Friday, January 24, 2020

कर्म का बंधन


 कल दोपहर पहली बार अकेले कार चलायी। सुबह गैराज से गाड़ी निकाली और वापस डाली, पर अभी बहुत अभ्यास करना है. संकरी जगह से कैसे गाड़ी निकाली जाती है, और ट्रैफिक में से कैसे बाहर लायी जाती है, इसे सीखने में काफी समय लगेगा, लेकिन अभ्यास तो जारी रखना होगा. शाम को भजन सन्ध्या थी. उसके पूर्व अस्पताल गयी. एक सखी दो दिनों से एडमिट है. उसका पुत्र युवा हो गया है पर मानसिक रूप से बालक है. शारीरिक रूप से भी आत्मनिर्भर नहीं है. चौबीस घण्टे उसका ध्यान रखना पड़ता है. घर में सास-ससुर भी आये हैं. काम का बोझ ज्यादा है. रात को नींद पूरी न होने के कारण उसका स्वास्थ्य बिगड़ गया. आज गुरू माँ को सुना, पित्त की अधिकता से कितने रोग हो जाते हैं. कफ व वात बिगड़ने से भी षट क्रियाओं को करके शरीर को शुद्ध किया जा सकता है. आज सुबह सुंदर वचन सुने, ‘सुख और दुःख के ताने-बाने से बुना है जीवन, यह जानकर उन्हें दोनों से ऊपर उठना है. राम चाहते तो वन जाने से मन कर सकते थे, पर उन्हें वन जाने में दुःख प्रतीत नहीं होता था. वह राजमहल में रहकर सब सुख भोग चुके थे, वहाँ कोई सार नहीं है, यह जान चुके थे. कर्म का फल सदा के लिए नहीं रहता, कोई भी दुःख आता है जाने के लिए. इसलिए दुःख के कारण आये बुरे वक्त को साधना के द्वारा काट लेना चाहिए.’ जो घट चूका वह खुद के ही कर्मों का फल मिलना था, वर्तमान में भूख-प्यास व नींद के अलावा कोई दुःख है ही नहीं. प्रकृति उनकी परीक्षा लेती है पर श्रद्धा रूपी देन भी उन्हें परमात्मा से मिली है. श्रद्धा को मजबूत करने के लिए ही प्रकृति उनके सामने नयी-नयी परिस्थितियाँ लाती है. जब वे दृढ रहते हैं तो प्रकृति सहायक बन जाती है. शाम के साढ़े छह बजने को हैं. सदगुरू कितनी सरलता से कर्म बंधन से मुक्त होना सिखा रहे हैं. उन्होंने कार्य सिद्धि के तीन उपाय बताये, पहला है प्रयत्न, दूसरा है जो प्राप्त करना है, वह मिला ही हुआ है, यह विश्वास. तीसरा है धैर्य. जैसे बीज हमें मिला है, उसे पोषित करना है. कार्य को सिद्ध करने के लिए, कार्य को सिद्ध हुआ मानकर ही प्रयत्न करने से मन सन्तुष्ट रहता है. यह रहस्य है. परमात्मा को पाना है तो यह मानना है कि वह मेरे पास है, और उसके बाद सत्संग, साधना आदि करना है. सुखी है मानकर जो बढ़ता जाता है, वह सुखी ही रहता है. साधन व साध्य में भेद नहीं मानना है. योगी है मानकर योग करने से योग सिद्ध होता है. मानसिक शांति ज्ञान से ही मिलती है. इसी माह गुरू पूर्णिमा है, गुरूजी के लिए एक कविता लिखेगी. प्रेम, ज्ञान सभी कुछ परमात्मा की देन है, जब कोई यह जान लेता है तो खुद के साथ-साथ समाज के लिए भी उपयोगी बन जाता है. उनके जीवन से एक महक फैलेगी तो वे भी सुखी रहेंगे औरों को भी उनसे सुख मिलेगा ! पिछले दो दिन कुछ नहीं लिखा, इस समय पौने ग्यारह बजे हैं, भोजन बन गया है. जून थोड़ी देर में आने वाले हैं. भागते हुए समय से कुछ मिनट निकाल कर खुद से बात करने का सुअवसर ! आज एक वरिष्ठ रिश्तेदार का जन्मदिन है, पर सुबह भूल ही गयी, उन्होंने स्वयं ही याद दिला दिया, उम्र ने उन्हें परिपक्व बना दिया है. कल क्लब की एक सदस्या से बात की, उनके लिए कुछ लिखा और संबन्धी के लिए भी, उन्होंने वाह ! वाह ! कहकर तारीफ़ की है, पर उसे उसका प्रतिदान लिखने में ही मिल गया. हिंदी लेखन प्रतियोगिता में उसे पुरस्कार मिला है, लिखने वाले कम हैं शायद इसलिए.. उत्सव मनाना अहंकार को पोषित करना ही हुआ न. तारीफ होने पर जो प्रसन्नता का अनुभव करता है वही अपमान होने पर दुःख का भी अनुभव करने वाला है. मन जब इससे ऊपर उठ जाता है, संकल्प रहित हो जाता है. तब संसार नहीं रहता, यानि पल भर में ही इस संसार से मुक्त हुआ जा सकता है. परमात्मा जो अचल, घन, चेतन स्वरूप है, उसमें टिका जा सकता है.


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