जीवन अपने आप में कुछ भी नहीं है, बस, एक सूक्ष्म अहसास, एक
होना भर, एक नामालूम सा ख्याल या एक कल्पना, इतना हल्का कि पल भर में गगन तक उड़
जाए, इतना महीन कि परमाणु के भीतर से गुजर जाये. तमिलनाडू में आये वरदा चक्रवात के
कारण आज यहाँ मौसम बादलों भरा है. कुछ देर पहले सोसाइटी की बेसमेंट पार्किंग में धोबी
को इस्त्री के लिए चादरें, गिलाफ व अन्य कपड़े देकर आयी, हर इतवार को नन्हा चादर
बदल देता है. दोपहर से पानी नहीं आ रह है, शायद टैंक की सफाई होनी हो. जून उस जगह
बैठे हैं जहाँ धूप आती है, पर आज मात्र प्रकाश है. मृणाल ज्योति से फोन आया है,
वापस जाकर कुछ नये दायित्व लेने हैं.
आज मौसम ठंडा है, कल शाम से लगातार
वर्षा हो रही है, चेन्नई में आये तूफान से वहाँ क्या हाल हुआ होगा, इसकी कल्पना की
जा सकती है. जून को कल दो समाचार मिले, एक प्रमोशन के लिए इंटरव्यू की तिथि और
दूसरा इनकम टैक्स जमा करने के लिए नोटिस. आज उनका ऑन लाइन खरीदा हुआ डिनर सेट आ
गया है. अभी चम्मच और चाय के मग आने शेष हैं. बाथरूम के लिए कैबिनेट भी आकर पड़ा
है, लगाया जाना शेष है. इस घर को जितना सुविधाजनक बना सकें वे बना रहे हैं. यहाँ
रहना उन्हें बहुत अच्छा लग रहा है. कल भी एक विज्ञान फिल्म देखी. आज भी नन्हा एक
फिल्म के बारे में बताकर गया है. कल रात्रि अथवा सुबह के स्वप्न ही में दो
कहानियों की रूपरेखा मन में आकार ले रही थी. एक में दो व्यक्तियों के पुनर्जन्म की
कहानी थी था दूसरी में क्या था अब जरा भी याद नहीं है. वे हर जन्म में वही गलतियाँ
दोहराते चले जाते हैं, पर हर बार भूल जाते हैं. यदि याद रहे तो जीवन कितना सहज हो
जाये..पर वे तो एक ही जन्म में कितनी भूलों को दोहराते रहते हैं.
दोपहर बाद के पांच बजे हैं, अभी
शाम के पांच बजे हैं, कहना ठीक नहीं है क्योंकि अभी भी धूप में तेजी है, सूरज चमक
रहा है. यहाँ बालकनी में गर्मी का अहसास हो रहा है. परसों उन्हें वापस घर जाना है.
जून का पैर अब काफी ठीक है. नन्हे का एक पुराना मित्र यूएसए से दो दिनों के लिए यहाँ
आया है. वे बहुत दिनों बाद घर जा रहे हैं.
नन्हे के घर पर सभी सुख-सुविधाएँ थन, उनका समय काफी आराम से बीता. अब आने वाले
वर्ष के स्वागत की तैयारी करनी है और फिर मेहमानों के स्वागत की.
सुबह के सात बजने वाले हैं. वे
हवाई जहाज में बैठ चुके हैं. जो यात्रा दोपहर बाद उन्हें घर तक ले जाएगी, वह रात्रि
ढाई बजे से ही आरम्भ हो गयी थी, जब जून का अलार्म बजा. नन्हा व उसका मित्र तब तक
जग ही रहे थे. ऊबर का ड्राइवर बहुत बातूनी था, उसका नाम बाशा था, तेलुगु था पर उसे
हिंदी फ़िल्मी गीत बहुत पसंद थे. रास्ते भर मना करने के बावजूद बजाता रहा. कहने
लगा, वह कतर में भी गाड़ी चला चुका है. तेज गति से वाहन चलाने का अभ्यास है पर भारत
की सड़कें उतनी गति के लिए ठीक नहीं हैं.
जीवन अपने आप में कुछ भी नहीं है, बस, एक सूक्ष्म अहसास......जीवन के दर्शन का यथार्थ!
ReplyDeleteस्वागत व आभार विश्व मोहन जी !
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