आज गुरूजी का जन्मदिन है, सुबह उन्हें देखा टीवी पर, जन्मदिन का अद्भुत संदेश
देते हुए, ‘मैं तेरा’ उस दिन भी ‘मैं तेरा’ आज भी ‘मैं तेरा’..(may 13) उन्होंने
कहा जीवन एक अगरबत्ती की तरह होना चाहिए जो स्वयं जलकर वातावरण को सुगन्धित करती
है. एक फूल की तरह या एक मधुर फल की तरह वे अपने भीतर उस ख़ुशी को पालें इतना ही
पर्याप्त नहीं है बल्कि आस-पास सभी उसका अनुभव करें. आज सुबह से ही मन उल्लसित है.
सेंटर में सुबह फॉलोअप था जाने का प्रयास ही नहीं किया, शाम को तो उत्सव में जाना
ही है, दोपहर को तैयारी करनी है. सुबह-सुबह एक स्वप्न देखा लॉक टाइट की छोटी सी
ट्यूब..हँसी भी आ रही है, God loves fun गुरूजी ठीक ही कहते हैं. पिछले दिनों कई अजीबोगरीब स्वप्न देखे,
वह ऊर्जा का धक्का और.. अब तो कई भूल ही गयी है. गुरूजी कहते हैं स्वप्नों पर
ज्यादा भरोसा करना ठीक नहीं, यह तो मन का खेल है. गर्मी के कारण सम्भवतः सिर में हल्का दर्द है. आज सुबह वर्षा
हो रही थी जैसे उसके जन्मदिन पर होने वाली है.
आज जैन मुनि को
सुना, त्याग पर भोग हावी होता रहा तो पर्यावरण को संतुलित बनाये रखना बहुत कठिन
होगा. अनावश्यक भोग भी न हो तथा अनावश्यक कर्म भी न हों, कहीं तो विकास के लिए
सीमा रेखा भी खींचनी होगी. जीने का सरल रास्ता उन्हें ढूँढ़ निकालना होगा ऐसा
रास्ता जो परमात्मा की और ले जाये. उसे लगा वह उसकी ही बात कह रहे हैं, वह परम
प्रभु ही तो उनकी मंजिल है, उसे प्रेम करना ही तो उनके जीवन का एकमात्र कर्त्तव्य
है. किन्तु यह ज्ञान होने के बावजूद वे प्रेम से वंचित रह जाते हैं. प्रेम करने
में कंजूसी करते हैं और प्रेम लेने में झिझकते हैं, उन्होंने अपने चारों ओर एक
दीवार सी खड़ी कर ली है. वे स्वयं को बांटना नहीं चाहते, जाने कौन सा डर उन्हें
रोके रहता है, यह अहंकार की दीवार है या माया की. यह कठोरता का आवरण जो वे स्वयं
पर ओढ़े रहते हैं, जबकि भीतर प्यार का सागर लहलहाता रहता है. वे बहुत बार ठगे गये
हैं, बहुत बार धोखा खा चुके है, उन्हें बहुत बार प्रेम में उदासीनता ही मिली है,
शायद इसी कारण वे अपने खोल में सुरक्षित महसूस करते हैं, किन्तु एक दिन जीवन हाथ
से निकल जायेगा, मृत्यु सम्मुख खड़ी होगी और तब कहीं पछताना न पड़े. ध्यान में
परमात्मा का आनन्द पाकर विभोर हुआ मन उस ख़ुशी को बिखरने से डरता क्यों है.
शास्त्रों में जिस शांत भाव का जिक्र है कहीं यह वही तो नहीं, निरा शान्त, कोई
उछाह नहीं, कोई लहर नहीं. नदी की शांत धारा सा अपने आप में समाहित मन, जो न कुछ
चाहता है न देता है.
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