Wednesday, October 25, 2017

मन का मौसम


कल रात्रि वे सोने गये ही थे कि जून के एक सहकर्मी का फोन आया. कहा, माँ की तबियत ठीक नहीं है, एम्बुलेंस बुला दें. जून ने फोन किया अस्पताल में फिर उनके घर जाने के लिए कार निकाली. उसके कहने पर कि साथ ले चलें, उन्होंने मना किया, पर जाने के कुछ देर बाद ही उसे बुलाने के लिए फोन आया. बुजुर्ग आंटी ने दस-पन्द्रह मिनट के कष्ट के बाद ही प्राण त्याग दिए थे. वह पैदल ही चलकर पाँच-सात मिनट के बाद ही वहाँ पहुँच गयी. उनकी सेविका, एक परिचित डाक्टर तथा वे दंपति वहाँ थे. ग्यारह बजे तक वे दोनों भी रुके, उसी मध्य कुछ और लोग भी आये. कई फोन भी आये. गृहणी बहुत परेशान थी. वह मृतक के चेहरे को देखते हुए वहाँ बैठी रही. रात को स्वप्न देखा जो कितना अजीब था. एक कुंड में अनेक मृत वृद्ध व्यक्ति एक के ऊपर एक पड़े हैं, पास ही तीन बूढ़े जिनमें एक महिला है, कुछ काम कर रहे हैं. कितना वीभत्स था वह दृश्य, कितना विचित्र, उनके अंग बड़े-बड़े थे. फिर नींद खुली. पंछियों की आवाजें भी रात्रि को स्पष्ट सुनीं, वे वास्तविक थीं या .....कितना रहस्यमय है यह संसार.. और फिर तितलियों को उड़ते देखा. तितलियाँ आत्माएं हैं जो इधर-उधर उड़ रही हैं. इस समय शाम के सवा सात बजे हैं. वे अभी-अभी उस घर से आ रहे हैं. सुबह साढ़े छह बजे वहाँ गये थे. दस बजे के लगभग पंडित जी आये और मृत देह को दाह संस्कार के लिए ले जाया गया. वह वहीं रुकी रही, घर आकर नहा-धोकर दुबारा गयी. जून श्मशान से एक बजे लौटे तब वे घर आये, भोजन नैनी ने बना दिया था. भिजवाया व खाया. जून दफ्तर चले गये, उसने आधा घंटा विश्राम किया, एक स्वप्न पुनः देखा. इस परिवार से उनका आत्मीय संबंध है. आंटी के साथ भी प्रेम का रिश्ता था. इसी से जुड़ा स्वप्न था. अहसास बहुत तीव्र था, देह में उसे महसूस किया और नींद खुल गयी. एक कर्म बंधन छूट गया.

रात्रि के साढ़े आठ बजे हैं. जून क्लब गये हैं, एक प्रेजेंटेशन है. अभी-अभी बड़े भाई से बात हुई, वह अपने लिए रोटी बना रहे थे, सब्जी सुबह की बनी हुई रखी थी. कितना कठिन होगा उनके लिए भाभी के बिना रहना. समय के साथ शायद सब ठीक हो जायेगा, ईश्वर उन्हें शक्ति देगा. मंझली भाभी से बात की, वह उनका ध्यान रखती है, अभी तो भाई भी है. छोटा भाई भी रात को उनके घर ही सोयेगा. सभी के सहयोग से वे जीने का सम्बल जुटा ही लेंगे, ख़ुशी-ख़ुशी जीने का, एक महीने बाद उनकी बिटिया भी आ जायेगी. आज सुबह बादल बने थे पर वर्षा उनके प्रातः भ्रमण से लौटकर आने के बाद ही आरम्भ हुई, जो बाद में दिन भर होती रही. आज सुबह भीतर से आवाज आई कि प्रतिपल सजग रहो, परमात्मा सजग है, हर पल सजग..उसकी सजगता शाम को खो गयी थी पल भर के लिए..जून उसका बहुत ख्याल रखते हैं, उन्होंने उसे कितनी सहजता से लिया. व्यर्थ की बातचीत उनकी ऊर्जा को  नष्ट ही करती है. सुबह ब्लॉग पर लिखा. दोपहर को स्कूल की पत्रिका व दिल्ली स्थित क्लब की पत्रिका के लिए लेख व कविता भेजी. अभी लेडीज क्लब की वार्षिक प्रतियोगिता के लिए के लिए लेख व कहानी लिखने हैं. शाम को देवदत्त पटनायक की पुस्तक ‘पशु’ पढ़ी, उसके बाद उन्हीं मित्र के यहाँ गये. उनकी पुत्री भी आई है जिसके विवाह की प्रथम सालगिरह है आज.   

कल सुबह से वर्षा हो रही है, जो अभी तक नहीं थमी. परसों दोपहर या रात को, अब कुछ याद नहीं. ओशो को देखा. उनकी श्वेत दाढ़ी है, एक तख्त पर लेटे हैं, कुछ जन सामने बैठे हैं, वह भी है और उनसे एक सवाल पूछती है. परिवार साधना में साधक है या बाधक है. वह क्या कहते हैं, ठीक से नहीं सुन पायी पर भाव था साधक है. उससे पहले वे बातें कर रहे थे, अनोखा स्वप्न था. कल लिख ही नहीं पायी, आजकल उसकी नींद गहरी हो गयी है. कल दोपहर को सोयी तो समय व स्थान का कोई ज्ञान ही नहीं रहा. गहरी नींद भी एक तरह की समाधि होती है. अभी बड़ी ननद का फोन आया, मंझली भांजी ने कल से जॉब पर जाना शुरू किया है. वह बैंक के लिए परीक्षा भी देना चाहती है. अब उसके भीतर कुछ करने का जज्बा जगा है. जून ने कहा उनके मन का मौसम भी सदा एक सा रहता है आजकल, उसे कभी लगता है सेवा का कोई विशेष काम वह नहीं करती, फिर भी संतोष होता है, लेखन का कार्य भी सेवा का ही माना जा सकता है. नेट पर कितना कुछ पढ़ने को, जानने को मिलता है. आज श्री श्री का भाषण सुना जो उन्होंने यूरोपियन पार्लियामेंट में दिया था, ‘द योगा वे’ अभी-अभी एक ज्योति बि९न्दु डायरी पर दिखाई दिया, परमात्मा जैसे आश्वस्त करने आया हो. अस्तित्त्व को उनकी फ़िक्र है, वे उसके ही भाग हैं. वे उससे जुड़े रहकर ही खुश हैं !   

4 comments:

  1. भले ही मौसम चार हो लेकिन मन के जाने कितने मौसम होते हैं
    सुन्दर

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    1. स्वागत व आभार कविता जी !

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  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 26-10-2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2769 में दिया जाएगा
    धन्यवाद

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    1. बहुत बहुत आभार दिलबाग जी !

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