Monday, February 8, 2016

दशावतार


सद्गुरु को आज भी सुना. दसों अवतार मानव की चेतना में निरंतर कैसे घट रहे हैं इसके बारे में बता रहे थे. कल्कि का अवतार भीतर ही होगा जब जगत में कोई पराया नहीं रह जायेगा. आज भी सुबह से बादल बरस रहे हैं. सभी देवी-देवता भी चेतना में विद्यमान हैं. आत्मा कितनी पावन है, शुद्ध, शांत, ज्ञानयुक्त, आनन्द और सुख से पूर्ण शक्तिशाली. वे व्यर्थ ही छोटी-छोटी बातों से परेशान होते हैं. जीवन कितना विशाल है और कितने अनोखे रहस्यों से भरा हुआ, उन्हें बस आँख खोलकर देखने की जरूरत है. प्रेम चारों ओर बिखरा है. आज के ध्यान में कमल पर बैठ देवी की हल्की सी झलक मिली.

कल शाम वर्षा की झड़ी लगी थी, क्लब में मीटिंग थी पर वह जा नहीं पाई. परसों घर में ही होली मिलन में महिलाओं की मीटिंग का आनन्द लिया. आज धूप निकली है. गुरू जी आज से दिल्ली में सत्संग, प्राणायाम शिविर कर रहे हैं, रोहिणी सेक्टर-१० में उनका कार्यक्रम है. एक सखी ने फोन करके कहा, इस बार क्लब के वार्षिक उत्सव की थीम ‘लव एंड पीस’ है, उस पर अपने विचार लिखने हैं. प्रेम और शांति तो उनका मूल स्वभाव है, वे बने ही उसी के हैं. प्रकृति के कण-कण में यह प्रेम झलकता है, आकाश की नीलिमा में घोर शांति है, अन्तरिक्ष में गहन शांति है और प्रेम वह शक्ति है जिसके कारण ग्रह सूर्य के चारों ओर एक चक्र में अनवरत घूम रहे हैं, उनका अस्तित्त्व ही इस पर आधारित है. उसके दांत में हल्का दर्द अभी भी हो रहा है, परसों पुनः डेंटिस्ट के पास जाना है. कुछ देर पूर्व दीदी का फोन आया, डाक्टर के कहने पर जीजाजी ने सामिष भोजन लेना शुरू किया है.

आज सद्गुरु ने काली के भयंकर रूप की व्याख्या की. शक्ति यदि शांत चेतना से उदित हुई हो तभी कल्याणकारी होती है. ज्ञान शक्ति, क्रिया शक्ति तथा इच्छा शक्ति ! उनके भीतर तीनों शक्तियाँ हैं तथा परम चेतना भी है. उनका जीवन तभी सार्थक होगा जब इन शक्तियों का सदुपयोग वे कर सकें, अन्यथा ये शक्तियाँ विनाशकारी भी हो सकती हैं. अपने भीतर की सौम्यता, सहजता, शांति, सरलता, प्रेम का विनाश तथा अपने बाहर की समरसता का विनाश ! उन्हें हर पल सजग रहने की आवश्यकता है, जीवन का कीमती समय पल-पल कर यूँ ही बीत रहा है, हाथ में कुछ आ नहीं रहा. कभी लगता है कि इस परम खजाने की तलाश थी वह तो यहीं है, पूर्ण तृप्ति का अहसास होता है फिर जरा सा चूके नहीं कि वह तृप्ति कहीं खो जाती है, फिर तलाश..क्या यही साधना की नियति है, अनवरत खोज, मंजिल सदा दूर चली जाती है. यदि खोज समाप्त हो जाये तो वह तृप्ति बासी नहीं लगने लगेगी, शायद इसीलिए प्रकृति उनके मार्ग में नित नए आकर्षण फैलाती है कि बचो इनसे. पिछले कुछ दिनों से पौष्टिक और स्वादिष्ट भोजन के प्रति आकर्षण बढ़ गया था. जब सारी वासनाएं छूट गयीं तो नया  जाल फेंका इंद्र ने और वह उसमें फंसती ही जा रही थी कि कल सचेत हुई. भोजन उन्हें इसलिए चाहिए कि शरीर स्वस्थ रहे न कि स्वाद के लिए. पिछले दिनों होली के उत्साह में आत्मा से दूर चली गयी, मन कितने-कितने रूपों में उन्हें ठगने आता है और वे उसके शिकार हो जाते हैं. पिछले दिनों स्वाध्याय भी कम हुआ, आज सजगता बढ़ी है. तीन दिनों बाद उन्हें एक और यात्रा पर निकलना है. यह जीवन एक यात्रा है और इस विशाल यात्रा में छोटी-छोटी कुछ यात्रायें हैं.   


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