने होता है!
ReplyDeleteअच्छा लग रहा है आपको पढना!!