Monday, February 1, 2016

तुलसी ममता राम से..समता सब संसार


पिछले दो-तीन दिनों से डायरी नहीं खोली. नीरू माँ कह रही हैं कि पति-पत्नी को आपस में मेल से रहना चाहिए. उसे जून की गम्भीरता को भी सहज स्वीकार करना चाहिए. उनके मुखड़े पर सहज मुस्कान अपने आप भीतर से ही जगेगी. उसकी प्रतीक्षा करनी होगी. क्लेश उदय कर्म नहीं है पर हानि कर्म का फल है. इसलिए हानि होने पर मन में समता बनाये रखना ही पुरुषार्थ है. क्लेश करना अज्ञानता के अधीन है, जो भी कर्म उदय होता है वह अपने ही कर्मों के कारण है. वे अज्ञान के कारण स्वयं अपनी राह में कांटे बिछा लेते हैं और बाद में पछताते हैं. एक व्यक्ति जो सुख की चाह में बाहर भटकता है, दुखी होकर ही लौटता है, क्योंकि वह बाहर मिलता ही नहीं. आज जो सुख है कल वही दुःख में बदल जायेगा. हरेक को अपने भीतर झांकना है.

आज सुबह महीनों बाद एक घटना घटी, होना तो यह चाहिए था कि उस पर इसका जरा भी असर न हो, समता के भाव में रहने का अभ्यास बढ़ जाना चाहिए था, पर कुछ सोचने पर विवश किया ही है इस घटना ने. उसके किसी पूर्वजन्म के कर्म का ( इस जन्म के ही सही, पूर्व कर्म का ) हिसाब भी चुकता हो गया. कल ही उसने लिखा कि क्लेश उदय कर्म नहीं है सो दुःख तो मनाना ही नहीं है. भीतर पूर्ववत् शान्ति है पर बाहर के काम कुछ और ही कहानी कह रहे हैं. कल रात से ही बल्कि पिछले कुछ दिनों से ही तनाव दिख रहा था. कल रात को झलक मिली थी और आज सुबह वह पूर्णतया प्रकट हो गया. एक निमित्त बना उसका वह कृत्य जिसे जैसे किसी ने जानबूझ कर करवाया. वातावरण कितना बोझिल हो जाता है जब कोई तनाव में होता है. इसका मूल कारण भीतरी है, उनके सारे दुःख खुद के ही बुलाये हुए होते हैं. वे स्वयं को ठीक से जानते नहीं, उनकी इच्छाएं ही दुःख को जन्म देती हैं. पिछले कुछ दिनों से उसे देह में कुछ परिवर्तन लग रहा है. आजकल आसन करते समय मध्य में कुछ देर विश्राम करना पड़ता है, भार बढ़ गया है. अहंकार बहुत सूक्ष्म रूप से अपना काम कर जाता है और वे उसके शिकंजे में फंस जाते है. उनकी बुद्धि भ्रमित हो जाती है और वह गलत रास्ते पर ले जाती है. इतना तो सद्गुरु से सीखा है, Accept people as they are accept situation as it is.अपनों का प्रेम जब तक चाहिए तभी तक उनका क्रोध भी प्रभावित करता है. जब ‘चाहिए’ का आग्रह न रहे तब मुक्त ही हैं.

कल शाम सत्संग में जाना नहीं हो सका. घर पर ॐ ध्यान किया. जून ने कल सुबह की बात की और पुनः वातावरण हल्का हो गया. जब मन भारी हो तो उसका असर वातावरण पर पड़ता है. अभी ध्यान कर उठी है. आत्मा में स्थित होने का नाम ही तो ध्यान है. वे जब मन, बुद्धि, चित्त या अहंकार अथवा शरीर या संसार में स्थित होते हैं तो उनके गुणों को ग्रहण करते हैं, जब आत्मा या परमात्मा में स्थित होते हैं तो..

चार दिनों का अन्तराल..पिछले कई दिनों से लिखने का क्रम छूट सा गया है. आज इस समय दोनों छात्राएं प्रश्न पत्र हल कर रही हैं, सो उसे यह समय मिल गया है. कल शाम वे ऑयल की पचासंवी सालगिरह पर आयोजित कार्यक्रम देखने गये. संगीत, नृत्य तथा गायन का कार्यक्रम..तेज रौशनी, तेज आवाजें, शोर और तड़क-भड़क वाले कपड़े. शास्त्रीय व लोक कला ही उन्हें ज्यादा भाती है बजाय आधुनिक गीत-संगीत के. रात लौटने में देर हो गयी तो बिना भोजन किये सो गये. अब जून भी भोजन पर निर्भरता कम करते जा रहे हैं. परसों शाम आत्मा पर ब्रह्मकुमारी द्वारा बताया गया ज्ञान वह ध्यान से सुन रहे थे. आज सुबह एक पुरानी परिचिता से बात हुई, वह पहले की तरह धीरे-धीरे बोलती हैं. एक अन्य परिचिता से भी बात हुई, वह दवा के सहारे अपनी थॉयराइड की बीमारी पर नियन्त्रण पा चुकी हैं. उसने आज जून को परीक्षाओं के लिए शुभकामना हेतु चार कार्ड लाने को कहा था, उन्होंने भिजवा दिए हैं. सुबह उसकी कविताओं को प्रिंट करके लाये जो ‘कुछ रिश्ते मीठे से’ के नाम से एक फ़ाइल में लगाई हैं ! वह उसका बहुत ध्यान रखते हैं, वह खुद उन्हें कभी-कभी तीखे वचन बोल ही देती है. चाहे उनकी मंशा भली ही क्यों न हो अप्रिय सत्य कभी नही बोलना चाहिए, साधक को तो बिलकुल नहीं. उसे दो जगह अपनी कविताएँ भेजनी हैं, पुस्तकालय जाना है. पूजाकक्ष की अलमारी सहेजनी है. कम्प्यूटर एडिक्शन पर इंटरनेट से कुछ जानकारी भी लानी है. ये सारे कार्य आज व कल दो दिनों में खत्म करने हैं.


No comments:

Post a Comment