वे घर लौट आये हैं, दो दिन सफाई व घर को व्यवस्थित करने
में लग गये. आज भी ठंड ज्यादा है. मौसम बदली भरा है, सुबह कुछ देर के लिए धूप
निकली थी पर इस समय शाम के चार बजे हैं, आकाश सलेटी-श्वेत बादलों से भर गया है. कल
क्रिसमस था, घर पर ही बच्चों के साथ मनाया. कल मृणाल ज्योति जाना है. लिखने का
कार्य अभी आरम्भ नहीं हो पाया है.
यह वर्ष समाप्त होने में तीन दिन
ही शेष हैं. अभी-अभी बंगाली सखी से बात की. नये वर्ष की पूर्व संध्या पर या पहली
जनवरी को नये वर्ष के लिए आमंत्रित किया. वह बहुत उत्साहित तो नहीं दिखी. भविष्य
ही बतायेगा, क्या होता है. आज यहाँ कोहरा, शीत लहर और ठंड सभी अधिकता में हैं.
बहुत दिनों बाद आचार्य महाप्राज्ञ को सुना, प्रेक्षा ध्यान व कायोत्सर्ग के बारे
में भी सुना. किसी एक समय उसने कई दिनों तक यह ध्यान किया था. मंजिल तक पहुँची
नहीं, पड़ाव को ही मंजिल मानकर जो वह बैठ गयी है उसका असर स्पष्ट दिखने लगा है,
सचेत हो जाना होगा. संत ने कहा, ‘वाणी का प्रयोग भी सम्यक हो, मित भाषिता, मिष्ट भाषिता,
सत्य भाषिता यदि वाणी में न हों तो दोष ही कहा जायेगा. बात को लंबा खींचना भी दोष
है तथा वाणी में सार का न होना भी दोष है. मित भाषी व सार युक्त बोलने वाला सुखी
रहता है’. उसने सोचा, ध्यान को पुनः नियमित करना होगा तथा शास्त्रों का पठन–पाठन भी,
मन पर जरा भी विश्वास नहीं किया जा सकता, यदि साधक ऊपर नहीं जायेगा तो मन नीचे
जाने के लिए तैयार ही बैठा है. कल सभी को नये वर्ष के कार्ड्स भेजे हैं, अभी भी
कुछ कार्ड्स शेष हैं जो भेजे जा सकते हैं.
कुछ देर पूर्व बाहर धूप में
विश्राम किया, लॉन में धूप बिखरी हुई है जो वे बंगलूरू के फ़्लैट में खोजते थे. आज
शाम को एक मित्र परिवार चाय पर आएगा, दो बड़े, दो बच्चे. अभी शाम की तैयारी करनी है.
जून के दफ्तर में वीडियो कान्फ्रेंस थी, लंच के लिए देर से आये दस-पन्द्रह मिनट के
लिए, उसने डेढ़ घंटा प्रतीक्षा की पर भोजन अकेले ही करना पड़ा. जून ने कल गेहूँ की
घास का चूर्ण मंगवाया और चिया सीड्स यानि तुलसी के बीज भी, वह अपने स्वास्थ्य का
बहुत ध्यान रख रहे हैं. उनका एक चित्र जो ऑफिस में एक फोटोग्राफ़र ने खींचा है,
उनकी स्वास्थ्य के प्रति निष्ठा को दर्शाता है. सुबह एक योग साधिका का फोन आया,
उसकी सास का कल रात देहांत हो गया. चार महीने की लंबी बीमारी के बाद पिछले
शुक्रवार को उन्होंने भोजन त्याग दिया था. कल ही परिवार ने उनकी आत्मा की मुक्ति
के लिए प्रार्थना करवाई थी. वह दो-तीन बार उन्हें देखने अस्पताल गयी थी. उनका
चेहरा शांत लगता था, पर कभी-कभी वह अनर्गल वार्तालाप करने लगती थीं. शायद उन्हें
भी डेमेंशिया का रोग था.
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