नये वर्ष के चौथे माह का आरम्भ हो गया है. परसों क्लब की कमेटी
मीटिंग है, उसके अगले दिन स्कूल का वार्षिकोत्सव है और उसके भी अगले दिन उन्हें
चार दिन की छोटी सी यात्रा पर निकलना है. वापस लौटने पर मृणाल ज्योति भी जाएगी. आज
तेज वर्षा के कारण प्रातः भ्रमण का कार्यक्रम स्थगित करना पड़ा. सुबह स्कल में ही
थी बड़ी ननद का फोन आया, उन्होंने बिटिया का रिश्ता पूरी तरह से तोड़ देने के लिए
हामी भर दी है, वह बेहद दुखी थी. मंझली भाभी से बात हुई, बड़ी भाभी का स्वास्थ्य
ठीक नहीं है, शायद आज पुनः अस्पताल चली गयी होंगी. ‘भारत एक खोज’ के एपिसोड में आज
महाभारत दिखाया जा रहा है. फेसबुक पर एक कवयित्री ने उसे एक काव्य श्रृंखला को आगे
बढ़ाने के लिए नामित किया है, पर किसी कारण उससे नहीं पाया, उन्हें कल लिखना होगा.
जून के दफ्तर में एक अधिकारी ने अपने नाती होने की ख़ुशी में मिठाई बांटी. उसने सोचा
वह भी फोन पर उन्हें बधाई देगी. माली की पत्नी अपने पुत्र के जन्म प्रमाण पत्र के
लिए फार्म भरवाने आई थी, कितना सुंदर नाम रखा है पुत्र का, ओम ज्योति. जो पौधे वे
शिलांग से लाये थे, उनके साथ एक अस्पर्गस का पौधा अपने आप ही आ गया था, चीड़ के
पौधे नहीं बचे पर यह बच गया, लम्बा होता जा रहा है. माली से कहकर उसमें एक लकड़ी लगवा
दी है. क्लब की उपसचिव ने व्हाट्स एप ग्रुप बना दिया है कमेटी सदस्याओं का, पहले
ही दिन ढेर सारे संदेश आये.
आज सुबह चार बजे से कुछ
पहले ही उठी. उठने से पूर्व ही कोई कह रहा था, उसका सारा जीवन एक झूठ है, फिर एक
चाय का कप भी दिखा. सुबह से ही मन पूछ रहा है, जीवन में क्या-क्या है जो असत्य है.
वह जून से कहती है कि वह जब बाहर जाते हैं, प्रसाधन सामग्री, चाय आदि सामान न
लायें, पर स्वयं उनका इस्तेमाल करती है. यही असत्य सबसे पहले नजर आया. अब से उनका
इस्तेमाल नहीं करेगी, ऐसा तय किया है. उसके संकल्पों में बल नहीं है, कहीं यह
इशारा उसकी तरफ तो नहीं था. उसके अनुभव क्या संतों की वाणी का प्रभाव मात्र हैं ?
मात्र कल्पना हैं ? भीतर कई सवाल हैं. हो सकता है स्वप्न यह कह रहा हो, आत्मा के
सिवाय सभी कुछ असत्य है. एक गीत है न, झूठी दुनिया झूठी माया..झूठा सब संसार..
नहीं देखा जा सकता आकाश को जमीन पर रेंगते हुए
बंद कमरों में बैठकर ताजी हवा से वंचित ही
रहेंगी श्वासें
परमात्मा हुए बिना परमात्मा से नहीं होती
मुलाकात
जज्बातों को समझे बिना खुद के, नहीं समझेगा कोई
दूसरों के जज्बात
जीवन चलता रहे यह आस कितनी व्यर्थ है
जीवन को गहराई से नापे तभी कोई अर्थ है
आसमानी रंग क्यों भाता है सभी को
याद दिलाता है अपनी विशालता की
क्षीरसागर के समान श्वेत मेघों की आकृतियाँ
कथाएं कह जाती हैं निजता की !
कल कुछ नहीं लिखा.
आज स्कूल गयी, लौटने में बारह बज गये, शायद सवा बारह. ड्राइवर पूरे धैर्य के साथ
साढ़े नौ बजे से वहीं खड़ा रहा. बच्चों ने सूर्य नमस्कार ठीक से सीख लिया है. ध्वनि
मिश्रण के लिए किसी को बुलाया था, उसी कार्य में देर हुई.
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन 94वीं पुण्यतिथि : कादम्बिनी गांगुली और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है। कृपया एक बार आकर हमारा मान ज़रूर बढ़ाएं,,, सादर .... आभार।।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार हर्षवर्धन जी !
Deleteस्वागत व आभार सुशील जी !
ReplyDeleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 05-10-2017 को चर्चा मंच पर चर्चा - 2748 में दिया जाएगा
ReplyDeleteधन्यवाद
वाह !
ReplyDeleteस्वागत व आभार गगन जी !
Deleteबहुत सुन्दर ..
ReplyDeleteस्वागत व आभार कविता जी !
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