Friday, October 13, 2017

पुदीने के परांठे


कल रात नन्हे ने कहा, वह आज आएगा, पर सुबह बताया, कल ही आ पायेगा. पिछले दो दिन से वह घर नहीं गया था. काम के बाद दफ्तर में ही सो गया. नींद भी पूरी नहीं हुई थी. उसने सोचा, ये भी आज के कर्मयोगी हैं. सुबह नींद खुली उसके पूर्व किसी ने कंधों को हल्के से हिलाया, फौरन भाभी का ख्याल आ गया. आँख खोली तो कोई भी नहीं था, इसका अर्थ...रात को मच्छर बहुत थे, कानों के पास गुनगुन कर रहे थे. पंखा तेज करके सोयी थी. देर तक नींद नहीं आई, फिर एक स्वप्न आया. दूर तक बारिश के कारण कीचड़ फ़ैल गया है. बाद में हवा चलने लगी और मिट्टी उड़-उड़कर गिरने लगी. नींद खुल गयी. सुबह बड़ी बहन के साथ सब्जी की दुकान तक गयी. नाश्ते में सैंडविच बनाये. बड़े भाई चुपचाप ही रहते हैं ज्यादातर समय, पर वे सामान्य हैं. कभी-कभी परेशान हो जाते हैं. इस समय शाम के छह बजे हैं, घर में सभी रिश्तेदार आये हुए हैं. रह-रहकर सभी को वही बातें याद आती हैं. दरअसल जब जीवन में कोई लक्ष्य न हो तो लोग दुःख को पकड़ लेते हैं.

परसों उन्हें घर जाना है. आज नन्हा भी आ गया है. भाई अब पहले से ज्यादा स्थिर लग रहे हैं. दीदी वापस चली गयी हैं. अभी कुछ देर पहले ही उनका फोन आया, पिछले कुछ दिन उनके साथ सहजता से बीते. सुबह उन्होंने आलू-पुदीने के परांठे बनाये थे. शाम का भोजन नैनी बनाकर चली गयी है. आजकल शहरों में खाना बनवाने का रिवाज बढ़ता जा रहा है. या तो बाहर खाते हैं या बनवा लेते हैं.


कल घर वापस आई, जून हवाईअड्डे लेने गये थे. वह बहुत खुश थे. आज स्कूल गयी. परमात्मा हर पल साथ है यह बात कितनी बार सत्य सिद्ध हुई है. आज भी बच्चों को व्यायाम कराते वक्त एक नन्हा सा भूरा कीट उसके दाँए हाथ की अंगुली पर आकर बैठ गया था, हाथ हिलाते समय भी बैठा ही रहा. अस्तित्त्व किस कदर आपस में जुड़ा है और परम किस कदर उनकी हर पल खबर रखता है इससे बढ़कर इसका क्या सबूत हो सकता है. कल जब भाई एयरपोर्ट तक छोड़ने गये था, तब स्क्रीन के आगे से उडती हुई एक भूरी तितली निकल गयी थी. इतने ट्रैफिक में उसका आना भीतर एक लहर को जगा गया, कितना रहस्यमय है यह संसार....और इसका नियंता..जीवन सचमुच एक उत्सव बन जाता है, जब साधना सहज हो जाती है. 

3 comments:

  1. ब्लॉग बुलेटिन की आज की बुलेटिन, याद दिलाने का मेरा फ़र्ज़ बनता है ... “ , मे आप की पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !

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